नारी तेरे कितने रूप छाया:गूगल |
तुम्हारे मुखर व स्पष्टवादी होने की पीड़ा मै सदा ही भोगता रहा भाभी माँ
मुझे इस बात का दुःख नहीं है भाभी माँ कि -
कुचल देती थी तुम अक्सर मेरी देर रात तक पढने की इच्छा को,कि
जाना है सुबह खेतों में फसल बुवाई, रोपाई या कटाई, मंड़ाई को,
या फिर जंगल में घास, चारा, लकड़ी काटने या ढोर-डंगर चुगाने को ,
और कभी रिश्ते की मामी,बुआ,चाची,ताई बुलाने जाने को ! मुझे तुम्हारे .......
मुझे इस बात का दुःख नहीं है भाभी माँ कि -
किताबों से अधिक महत्व दिया तुमने लोहे-लकड़ी के कृषि औजारों को
रिंगाल के सूप, टोकरों को या सन से बटी हुयी रस्सियों को, क्योंकि अक्सर
कालेज से घर लौटकर रखे पाता मै औजार या टोकरे अपने बिस्तर पर, या
दाल, मिर्च, धनिया, मसाले रखे होते मेरी पढाई की मेज पर ! मुझे तुम्हारे ............
मुझे इस बात का दुःख नहीं है भाभी माँ कि -
घर के छोटे से कोने में देवी-देवताओं की फोटुओं, मूर्तियों के बीच
सजा रखी क्यों तुमने मेरे शहीद फौजी भाई की पुरानी तस्वीर और दीप, शंख, घंटी, नारियल के साथ जाने क्यों रखे हुए हैं
कुलदेवता, भैरों, नरसिंग के नाम से पुड़ियों में कई-कई उठाणे ! मुझे तुम्हारे ............
मुझे इस बात का दुःख नहीं है भाभी माँ कि -
अपनी तरह के स्पष्टवादी लोगों से क्यों करती हो नफरत, तभी तो
बात-बेबात फूट पड़ती पणगोले सी किसी पर अकारण ही, और कभी
हाथों में ज्यूंदाल लिए खड़ी नतमस्ता देवता-अदेवता के हुंकार पर
मांगती वरदान अपने-पराये और गाँव-कुनबों की राजी ख़ुशी का ! मुझे तुम्हारे .............
अरे वाह कितना सुन्दर लिखा है... पूरा पाहाड का गाँव उतार दिया है पन्ने पर ..कितना सत्य ... उम्दा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, हमारे पहाड़ की छबि को बहुत सुन्दर ढंग से चित्रण किया है धन्यवाद|
ReplyDeleteकहीं गहरा दर्द है रिश्तों के गणित का। इस पर एक शेर है---
ReplyDeleteनही है ज़िन्दगी के इम्तिहाँ का भी गणित कोई
समझ पाये न वो मज़्मून हम समझा नही पाये।
रिश्तों मे हम कई बार केवल अपना पक्ष ही देख पाते हैं दूसरे के मन मे क्या है क्यों है नही देख पाते शायद दोनो तरफ से समझने मे कमी रह जाती है। शिकायत ज़ायज़ है बहुत अच्छे से दिल की बात कही। शुभकामनायें।
अच्छा लगा यह वर्णन !
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें !!
बहुत सुंदर रचना है।
ReplyDeleteघर के छोटे से कोने में देवी-देवताओं की फोटुओं, मूर्तियों के बीच
सजा रखी क्यों तुमने मेरे शहीद फौजी भाई की पुरानी तस्वीर
और दीप, शंख, घंटी, नारियल के साथ जाने क्यों रखे हुए हैं
कुलदेवता, भैरों, नरसिंग के नाम से पुड़ियों में कई-कई उठाणे !
सच ये ऐसा सवाल है कि जवाब देना मुश्किल होगा भाभी मां के लिए.. बहुत शुभकामनाएं
रावत जी पहाड़ के विद्यार्थियों की मज़बूरी प्रस्तुत कर दी ऐसे अधिकांश तह विद्यार्थी झेलते रहते है
ReplyDeletewhat a description!!!
ReplyDeleteबहुत ही मर्मिक ढ़ंग से आपने पूरे पहाड़ों का दर्द बयान कियाहै,
ReplyDeleteबधाई,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
चन्द्रकुंवर बर्त्वाल जी की कुछ कवितायें मेरे पास हैं, जरा समय निकाल कर टाईप करुंगा, आपकी सुझाव का बहुत बहुत आभार,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
गहन चिंतन से जन्मी रचना,आभार
ReplyDeleteगहन चिंतन......हमारे पहाड़ की छबि को बहुत सुन्दर ढंग से चित्रण किया है हार्दिक शुभकामनायें !!
ReplyDeletewah ! bhawmai prastuti.
ReplyDeleteabhar uprokt post hetu....
घर के छोटे से कोने में देवी-देवताओं की फोटुओं, मूर्तियों के बीच
ReplyDeleteसजा रखी क्यों तुमने मेरे शहीद फौजी भाई की पुरानी तस्वीर
और दीप, शंख, घंटी, नारियल के साथ जाने क्यों रखे हुए हैं
कुलदेवता, भैरों, नरसिंग के नाम से पुड़ियों में कई-कई उठाणे !
बहुत सुंदर रचना है।
यार भैजी भलु लिखंदा तुम! अपणा गढ़वाला का लोगों का ब्लॉग देखिक भलु लागुणु च ...इनी लिखंदा रहियां ....धन्यवाद जी!
ReplyDeleteझे इस बात का दुःख नहीं है भाभी माँ कि -
ReplyDeleteअपनी तरह के स्पष्टवादी लोगों से क्यों करती हो नफरत, तभी तो
बात-बेबात फूट पड़ती पणगोले सी किसी पर अकारण ही, और कभी
हाथों में ज्यूंदाल लिए खड़ी नतमस्ता देवता-अदेवता के हुंकार पर
मांगती वरदान अपने-पराये और गाँव-कुनबों की राजी ख़ुशी का !
.....ek saakar chitra upasthit kar diya aapne... padhkar gaon mein aise drashy kee yaad aane lagi.... bahut badiya rachna...aabhar!
ये मासूम सी शिकायत का रिश्ता ही शायद असली होता है .......आभार !
ReplyDeletebahut hi achi kavita likhi hai aapne...bhadhai !
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