क्या कभी आपने सुना है कि फ़ौज का कोई सिपाही ड्यूटी के दौरान ऊंघ या सो रहा हो और कोई अदृश्य शक्ति उस सिपाही को थप्पड़ मार कर जगा दे? कभी सुना है कि बरसों पहले शहीद हुए रणबांकुरे के शहीदस्थल पर पहुँचते ही फ़ौज के जवान तुरंत सैल्यूट करें? उस स्थल पर आज भी उस शहीद के लिए बिस्तर लगाया जाता है, कम्बल तह करके रखा जाता है और सुबह जब देखते हैं तो कम्बल खुला हुआ मिलता है ? शहीदस्थल के आसपास घाटी में आज भी किसी स्त्री की चीख सुनाई दे कि "जागो ! जागो ! आ गए ! मारो ! मारो !"........ जी हाँ ! यह वाकया है तवांग जिले की नूरानांग पहाड़ियों का. जसवंतगढ़ का.
अरुणाचल प्रदेश के तवांग जिले में स्थित है नूरानांग की पहाड़ियां. जो तेजपुर (आसाम ) से तवांग रोड पर लगभग 425 किलोमीटर दूरी पर है. तवांग के उत्तर में चीन (तिब्बत) है और पश्चिम में भूटान. यह सन 1962 की बात है, जब चीन ने विस्तारवादी सोच के तहत पंचशील समझौते को धता बताते हुए भारत पर आक्रमण कर दिया था. लगभग 14,000 फीट ऊँचाई पर स्थित सीमान्त क्षेत्र की नूरानांग पहाड़ी व आसपास के इलाके का सुरक्षा का दायित्व तब गढ़वाल रेजिमेंट की चौथी बटालियन पर था. यहाँ तक पहुँचने के लिए टवांग चू नदी को पार करना होता है. हाड़ कंपा देने वाली इस ठण्ड में भी चीनी सेना 17 नवम्बर 1962 को सुबह छ बजे से ही छ से अधिक बार हमला कर चुकी थी.
से0 ले0 विनोद कुमार गोस्वामी ने एक चीनी को रायफल सहित कैद कर लिया था किन्तु विशेष परिस्थितियों में उसे मौत की नींद सुला देना पड़ा. दूसरे मोर्चे पर सेकण्ड लेफ्टिनेंट एस0 एन0 टंडन ने धैर्य और साहस के साथ चीनी सेना के आक्रमण को एक हद तक विफल कर दिया था. विशाल चीनी सेना के निरन्तर अग्निवर्षा से हिंदुस्तान के वीर सैनिक एक एक कर शहीद होते रहे. इस मोर्चे पर लैंस नायक त्रिलोक सिंह, रायफल मैन जसवंत सिंह और लैंस नायक गोपाल सिंह ही बचे रह गए थे, वे रेंगते हुए गए, शत्रु के मोर्चे पर ग्रेनेड फेंके तथा एम0 एम0 जी0 को उठाकर अपने पास ले आये. शत्रुओं के कुछ सैनिक मारे गए और कुछ घायल हो गए.
तीनों जवान शत्रुओं पर गोले बरसाते रहे. किन्तु चीनी सैनिक एक मरता तो दूसरा उसकी जगह आ कर ले लेता. और फिर उनकी ओर से निरन्तर हमला जारी रहा. जिसके परिणाम स्वरुप हमारे जवान एक एक कर देश के काम आते रहे. पीछे से किसी प्रकार की सहायता नहीं मिल पा रही थी. लड़ते-लड़ते लैंस नायक त्रिलोक सिंह और गोपाल सिंह भी वीरगति को प्राप्त हो गए. अब अकेले रायफल मैन जसवंत सिंह रावत ने मोर्चा सम्भाल लिया. वहां पर पांच बंकरों पर मशीनगन लगायी गयी थी. और रायफल मैन जसवंत सिंह छिप छिपकर और कभी पेट के बल लेटकर दौड़ लगाता रहा और कभी एक बंकर से तो कभी दूसरे से और तुरन्त तीसरे से और फिर चौथे से, अलग अलग बंकरों से शत्रुओं पर गोले बरसाता रहा. पूरा मोर्चा सैकड़ों चीनी सैनिकों से घिरा हुआ था और उनको आगे बढ़ने से रोक रहा था तो जसवंत सिंह का हौसला, चतुराई भरी फुर्ती. चीनी सेना यही समझती रही कि हिंदुस्तान के अभी कई सैनिक मिल कर आग बरसा रहे हैं. जबकि हकीकत कुछ और थी. इधर जसवंत सिंह को लग गया था कि अब मौत निश्चित है अतः प्राण रहते तक माँ भारती और तिरंगे की आन बचाए रखनी है. जितना भी एमुनिशन उपलब्ध था, समाप्त होने तक चीनियों को आगे नहीं बढ़ने देना है. और वह अलौकिक शक्ति ही रही होगी कि दरबान सिंह नेगी, गबर सिंह नेगी और चन्द्र सिंह गढ़वाली की आत्मोत्सर्ग करने की परम्परा को आगे बढाता वह वीर जवान, रणबांकुरा बिना थके, भूखे-प्यासे पूरे 72 घंटे (तीन दिन तीन रात) तक चीनी सेनाओं की नाक में दम किये रहा.
