खिल उठे हों बसन्त हजारों जैसे
रंग-विरंगे फूलों से मेरे लकदक पहाड़ में !
अपने में ही खोकर मुस्कराकर गुनगुनाना
छेड़ रहे हो संगीत सावन भादों के
झरने हजारों जैसे मेरे हरे-भरे पहाड़ में !
ढक देना शरमाकर कभी यूँ ही मुंह दुपट्टे से
छिप गया हो चाँद पूनो का जैसे
घनघोर मेरे चीड-देवदारू के पहाड़ में !
बातों बातों में यक-ब-यक उदास हो जाना
शांत दोपहरी में घिर आयी बदरी जैसे
आषाढ़ के मेरे उमड़ते, घुमड़ते पहाड़ में !
डूबना ख़यालों में गुमसुम पलकें बंद कर
गिर रहे हों फाहे बर्फ के जैसे
शीत भरे मेरे सर्द बर्फीले पहाड़ में !
पूनो के चाँद के साथ प्राकृतिक परिवेश में नायिका का मुंह ढंक कर शरमा जाना, अद्भुत बिंब प्रदर्शित करता है।
ReplyDeleteसुंदर कविता- आभार
ढक देना शरमाकर कभी यूँ ही मुंह दुपट्टे से
ReplyDeleteछिप गया हो चाँद पूनो का जैसे
घनघोर मेरे चीड-देवदारू के पहाड़ में !
.......बहुत सुन्दर बिम्ब संयोजन कर जीवंत चित्रण प्रस्तुत कर आपने पहाड़ को सजीव कर दिया.... बहुत बहुत आभार... आप मेरे ब्लॉग पर आये मुझे बहुत अच्छा लगा ...आपकी टिप्पणी विचारणीय है इस पर मुझे जो भी जानकारी होगी मैं ब्लॉग के माध्यम से जरुर सब तक पहुचाने का प्रयत्न करुँगी ... आप भी ब्लॉग के माध्यम से इस पर जरुर लिखियेगा ......
हार्दिक शुभकामनाएँ
सुंदर कविता- आभार .........achcha lagta hai jab kahin pr apney pahar ki baaten ho rahi hoti hai ,rok nahi pata hun swyam ko..........
ReplyDeleteशुभकामनाएँ .
डूबना ख़यालों में गुमसुम पलकें बंद कर
ReplyDeleteगिर रहे हों फाहे बर्फ के जैसे
शीत भरे मेरे सर्द बर्फीले पहाड़ में !
मोहब्बत के रंग में डूबी बहुत प्यारी पंक्तियाँ हैं .....!!
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