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मरास को पलटते रहने की अहमियत तब पता नहीं थी। मेरी माँ निपट अनपढ़ थी परन्तु कृषिकार्य की समझ उसकी बहुत विकसित थी। कौन सा बीज किस खेत में और कब बोना चाहिए वह भली-भंाति जानती थी। कौन से पौधे की कलम कब, कैसे और कहाँ लगाना है वह जानती थी। आज घर में बेटा व बहू पन्तनगर कृषि विश्वविद्यालय से कृषि में स्नातक/परास्नातक अवश्य हैं परन्तु किचन गार्डन तो छोड़िए उन्हें अपनी नौकरियों के चलते गमलों को देखने तक की फुरसत नहीं है।
बैसाख, जेठ में जहाँ अरबी, अदरक व हल्दी के खेतों में गोबर डाला जाता वहीं मंगसीर में गेहूं बोने के बाद गोबर अवश्य डालते। गांव के सभी काम सामुदायिकता की भावना से होते थे इसलिए खेतों में गोबर भी औरतें
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