प्रायः ऐसा होता है कि अपार आस्था, अगाध श्रृद्धा और बड़े उत्साह के साथ हम किसी मन्दिर में जाते हैं. परन्तु वहां का वातावरण, पुजारियों की धनलोलुपता या फिर सुरक्षाबलों की उपेक्षा मन में वितृष्णा भर देता है और जब लौटते हैं तो अनास्था लेकर. घुमक्कड़ी के कारण अनेक मंदिरों के दर्शन करने का सौभाग्य मिला. अमरनाथ गुफा -कश्मीर, रघुनाथ मंदिर व वैष्णोदेवी मंदिर -जम्मू, स्वर्णमंदिर -अमृतसर, बिडला मंदिर, कमल मंदिर व अक्षरधाम मंदिर -दिल्ली, कृष्ण जन्मभूमि व द्वारिकाधीश मंदिर -मथुरा, हनुमान मंदिर -लखनऊ, शिवमंदिर -शिवसागर(आसाम), श्रीनाथ
वैष्णो देवी मंदिर व कार्यालय - भुवन, जम्मू |
मंदिर -नाथद्वारा, उदयपुर, हब्सीगुड़ा हनुमान मंदिर व बिडला मंदिर - हैदराबाद, तिरुपति मंदिर, शिव कांची व विष्णु कांची -कांचीपुरम चेन्नई, मीनाक्षी मंदिर -मदुरै, उत्तर और पूर्व टावर -रामेश्वरम, कन्याकुमारी मंदिर और उत्तराखंड के बद्रीनाथ, केदारनाथ व गंगोत्री सहित सैकड़ों मंदिरों में सर नवा चुका हूँ. ऐसा नहीं है कि मै बहुत आस्तिक हूँ, धर्मपरायण हूँ या मुझे कोई परेशानी है. कुछ भी नहीं. बस जाता हूँ केवल निस्वार्थ भाव से,
बद्रीनाथ मंदिर - उत्तराखंड |
बिडला मंदिर - हैदराबाद |
चुके हैं. शिवलिंग तो मात्र डेढ़ फिट का ही रह गया था किन्तु आगे से ग्रिल चढ़ी होने के कारण मत्था भी नहीं टेक सकते थे. अमरावती नदी में कोल्ड ड्रिंक, मिनरल वाटर की खाली बोतलें, नमकीन, चिप्स के खाली पोलिथीन जगह-जगह फैले हुए थे. गलती भगवान की नहीं है. किन्तु जाने क्यों कसैलापन सा भर आता है.
महासू मंदिर - हनोल, देहरादून |
मीरा मंदिर - चित्तौड़गढ़ (राजस्थान) |
मथुरा वृन्दावन में श्री कृष्ण जन्म भूमि मंदिर को छोड़कर स्थिति ज्यादा ठीक नहीं है. द्वारिका धीश मंदिर में पूजा से पूर्व पुजारी हमें यमुना में नहाने के लिए बाध्य करने लगा तो हमने बताया कि हम गंगा - यमुना के मायके से हैं और यमुना का जो स्वच्छ व निर्मल स्वरुप वहां पर है उसकी तुलना में हमें यह गन्दा नाला सा ही लग रहा है. अतः इसमें नहाना तो दूर, हम आचमन भी नहीं कर पाएंगे. बस! इतना सुनकर पुजारी क्रोधित हो गया और हम बिन पूजा किये दर्शन करने चले गए. वहीं वृन्दावन रंग जी मंदिर में पुजारी हमसे पूजा, नैवेध की अपेक्षा मंदिर में मार्बल पट्टिका लगवाने के लिए बहस करने लगा. बहस ज्यादा लम्बी खिंच गयी तो तंग आकर मेरी पत्नी ने पूजा के लिए पर्स से निकाले रुपये गाइड के हाथ में रख दिया और बाहर प्रांगण में चली गयी. वह दुबला पतला गाइड हमारे साथ सुबह से ही केवल दस रुपये में नंगे पैर चल रहा था. (गाइड बेचारा इतना सीधा कि दोपहर में खाना खाने हम लोग होटल में बैठे तो वह बाहर खड़ा हो गया इसलिए कि खाने के पैसे कहीं हम उसके मेहनताने से न काट दे). उदयपुर नाथद्वारा में श्रीनाथ मंदिर है. नाम बड़ा है किन्तु बाहर खंडहर सा दीखता, अनियंत्रित भीड़, और