Tuesday, August 07, 2018

राजनीतिक और राजनीति

लोकतंत्र में इतनी स्वतंत्रता तो है कि राजनीतिज्ञों को गाहे-वेगाहे हर कोई कोस सकता है। हाँ, कोसने का अन्दाज सबका जुदा होता है। एक साधारण व्यक्ति और एक कवि की भाषा शैली में अन्तर बहुत होता है। कुमाऊं के सुप्रसिद्ध कवि शेरदा ‘अनपढ और गढरत्न नरेन्द्र सिंह नेगी जी की उलाहना भरी रचनाओं में आप स्वयं ही देख लें।
तुम समाजाक इज्जतदार, हम भेड़-गंवार        - शेरदा अनपढ -
तुम सुख में लोटी रया,
हम दुःख में पोती रया !
तुम स्वर्ग, हम नरक,
धरती में, धरती आसमानौ फरक !

तुमरि थाइन सुनुक र्वट,
हमरि थाइन ट्वाटे-ट्वट !
तुम ढडूवे चार खुश,
हम जिबाई भितेर मुस !
तुम तड़क भड़क में,
हम बीच सड़क में !
तुमार गाउन घ्युंकि तौहाड़,
हमार गाउन आंसुकि तौहाड़ !
तुम बेमानिक र्वट खानयाँ,
हम इमानांक ज्वात खानयाँ !
तुम पेट फूलूंण में लागा,
हम पेट लुकुंण में लागाँ !
तुम समाजाक इज्जतदार,
हम समाजाक भेड़-गंवार !
तुम मरी लै ज्यूने भया,
हम ज्यूने लै मरिये रयाँ !
तुम मुलुक के मारण में छा,
हम मुलुक पर मरण में छा !
तुमुल मौक पा सुनुक महल बणैं दीं,
हमुल मौक पा गरधन चड़ै दीं !
लोग कुनी एक्कै मैक च्याल छाँ,
तुम और हम,
अरे! हम भारत मैक छा,
सो साओ ! तुम कै छा !
@@@@@@


गरीब दाता मातबर मंगत्या        - नरेन्द्र सिंह नेगी -

तुम लोणधरा ह्वैल्या,
पर हम गोर-बखरा नि छां।
तुम गुड़ ह्वै सकदां,
पर, हम माखा नि छां।
तुम देखि हमारी लाळ नि चूण,
तुमारि पूंछ पकड़ि हमुन पार नि हूण।
हम यै छाला तुम वै छाला।
तुमारी आग मांगणू
गाड तरि हम नि ऐ सकदा।
तुमारा बावन बिन्जन, छत्तीस परकार
तुम खुणी, हम नि खै सकदा।
हमारी कोदै रोट्टी, कण्डाळ्यू साग
हमारी गुरबत हमारू भाग।


तुम तैं भोट छैणी छ, त आवा
हमारी देळ्यूं मा खड़ा ह्वा
हत्त पसारा ! .... मांगा !
भगवानै किरपा सि हमुमां कुछ नी, पर
तुमारी किरपा सि दाता बण्यां छां।।

    @@@@@@

No comments:

Post a Comment