राज्य की राजधानी से अब 'छुमा बौ' पैसेंजेर के साथ-साथ 'भानुमती ' मेल और 'लीला घस्यारी' एक्सप्रेस बसें भी चला करेगी. कई बरसों से ठन्डे व सुस्त पड़े राज्य के नौ रत्नों में गिने जाने वाले "उखड़ी क्लब" की एक खास सभा में बोलते हुए राज्य के घोषणा मंत्री जी ने कहा कि छुमा बौ बस की थकी हुयी रफ़्तार को देखते हुए राजधानी से शीघ्र ही प्रत्येक जिला मुख्यालय के लिए भानुमती मेल और लीला घस्यारी एक्सप्रेस सर्विस भी चलायी जाएगी. उन्होंने सौं (कसम) खाते हुए कहा कि हमारी सरकार द्वारा ये घोषणाएं महज़ चुनावी घोषणाएं नहीं है. ये सभी सेवाएँ जनता को समर्पित की जायेगी.
'उखड़ी क्लब' के खचाखच भरे सभागार में घोषणा मंत्री जी ने उखड़ी (असिंचित) भूमि का क्षेत्रफल लगातार बढ़ते जाते रहने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि ये हमारे लिए बड़ी उपलब्धि है. कारण चाहे बारिस का कम होना हो, सरकार द्वारा सिंचाई के साधन मुहैया न कराना हो, या किसानों का खेती से मोहभंग हो, या पलायन, या जो भी हो हमारे लिए खुशी की बात है. जनता कई तरह के तनावों से मुक्त रहेगी, उखड बढ़ेंगे और बारिस होगी नहीं, बारिस नहीं तो खेती भी नहीं, बंदरों, सूअरों के उत्पात की भी चिंता नहीं. खूंटे पर पशु नहीं होंगे और आँगन भी साफ सुथरा रहेगा. और फिर "गाय न बाछी, नींद आये आछी " वाली कहावत चरितार्थ होगी. मंत्री जी ने कहा कि हमारी सरकार ने निर्यात पर पूरी तरह से रोक लगा दी है और आयात को खुला रखा है. अब बाहर से आने वाले किसी भी वाहन को पुलिस चेक नहीं किया करेगी. बाहर से सभी कुछ लाने की खुली स्वतंत्रता है, अन्न, सब्जी, दूध, मावा, पक्की, कच्ची..... परन्तु राज्य से बाहर कुछ नहीं जायेगा, न कोदा झंगोरा, न गहत भट्ट, न घी की माणी और न ही किल्मोड़ा टिमरू. और हो सका तो हम राज्य से बहने वाली सभी नदियों का पानी भी रोकने का प्रयास करेंगे. "पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आये" पर उन्होंने चिंता व्यक्त की. प्रत्येक नदी-नालों और गाड-गदेरों पर बांध बनाने का भी उन्होंने आश्वासन दिया. पलायन को रोकने के लिए सरकार की ठोस रणनीति के बारे में जब टोप्ल्या पत्रकार द्वारा सवाल उठाया गया तो मंत्री जी ने खुलासा किया कि हमारी युवा पीढ़ी वास्तव में घर, परिवार व माँ, बाप से दूरी बनाये रखना चाहती है. जिससे वे पढाई, नौकरी, रोजगार आदि सवालों से बचे रहें. इस मुद्दे पर सरकार द्वारा सम्यक विचार कर छानियों को फिर से बसाने की योजना तैयार कर ली गयी है. राज्य सरकार छानी निर्माण अथवा जीर्णोद्धार ऋण भी बेरोजगार युवाओं को देगी ताकि छानिया फिर से बस सके और युवा पीढी पलायन की बजाय छानियों में सकूं से जिंदगी बिता सके. आगामी चुनाव में यदि हमारी सरकार पुनः सत्ता में आयी तो बेरोजगारों को "छानी भत्ता" भी दिया जायेगा.
सभा में हवाई योजना मंत्री जी ने पहाड़ों के विकास के लिए रज्जू मार्ग बनाने की बात रखी. आवागमन की सुविधा बढ़ेगी तो सभी गाँव, नगर एक दूसरे से जुड़ सकेंगे और पलायन भी रुक सकेगा. बांधों के निर्माण से बिजली पैदा होगी और रज्जू सञ्चालन में कोई दिक्कत नहीं आयेगी. मंत्री जी ने प्रत्येक गाँव में एक paying गेस्ट हाउस बनाने का भी सुझाव रखा जिससे गाँव के ही दो चार युवकों को रोजगार मिल सकेगा.