चारों ओर कागज, जूठे दोने, पोलिथीन की गन्दगी बिखरी पड़ी हुयी. भीतर भक्तों को इशारे या हाथ से नहीं, साफा मारकर आगे बढाया जा रहा था. घनी आबादी के बीच स्थित बद्रीनाथ मंदिर में तो पूजा की थाली सिस्टम है- 51/, 101/, 501/, 1001/, 5001/ और ऊपर लाखों तक. पुजारी थाली देखकर ही भक्तों की औकात भांप जाते हैं. जैसी थाली वैसे पुजारी के चेहरे के भाव. हाँ, रावल अवश्य समद्रष्टा हैं और उनके चेहरे का तेज उनके मन के
मीनाक्षी मंदिर - मदुरै (तमिलनाडु ) |
ऋषिकेश, हरिद्वार के मंदिरों की स्थिति किसी से छुपी हुयी नहीं है. उत्तरकाशी (उत्तराखंड) में नगर के बीचों-बीच स्थिति है- काशी विश्वनाथ मंदिर. गंगोत्री, यमनोत्री के बाद यह जिले का सबसे बड़ा मंदिर है. और आमदनी के हिसाब से पूरे वर्ष भर खुला रहने के कारण यह उनसे बीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं है. एक बार
अभिप्राय यह है कि मंदिरों में हम अत्यधिक आस्था व अगाध श्रृद्धा लेकर जाते हैं उसी आस्था व उसी विश्वास के साथ हम लौटे, वही उत्साह हमारे मन में बना रहे तो तभी मंदिरों की, व्यवस्थापको व पुजारियों की जय जय है.
सुबह ही मै सपरिवार मंदिर में चला गया. उधर हमारा मंदिर के दहलीज़ पर पहुंचना था कि पुजारी का आखरी कश लेकर बीडी का ठूंठ बाहर दरवाजे की और फेंकना जो सीधा हमारे क़दमों पर गिरा. फिर पुजारी ने एक-दो लीटर पानी उड़ेलकर शिवलिंग धोया. किसी भक्त द्वारा लाया गया दूध (जो दूध कम पानी अधिक था) शिवलिंग पर डाल कर मल दिया. और फिर फूल-पत्तियों से शिवलिंग सजाया और यंत्रवत "पूजा" शुरू कर दी. बाहर मंदिर के प्रांगण में व चारों ओर बहुत गन्दगी बिखरी पड़ी है. जिसकी ओर न पुजारी का ध्यान है, न व्यवस्थापकों का और न ही भक्तो का.
गाँव में आपने देखा होगा कि एक ही दुकान में राशन के अलावा कपड़े, जूते, खेती के औजार, पुताई का चूना, पेंट आदि सभी कुछ मिल जाता है. प्रायः कई मंदिरों का स्वरुप कुछ ऐसा ही हो गया है. मूल मंदिर तो किसी एक विशेष भगवान या देवी का है किन्तु उसमे पुजारियों द्वारा धीरे-धीरे दूसरे देवता भी स्थापित किये जाते हैं ताकि किसी भी देवता/देवी का भक्त उस मंदिर से बिन पूजा किये न लौट जाये. दूसरे शब्दों में कहें तो पुजारियों की सभी संताने अलग-अलग देवता/देवी के नाम से अपनी दुकानदारी चला सके.
गाँव में आपने देखा होगा कि एक ही दुकान में राशन के अलावा कपड़े, जूते, खेती के औजार, पुताई का चूना, पेंट आदि सभी कुछ मिल जाता है. प्रायः कई मंदिरों का स्वरुप कुछ ऐसा ही हो गया है. मूल मंदिर तो किसी एक विशेष भगवान या देवी का है किन्तु उसमे पुजारियों द्वारा धीरे-धीरे दूसरे देवता भी स्थापित किये जाते हैं ताकि किसी भी देवता/देवी का भक्त उस मंदिर से बिन पूजा किये न लौट जाये. दूसरे शब्दों में कहें तो पुजारियों की सभी संताने अलग-अलग देवता/देवी के नाम से अपनी दुकानदारी चला सके.
