श्री अमरनाथ जी के दर्शन की अभिलाषा और कश्मीर घाटी के अभिभूत कर देने वाले सौन्दर्य के रसपान की उत्सुकता के साथ जम्मू से हमारी यात्रा आरम्भ हुयी ठीक साढ़े सात बजे सुबह. जम्मू नगर को पीछे छोड़ते हुए गाड़ी तेजी से आगे बढ़ रही थी मानो उसे भी भोले के दर्शनों की जल्दी हो. मै साथियों से आग्रह कर ड्राइवर की बगल वाली सीट पर बैठकर आँखों को पूरी तरह खुला रखता हूँ कोशिश है कि कोई भी दृश्य छूट न पाए. जम्मू से ऊधमपुर तक लगभग मैदानी भूभाग की यात्रा है. ऊधमपुर जिले का जिला मुख्यालय है यह नगर. यहाँ से धीरे-धीरे चढ़ाई शुरू होती है और साथ ही शुरू होते हैं सुन्दर दृश्यावलियाँ. मानो कश्मीर हमें पुकार पुकार कर बुला रहा हो. ऊधमपुर से चालीस किलोमीटर पर छोटा सा क़स्बा पड़ता है कुद. सरदार सतविंदर जी गाडी रोकते हैं, यहाँ पर पंजाब के एक श्रृद्धालु ने लंगर की व्यवस्था की हुयी थी, जम्मू स्टेशन पर सुबह एक चाय ली थी अतः सभी यात्री नाश्ता करते हैं. यहाँ पर कुछ दुकाने व ठीक-ठाक रेस्टोरंट हैं और फिर आठ किलोमीटर दूरी पर स्थित है जम्मू क्षेत्र का प्रसिद्द हिल स्टेशन पातनी टॉप. समुद्र तल से लगभग 2040 मीटर ऊँचाई पर और चीड़, देवदार आदि घने वृक्षों से आच्छादित यह मनोहारी व रमणीक क्षेत्र एक चौरस भूमि पर बसा हुआ है. स्कीइंग, पैराग्लैडिंग आदि खेलों के अतिरिक्त यहाँ पर एक गोल्फ का मैदान भी है. आज की भागम-भाग की जिंदगी में यहाँ होटल, रेसोर्ट्स या गेस्ट हाउस में रूककर कुछ दिन सकून से बिताये जा सकते हैं और प्रकृति का सानिद्ध्य प्राप्त किया जा सकता है. पातनी टॉप से बीस किलोमीटर दूरी पर सुध महादेव का मंदिर है. सावन की पूर्णिमा को यहाँ का दृश्य अत्यंत मनभावन होता है.
बनिहाल - अब जवाहर टनल पास ही है |
पहलगाम-लिद्दर तट पर सतविंदर, परिचालक व सुरक्षा कर्मी संग लेखक |
भूविज्ञान की दृष्टि से देखें तो कश्मीर घाटी हिमालय की काराकोरम, जस्कार (या जंस्कार ) तथा पीर पंजाल श्रेणियों के मध्य स्थित है. परन्तु जनश्रुति के आधार पर हम पाते हैं कि कश्मीर के बारे में अनेक दंतकथाएं हैं. एक दंतकथा यह है कि कश्मीर पहले एक विशाल समुद्राकर झील थी जिसमे एक भयानक राक्षस रहता था. ब्रह्मा के पौत्र कश्यप ऋषि और स्वयं पार्वती ने उस राक्षस का संहार किया तथा झील को लगभग खाली करा दिया. विशाल पर्वताकार राक्षस मृत्यु के उपरांत मिटटी पत्थरों के ढेर में तब्दील हो गया, जो कि आज हरी पर्वत के नाम से विख्यात है.
