Friday, September 30, 2011

प्यार की वेबसाइट

मेरी चाहतों की 'डेस्कटॉप' पर कभी भी 'क्लिक' कर के देखो
तुम ही हो वर्षों से - एक पॉपुलर 'वाल पोस्ट' की तरह
दिल के 'वर्क स्टेशन' पर- दायें-बाएं के 'डाटा' भले ही 'अपलोड' न हो, पर 
न समझना कि मेरी भावनाओं की 'हार्ड डिस्क' की कैपसिटी कम है
'वर्चुअल' की बात छोड़ो, यहाँ तो 'प्राइमरी मेमोरी' ही 'थाउजेंड जीबी' से ज्यादा है

कभी मुग्ध हो प्यार के क्षणों में तुमने कहा था
मेरी लगन 'चार्ल्स बाबेज' की तरह है, बल्कि उससे भी आगे
'फर्स्ट जेनेरेसन' से सीधे 'फिफ्थ जेनेरेसन' में जो पहुंचा हूँ 
सफ़र तय किया है 'एनालोग' से 'डिजिटल' तक का

कभी अकेले में, अपनेपन में-
मेरे गालों को सहलाते, मेरे बालो को तर्जनी पर लपेट छल्ला बनाते 
'स्कैन' कर डाली थी तुमने मेरी सूरत अपनी आँखों से
एक 'फोल्डर' बनाकर - डाला तुमने जिसे ख्वाबों के 'डेस्कटॉप' पर

अलग-अलग मूड को भांपते, अलग-अलग 'सॉफ्टवेर' की मदद से
रोज मेरी शक्ल को नया रूप देती, नयी इबारतें लिखती
पर गनीमत रही कि यह खेल 'सॉफ्ट कॉपी' तक ही सीमित रहा

परन्तु हकीकत यह है भावना मेरी,
तुम 'कैलकुलेट' करती रही मेरे प्यार, मोहब्बत को हमेशा
जीरो वन जीरो वन 'बाईनेरी डिजिट' की तरह


और आज कई-कई यादों का साक्षी वह 'फोल्डर'
ख्वाबों के 'डेस्कटॉप' से 'रिसायकल बिन' में भेज चुकी तुम
बल्कि परमानैंटली 'डिलीट' करने की फ़िराक में हो
जो प्यार कभी 'बिट' से 'बाइट' होते होते 'गीगाबाइट' तक परवान चढ़ा था
आज अनुपयोगी क्यों हो गया 'अनवांटेड आईकान' की तरह
जवाब दो, भावना मेरी जवाब दो !!   



Wednesday, September 07, 2011

शेर और सियार

              एक सियार था- बड़ा आलसी, झूठा, चालबाज और डींगबाज. और उसकी पत्नी उसके बिपरीत बहुत भोली थी. सियार जो कहता उस पर सहज ही विश्वास कर लेती. फिर भी उनका दाम्पत्य जीवन ठीक ढंग से ही व्यतीत हो रहा था. शादी के दिन से ही सियार कभी इस गुफा, कभी उस गुफा में पत्नी सहित दिन काटता. उसकी पत्नी उसे हर ऱोज अपना घर बनाने को कहती परन्तु वह तो ठहरा आलसी परन्तु साथ में झूठा भी था, तो उसने एक दिन अपनी पत्नी से कह दिया कि वह कल से अपना घर बनाना शुरू करेगा,  उसकी पत्नी बड़ी खुश हुयी. सियार ऱोज सवेरे खा पीकर घर से निकलता, इधर-उधर डोलता, मस्ती मारता और शाम को मिटटी में लोटकर घर लौटता. घर आकर पत्नी पर रौब झाड़ता, हाथ मुंह धोने को गरम पानी मांगता और देर रात अपने पांव दबवाने को कहता. बेचारी सब कुछ सहती, सब कुछ करती और सपने देखती कि चलो जल्दी ही अपना एक घर होगा. इधर जब वह गर्भवती हुयी तो उसे और भी चिंता सताने लगी और वह सियार को जोर देती. परन्तु सियार ठहरा सियार.
                            एक दिन प्रसव पीड़ा तेज हुयी किन्तु सियार गायब. शाम को अँधेरा होने पर घर लौटा तो देखा तो पत्नी पीड़ा से छटफटा रही है. सियार गुफा से बाहर आया और 'हुवा हुवा ' का शोर मचाने लगा ताकि बिरादरी के लोगों से मदद मिल सके. परन्तु कौन आता. क्योंकि वह तो कभी बिरादरी के बीच रहा ही नहीं और न बिरादरी वाले उसे पसंद करते. फिर इस वक्त तो वह सियारों की बस्ती से दूर शेर की गुफा में ठाठ से रह रहा था. क्या करता, गुफा में लौट आया. पत्नी की पीड़ा देखी नहीं जा रही थी. इधर उधर करता रहा. ईश्वर की लीला देखिये इधर पौ फटी भी नहीं थी कि उधर दूर से शेर की गुर्राहट सुनाई दी जो लगातार गुफा की ओर बढ़ रही थी. शेर को समझते देर न लगी कि गुफा का स्वामी लौट आया है. वह भय से थर-थर काम्पने लगा. वह पत्नी को भाग चलने को कहता है जो लगभग बेहोशी की हालत में थी. फिर सियार स्वयं ही पत्नी को गर्दन से पकड़ कर बाहर खींचता है और गुफा से दूर ले चलने की कोशिश करता है. परन्तु गुफा से थोड़ी ही दूरी पर आ पाया था कि सियार पत्नी एक गड्ढे में गिर जाती है और इधर शेर की गुर्राहट बिल्कुल पास ही सुनाई देने लगी. सियार करे तो क्या करे. गुफा के पास पहुँच कर शेर को कुछ गड़बड़ सी लगती है. वह अँधेरे में गड्ढे में बेहोशी की हालात में गिरी सियार पत्नी को तो नहीं देख पाता किन्तु झाड़ियों के पीछे से सियार को भागते हुए जरूर देख लेता है. छलांग मार कर शेर सियार को मार गिराता है.
                            कुछ समय बाद सियार पत्नी अपने बच्चों सहित बाहर निकल आती है और दूर सियारों की बस्ती का रुख कर लेती है. परन्तु अपने आलसी पति सियार का दुःख उसे जिंदगी भर सालता रहा.