गढ़वाली के सशक्त हस्ताक्षर है वीरेन्द्र पंवार. कम शब्दों में अधिक कहने की क्षमता रखने वाले वीरेन्द्र की कवितायेँ पिछले दो दशक से गढ़वाली में अपनी उपस्थिति निरंतर दर्ज कर रही है. उनकी क्षणिकाएं पाठकों/श्रोताओं को सोचने पर विवश करती है: पैली/ यीं भूमि म़ा/ देव्तों कु बास छौ / देवतों कि ईं भूमि म़ा / मनख्यूं पर 'बास' आंणि छ. एक और क्षणिका है: चुल्ला कि आग /अर पोटगी कि आग म़ा /एक रिश्ता होंद / एक जग जान्द / हैकि मुझ जान्द . तथा हमारा पहाड़ा कूड़ा / पैली / तालों कि /नि जाणदा छा / जमानो बदलेगी / अब /मनख्यूं कि /नि जाणना छा .
परन्तु वीरेन्द्र को ज्यादा लोकप्रियता मिली " सब्बी धाणी देरादून /हूणी खाणी देरादून " से जो नरेन्द्र सिंह नेगी जी ने अपनी एल्बम 'ऐ जदी भग्यानी ' में शामिल की। अधोलिखित नयी कविता उन्होंने हाल ही में मुझे प्रेषित की है जो उतनी ही तीव्रता से हृदय को छूती है. काफी कुछ कह जाती है वीरेन्द्र पंवार यह कविता;
Ramo ji Film City | Hyd. | Photo-Subir |
हे निर्भगी !
तु कन गीत छै मिसाणी, जौं गितुन बिन्सिरी नि देखी,
जौन सियां गोरु तका अर्यां मोर नि उगर्याँ,
जौन नि सारि उकाल्युंक पाणी , पंदेर्यु कि बाच बि नि बनानी जू ,
दथ्युं का छुंनका बि नि बिन्गनी जौन , पलयेन्त्हरू तक नि पछ्यानी ,
तु कन गीत छै मिसाणी, जौं गितुन बिन्सिरी नि देखी,
जौन सियां गोरु तका अर्यां मोर नि उगर्याँ,
जौन नि सारि उकाल्युंक पाणी , पंदेर्यु कि बाच बि नि बनानी जू ,
दथ्युं का छुंनका बि नि बिन्गनी जौन , पलयेन्त्हरू तक नि पछ्यानी ,
नि बिंग्नी घसेन्यु का खुदेर गीत , बाजूबंद कि रस्याण,
नि पछ्यांनी थड्या चौंफला का झुमैलो , बार - तिवार कौथिगु का मेला ,
नि पछ्यांनी थड्या चौंफला का झुमैलो , बार - तिवार कौथिगु का मेला ,
जौन नि बरती चर्कड़ी कादैं , हाथ -खुत्युं कि बारामासी तिड्वाल
जौन नि देखि सर्गे आसमा तपत्यंदी सांकि , दबद्यंदी आंखी,
नि बींगी गोरु बछरू कि भौण, जौन माँ -बैन्नयुं कि पीड़ा बि नि बिंगी,
खुद म़ा लगदी बडुली पराज नि सुवांदी जौन. तु धारू -धारू गीत गाणी छै ,
जौन नि देखि सर्गे आसमा तपत्यंदी सांकि , दबद्यंदी आंखी,
नि बींगी गोरु बछरू कि भौण, जौन माँ -बैन्नयुं कि पीड़ा बि नि बिंगी,
खुद म़ा लगदी बडुली पराज नि सुवांदी जौन. तु धारू -धारू गीत गाणी छै ,
अर ल्वे का आंसु बोगाणी ब्वे , लाता ऐंची-ऐंच बुखु सी नि उड़ ,धर्तिम बी हेर ,
वख देख हपार, कों चुलंख्युं म़ा पोंचिगै सूरज , छौंप सकदी त छौंप वैकि निवती तैं ,
ठेट समोदर कि जल्द्यून म़ा सेलेगे जौन , कर सकदी त महसूस कर वीं सेली तै ,
काचा झयाद्यों म़ा सुद्दी न कर स्याणी , इन हाल म़ा न हो एक दिन ,तेरवी छैल ,
पुछू त्वे सि - लाटा तु कन गीत छें मिसाणी !!
काचा झयाद्यों म़ा सुद्दी न कर स्याणी , इन हाल म़ा न हो एक दिन ,तेरवी छैल ,
पुछू त्वे सि - लाटा तु कन गीत छें मिसाणी !!
RAWATJI...YI KAVITA KA JARIYA AJKALA GAWAYO TAI DISHA DENAI KOSIS KARI CHAA KI AAKHIR TUM GEET KAIKA WAASTA UR KANNA GEET GAANA CHAA...CHUCHON JARA SOCH BICHAR TAA KARA.....
ReplyDeletePost writing is also a excitement, if you be familiar with afterward you can write otherwise it is complex
ReplyDeleteto write.
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