काजीकुंड क्षेत्र (अनंतनाग) का अनुपम सौन्दर्य |
आगे कुछ दूरी पर टोल पॉइंट है लोअर मुण्डा. आज लगभग सभी राष्ट्रीय राजमार्ग पर टोल वसूलने के लिए अच्छी व्यवस्था कर ली गयी है, चालक बिना अपनी लेन से हटे, बिना नीचे उतरे ही टोल जमा करते है और वह भी कुछ ही पलों में. परन्तु लोअर मुण्डा में टोल जमा करने में इतनी अव्यवस्था है कि गाड़ियाँ जहाँ-तहां खड़ी होती है और समय भी ज्यादा बर्बाद होता है. लोअर मुण्डा से आगे काजीकुण्ड क़स्बा है. श्रीनगर व आगे घाटी के लिए भारत सरकार द्वारा यहाँ से रेल लाइन बिछाकर कश्मीर वासियों को एक अच्छी सौगात दी गयी है. शीघ्र ही वह दिन भी आयेगा जब काजीकुंड रेल द्वारा ही जम्मू स्टेशन व शेष भारत से जुड़ेगा. आगे बढ़ते हैं तो खन्नाबल नामक स्थान पर राष्ट्रीय राजमार्ग को छोड़कर हम दायीं ओर मुड़ जाते हैं 45 किलोमीटर दूरी पर स्थित पहलगाम की ओर, जो कि हमारा पड़ाव है. और बायीं ओर 80 किलोमीटर पर श्रीनगर है. रामबन, बनिहाल जहाँ डोडा जिले का हिस्सा है वहीं लोअर मुण्डा, काजीकुण्ड व खन्नाबल अनंतनाग जिले के अंतर्गत है. खन्नाबल से पहलगाम की ओर मार्ग चढ़ाई, उतराई वाला नहीं है लगभग सपाट ही है. हरे खेतों और जंगलों के बीच इठलाती, इतराती दूधिया जलधारा वाली लिद्दर नदी सड़क के बायीं ओर बहते हुए देखना आनंदित करता है और सड़क पर धारा के विपरीत दिशा में आगे बढ़ते हुए किसी नहर के किनारे किनारे चलने का सा अहसास होता है. मौसम जहाँ इतना सुहावना, प्रकृति इतनी स्निग्ध वहीं नीरवता छाई हुयी, हवा कुछ सहमी सहमी सी. सड़क के दोनों और हर दस पंद्रह कदम पर अर्धसैनिक बलों के जवान दिखाई देते हैं अतिरिक्त रूप से चौकस और चौकन्ने. हाथों में लोडेड ए के 47 रायफल या एस एल आर और तर्जनी ट्रिगर पर. मालुम हुआ की कुछ दिन पहले तक अलगाववादियों द्वारा अमरनाथ यात्रियों पर पत्थर फेंके जा रहे थे. जिससे अनेक गाड़ियाँ टूटी और कई यात्री घायल हुए. अर्धसैनिक बलों के जवानों का ही हौसला था कि वे आतंक को रोक पाए. शाम अँधेरा होने से पूर्व हम नुनावल कैम्प (पहलगाम) पहुँच जाते हैं. एक बात जो मै इन बारह घंटों के दौरान गौर कर रहा था कि सरदार सतविंदर सिंह हर उस जगह पर गाड़ी बिना कहे ही रोक दे रहे थे जहाँ पर हमें लग रहा था कि कुछ खाना पीना चाहिये. मैंने आखिर में यह बात पूछ ही ली तो कहने लगे "अजी, मै कहाँ आपका खियाल रख रहा था, वो तो मेरा पेट ख़राब चल रहा, इसलिए बार-बार गाड़ी रोकनी पड़ रही थी." यह सुनकर सभी लोग ठहाका मार कर हंस पड़े.
अगले अंक में जारी ........
आपके माध्यम से हम भी यात्रा सुख पा ले रहे हैं । सुन्दर चित्र एवं वर्णन। आभार इस सुखद यात्रा को करवाने का।
ReplyDeletebahut hi rochak chitramay yaatra vratant padhkar man ko bahut achha laga... ..sach yaatra ka apna ek alag hi romanch hota hai aur us yaatra ko sajokar rakhne mein bhi alag hi aanand aata hai..
ReplyDeleteprastuti hetu aabhar
नमस्कार सर ,
ReplyDeleteशब्द बहुत कुछ कहने की ताकत रखते है , पर यदि उनके साथ चित्र भी जुड़ जाएँ तो यक़ीनन शब्दों की खूबसूरती और भी बढ़ जाती है | आपकी इस पोस्ट में तो थ्री डी सा असर है एक पल के लिए तो लगा की हम भी यात्रा कर रहे हैं | पहाड़ों की यात्रायें अक्सर इतनी ही खूबसूरत होतीं हैं | इतनी सुन्दर और खूबसूरत पोस्ट द्वारा हमें यात्रा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद |
पहाड़ों की यात्रायें अक्सर इतनी ही खूबसूरत होतीं हैं|सुन्दर चित्र एवं वर्णन|
ReplyDeleteagar fhirdesh barhaya jammi asth hami asth-4
ReplyDeleteपहाड़ी यात्रा का अत्यंत ही सजीव और लालित्य पूर्ण वर्णन.पौराणिक कथाओं को उद्घृत करने से वर्णन की गुणवत्ता और भी बढ़ गई है.
ReplyDelete@धन्यवाद दिव्या जी
ReplyDelete@धन्यवाद कृति जी
@धन्यवाद कविता जी
@धन्यवाद जोशी जी
@धन्यवाद राजेंद्र जी
@धन्यवाद अरुण जी!
श्रीअमरनाथ यात्रा पर टिपण्णी के लिए आपका धन्यवाद.
मन को कुछ सकून मिला कि कुछ लिख रहा हूँ तो कोई तो है जो समय निकाल कर पढ़ रहे हैं, कमेन्ट कर रहे हैं. आशा है इसी तरह हौसला आफजाई करते रहेंगे.
मैं तीसरी और अंतिम कड़ी की प्रतीक्षा में हूँ इसलिए अभी कुछ नहीं लिखा रह हूँ .
ReplyDeleteसुन्दर चित्र एवं वर्णन। आभार,आगे का इंतजार है
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सुंदर यात्रा चल रही है, मुझे पता ही न था।
ReplyDeleteअगर आप मेल न करते तो पढने से चूक जाता।
किसी दिन सर्च इंजन से ही पढता।
आभार