ऐसा नहीं है कि मै मंदिरों के खिलाफ हूँ या भगवान में मेरी आस्था नहीं है. हब्सीगुड़ा-हैदराबाद में एक हनुमान मंदिर है-NGRI की बौंडरी से सटा हुआ. स्वरुप में छोटा है किन्तु भव्य. एक सुबह पूजा अर्चना के बाद मैंने कुछ राशी पूजा के थाल में डाल दी और कुछ दानपात्र में. पुजारी ने हमारे देखते-देखते थाल की राशी कट्ठी कर दानपत्र के हाथी सूंडनुमा मुंह में डाल दी. अवाक् रह गया. क्योंकि प्रायः पुजारी की नजरें यह आव्हाहन करती है कि भक्त दानपात्र की अपेक्षा राशी पूजा के थाल में ही डालें जिससे भक्त को सीधा पुण्य प्राप्त हो सके
दूसरा किस्सा है हरमंदर साहिब (स्वर्ण मंदिर) अमृतसर का.(हालाँकि यह गुरुद्वारा है ) परिवार के सदस्यों के साथ प्रवेशद्वार पर जूते उतारकर एक और रखना चाहा तो साफ़ सफ़ेद कुरते पजामे में एक अच्छे डील-डौल के सरदार ने हाथ आगे बढ़ा दिया और हमारे धूल-धूसरित जूते हाथों में ऐसे लिए जैसे कोई पूजा की थाल हो और कंधे में रखे साफे से जूते झाड़ने लगा. सरोवर में पञ्चस्नानी के बाद कच्चा प्रसाद लेने गए तो देखा एक खिड़की पर रुपये देकर कूपन मिल रहे थे और कूपन पर प्रसाद दूसरी खिड़की से. आप रुपये चाहे कितने भी
दो पर कूपन एक ही. इसलिए प्रसाद भी बराबर. हिन्दू मंदिरों की भांति 1101/-, 2101/- या 5101/- की पूजा नहीं. कच्चा प्रसाद के बदले में कढाह प्रसाद मिलता है .
तिरुपति मंदिर - तिरुमाला (आंध्र प्रदेश) |
तीसरा वाकया है कमल मंदिर दिल्ली का. यह बहाई धर्म का मंदिर है. यह अनूठी वास्तुकला के ही नहीं, अपितु साफ सफाई व पूजा पद्धति के लिए भी जाना जाता है. तीन ओर से कांच की दीवार से ढका प्रार्थना सभा भवन में प्रत्येक मेज पर माइक लगा है. जिससे आप सामने खड़े उपदेशक से संवाद बना सके. अन्यथा सत्संग, कथा, पूजा आदि में 'वन वे' होता है.
वैष्णो देवी मंदिर की गुफा में पिंडियों के दर्शन ठीक से भी नहीं कर पाए थे कि अर्धसैनिक बल के जवान ने घूरती नज़र से ही आगे बढ़ने का इशारा कर दिया...........
ReplyDeleteसही कहा रावत जी आपने, पिछले साल की अपनी वैष्णो देवी यात्रा के दौरान मैं भी बहुत सारे ( खट्टे अधिक मीठे कम ) अनुभवों को प्रसाद के रूप में समेट कर अपने साथ ले आया था, अनुभवों को साझा करती उपरोक्त ज्ञान वर्धक पोस्ट हेतु आपका आभार, जय माता दी .................
बहुत ही अच्छे उदगार व्यक्त किये हैं आपने .श्राद्ध पर्व पर भी भी किसी गरीब गुरबे को ज़िमाने का फायदा है पंडित को नहीं .और आपने तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम का ज़िक्र नहीं किया जहां दर्शन भी किस्म किस्म के हैं -जनरल ,वी आई पी ,वी वी आई पी रेट भी अलग अलग हैं .लेकिन भाई साहब विदेश में मंदिरों का स्वरूप साफ़ सुथरा है .मूर्तियों पर आप कुछ भी नहीं चढ़ा सकते .बाहर का खाद्य अन्दर नहीं ला सकते .डॉलर दो अपना पकवान बनवाओ मंदिर की मोडरण रसोई में तब वहां भोज होगा सलीके से .
ReplyDeleteसुबीर जी, दोष व्यवस्था का ही नहीं है, बल्कि आपका और हमारा भी है, जिस यात्रा में जितना कष्ट हो, वही यात्रा यहां सफल मानी जाती है, इसलिये तीर्थ को चलाने वाले trust जानबूझ कर कुछ नहीं करते और ठग अपनी दुकान चलाते रहते है,
ReplyDeleteये बात और है कि कुछ जगह trust ही ठग बनकर बैठ गये है,
बाकी तो VIPs की महिमा से तो सभी वाकिफ है, आप घंटों लाइन में लगें, आरती के लिये पैसा दें और वी.आई. पी. दान के पैसे से बनाई धर्मशाला में ए.सी. की हवा में मजे करें और बिना लाइन ले फुर्सत से दर्शन करके धर्मलाभ कमायें,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सुबीर जी ,आपने मन्दिरों के एकदम वास्तविक रूप का ही वर्णन किया है .... अपने अब तक के अनुभवों के आधार पर ,अब तो मैं घर पर ही पूजा करना बेहतर समझती हूँ ..... आप चाहे किसी बड़े नामचीन मन्दिर में जाइये या फ़िर अपने मुहल्ले के मन्दिर ,वहाँ ईश्वर की सत्ता का आभास हो या न हो ,वही अव्यवस्था सर्वत्र विद्यमान रहती है.... आभार !