सभा में उध्यान विद्यालय के संचालक द्वारा विचार व्यक्त किये गए की हमें प्रचलित फल आम, लीची, सेब आदि के उत्पादन के साथ साथ अपने पारंपरिक फलों जैसे किल्मोड़ा, हिंसालू, करौंदा, काफल, तिम्ला आदि के उत्पादन और संवर्धन पर अधिकाधिक ध्यान देना होगा. इन्हें ही पुराणों में कंदमूल फल कहा जाता है और इनके निर्यात से विदेशी मुद्रा भी प्राप्त हो सकेगी. फलोत्पादन तकनीक जानने हेतु जगह-जगह प्रशिक्षण केंद्र भी स्थापित किये जाने होंगे. ग्राम प्रधान सभा के अध्यक्ष द्वारा प्रत्येक धार पर बरसाती पानी के पोखर बनाकर मछली पालन का भी सुझाव रखा गया जिस पर सर्वसम्मति नहीं बन पाई. लेखक द्वारा पहाड़ की बिगड़ती अर्थव्यवस्था में बैलों पर होने वाले औसत खर्चे का ब्यौरा रखा गया और बैलों के बदले खच्चरों द्वारा हल लगाने व मंडई करने का भी सुझाव रखा गया और कहा कि खच्चर बैलों के मुकाबले ज्यादा उपयोगी साबित होगा. पहाड़वासी यदि खच्चरों की पूंछ मरोड़ कर हल लगाने में सफल हो गए तो प्रत्येक घर के आँगन में दो चार खच्चर अवश्य हिन् हिनाते हुए दिखेंगे और बैल भैंसे (male bafaloe ) की भांति तिरष्कृत हो जाया करेंगे.
अंत में उखड़ी क्लब के अध्यक्ष द्वारा सभी वक्ताओं का आभार व्यक्त किया गया और क्लब के घटते सदस्यों पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि अन्य भाषा संस्कृति के लोग जहाँ अपने क्लबों पर हजारों रूपया बहाते हैं,अपने समाज और संस्कृति के लिए बेधड़क प्रयास करते हैं, वहीं हमारे लोग अपनी बोली भाषा और अन्न को अपनाने में पिछड़ापन महसूस करते हैं. शदियों से मन में घर कर गए इस 'कॉम्लेक्स' को उखाड़ फेंकने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि यदि सभी लोग साथ दें तो हम प्रत्येक जिला मुख्यालयों में कम से कम उखड़ी क्लब की एक एक धर्मशाला अवश्य बनवायेंगे.
शाशकीय और प्रशासकीय रंग ढंग पर एक सुंदर सटीक व्यंग्य . लिखते रहिये
ReplyDeleteखंखरियाल जी! आपको रचना पसंद आयी और आपने मुझे निरंतर लिखते रहने को प्रेरित किया है, धन्यवाद !..... बहुत अच्छा लगा. लेकिन आप अपने मित्रों से भी परिचय करा सको तो खुशी होगी. ......आप भी निरंतर लिखते रहें, प्रसन्नता होगी..... शुभकामनाओं दगड़ा ......
ReplyDeleteसभा में उध्यान विद्यालय के संचालक द्वारा विचार व्यक्त किये गए की हमें प्रचलित फल आम, लीची, सेब आदि के उत्पादन के साथ साथ अपने पारंपरिक फलों जैसे किल्मोड़ा, हिंसालू, करौंदा, काफल, तिम्ला आदि के उत्पादन और संवर्धन पर अधिकाधिक ध्यान देना होगा. इन्हें ही पुराणों में कंदमूल फल कहा जाता है और इनके निर्यात से विदेशी मुद्रा भी प्राप्त हो सकेगी. फलोत्पादन तकनीक जानने हेतु जगह-जगह प्रशिक्षण केंद्र भी स्थापित किये जाने होंगे. ग्राम प्रधान सभा के अध्यक्ष द्वारा प्रत्येक धार पर बरसाती पानी के पोखर बनाकर मछली पालन का भी सुझाव रखा गया जिस पर सर्वसम्मति नहीं बन पाई. लेखक द्वारा पहाड़ की बिगड़ती अर्थव्यवस्था में बैलों पर होने वाले औसत खर्चे का ब्यौरा रखा गया और बैलों के बदले खच्चरों द्वारा हल लगाने व मंडई करने का भी सुझाव रखा गया और कहा कि खच्चर बैलों के मुकाबले ज्यादा उपयोगी साबित होगा. पहाड़वासी यदि खच्चरों की पूंछ मरोड़ कर हल लगाने में सफल हो गए तो प्रत्येक घर के आँगन में दो चार खच्चर अवश्य हिन् हिनाते हुए दिखेंगे और बैल भैंसे (male bafaloe ) की भांति तिरष्कृत हो जाया करेंगे.
ReplyDelete....सटीक व्यंग ......
माया बांद के बहाने के आपने पहाड़ों की बिगड़ती अर्थव्यवस्था का बहुत ही जीवंत चित्रण कर आज किस तरह विकास के नाम पर बंदरबांट और कागजी कारवाई और भाषणबाजी के बल पर विकास हो रहा है, उसे एक तीक्ष्ण व्यंग के माध्यम से व्यक्त किया है ....
सार्थक सन्देश देती आपकी इस प्रस्तुति के लिए आभार
लेख पर आपकी प्रतिक्रियाके लिए धन्यवाद कविता जी.
ReplyDeleteसुंदर सटीक व्यंग्य .
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
karara vyang !
ReplyDeleteI have learn several just right stuff here. Certainly worth bookmarking for revisiting.
ReplyDeleteI wonder how much attempt you set to make this sort of wonderful informative
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