ReplyDeleteअनुभवों को साझा करती उपरोक्त ज्ञान वर्धक पोस्ट हेतु आपका आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आलेख ! यदि दुकानदार आदि धर्म के के नाम पर अपना निजी बिजनेस न चलायें तभी बेहतर है .! इस जागरूक करते आलेख के लिए धन्यवाद !
ReplyDeletemera aagrah se ek chakkar aap Dilwada jain temple ya sravan belgola ya kahee bhee kisee jain mandir ka lagaiye aapkee soch hee badal jaegee.aapke anubhav padkar laga meree soch ko shavd aapne diye hai......
ReplyDeleteAabhar.
अज पुजारी वर्ग किसी माफिया से कम नही। मंदिरों के नाम पर लूट हो रही है अब ये मंदिर कम और दुकाने अधिक लगती हैं। आज के साधू सन्तों का भी दोश है अपने अपने ए सी आश्रम और मन्दिर बना लेते हैं फ्रि इन मन्दिरों की व्यवस्था केवल पुजारिओं के हाथ मे रहती है। सन्तों को चाहिये कि अपनी आरामगाहें छोड कर धर्म के प्रतीक इन मन्दिरों की ओर ध्यान दें। शुभकामनायें।
ReplyDeleteइतने कम समय में इतने अधिक मंदिरों की आप यात्रा कर चुके है वृतांत जो लिखे बिलकुल सजीव चित्र प्रस्तुत करते है .
ReplyDeleteसुबीर जी! बहुत अच्छी जानकारी और तस्वीरों को देखकर मन को बहुत अच्छा लगा और जो आपने इतने दूर से मंदिरों में ठीक ढंग से दर्शन न करने की बात कही, वह लगभग सभी बड़े बड़े मंदिरों में आम बात है... मन को बहुत ठेस तो पहुँचती हैं जब हम दूर-दूर से यात्रा कर ठीक ढंग से दर्शन भी नहीं कर पाते.. हर जगह जो वी आई पी लोगों को ही विशेष सुविधा दी जाती है उससे लगता है आम आदमी की तो कहीं भी पूछ नहीं है... और जब भगवान् के ही मंदिर में इतना भेदभाव होता होता है तो मन को ठेस पहुंचना लाज़मी है... मंदिरों में लूट खसूट और जो भेदपरक माहौल व्याप्त है वह सच में आम लोगों के लिए बहुत कष्टसाध्य है.... .बहरहाल हमें भी इतनी जगह की आपने सैर करा दी, मन को बहुत अच्छा लगा...
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति के लिए आभार और शुभकामनायें!
सुबीर जी ,आपने मन्दिरों के एकदम वास्तविक रूप का सुन्दर वर्णन किया है ....हमने भी दर्शन कर लिए अच्छा लगा... सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार और शुभकामनायें!
ReplyDelete"अभिप्राय यह है कि मंदिरों में हम अत्यधिक आस्था व अगाध श्रृद्धा लेकर जाते हैं उसी आस्था व उसी विश्वास के साथ हम लौटे, वही उत्साह हमारे मन में बना रहे तो तभी मंदिरों की, व्यवस्थापको व पुजारियों की जय जय है"
ReplyDeleteसच कड़वा होता है लेकिन कहना भी पड़ता है, सराहनीय प्रस्तुति - आभार और साधुवाद
मैं पांच साल पहले वैष्णो देवी मंदिर गई थी ! तिरुपति और मदुरै में कई बार जा चुकी हूँ! आपने बहुत सुन्दरता से वर्णन किया है! महत्वपूर्ण और ज्ञानवर्धक जानकारी मिली! शानदार पोस्ट!
ReplyDeleteरोचक और सुन्दर चित्रण रावत जी !
ReplyDeleteHowdy just wanted to give you a quick heads up.
ReplyDeleteThe text in your article seem to be running off the screen in Chrome.
I'm not sure if this is a formatting issue or something to do with internet browser compatibility but I thought I'd post to let you know.
The style and design look great though! Hope you get
the problem fixed soon. Cheers
Visit my page ... free music downloads (twitter.Com)