परन्तु होनी को कौन टाल सकता है. एक लामा ने चीनी सेना के सामने यह रहस्य उद्घाटन कर दिया कि वह भारतीय जवान तो अकेले ही लड़ रहा है. यह सुनते ही चीनी सेना टिड्डी दल की भांति इस गढ़सिंह पर चारों ओर से टूट पडी और प्रतिशोध के पागलपन में इस वीर जवान का सर कलम कर ले गए. चीनी सैनिक इस वीर जवान का सर लेकर अपने देश लौटे कि उससे पहले ही जसवंत की वीरता की कहानी वहां तक पहुँच चुकी थी. चीनी सेना के डिव कमाण्डर ने अपने उन जवानों को बुरी तरह फटकारा और लकड़ी की पेटी में उस सर को रखकर ससम्मान इस अनुशंसा के साथ भेजा कि " इसमें वह वीर जवान सो रहा है जिसने चीन के पूरे डिविजन को 72 घंटे तक आगे बढ़ने से रोके रखा. भारत सरकार बताये कि इस वीर की वीरता को क्या सम्मान दिया गया." यह भी अजब संयोग रहा कि जिस जसवंत सिंह का नाम भारतीय सेना ने गुमशुदा या भगोडे सैनिकों की सूची में डाल दिया था वही माँ भारती का सच्चा सपूत निकला.
ले0 ज0 बी0 एम0 कौल ने अपनी पुस्तक 'अनटोल्ड स्टोरी' में लिखा है कि " " जिस वीरता व साहस से गढ़वाली बटालियन ने चीनियों का मुंहतोड़ जवाब दिया यदि उसी प्रकार भारतीय सेना की अन्य बटालियनें भी, जो वहां पर तैनात थी, प्रयास करती तो नेफा की तस्वीर आज कुछ और ही होती" वीर जसवंत सिंह रावत के शौर्य से प्रभावित होकर आर्मी हेडक्वार्टर ने 17 नवम्बर को 'नूरानांग दिवस' तथा नूरानांग पहाड़ी को 'जसवंत गढ़' नाम दिया. इसी जसवंतगढ़ में उस वीर सैनिक को आज भी पूरे सम्मान के साथ याद किया जाता है. नूरानांग की पहाड़ियों पर जो लड़ाई हुयी उसमे कुल 162 जवान वीरगति को प्राप्त हुए, 264 कैद कर लिए गए और 256 जवान मौसम की मार से या अन्य कारणों से तितर बितर हो गए. वीरता पुरस्कार से जो सम्मानित हुए वे इस प्रकार हैं महावीर चक्र - ले0 क0 भट्टाचार्य जी एवं रा0 मै0 जसवंत सिंह रावत (मरणोपरांत), वीर चक्र - से0 ले0 विनोद कुमार गोस्वामी (मरणोपरांत), , सूबेदार उदय सिंह रावत, सूबेदार रतन सिंह गुसाईं, रा0 मै0 मदन सिंह रावत, लैं0 ना0 त्रिलोक सिंह नेगी (मरणोपरांत), लैं0 ना0 गोपाल सिंह गुसाईं (मरणोपरांत), सेना मेडल - नायक रणजीत सिंह गुसाईं आदि..
पौड़ी गढ़वाल,उत्तराखंड के वीरोंखाल के ग्राम बाडियूं, पट्टी खाटली में गुमान सिंह रावत व लीला देवी के घर ज्येष्ठ पुत्र के रूप में जुलाई 1941 को इस वीर नायक जसवंत का जन्म हुआ. हाईस्कूल करने के बाद वे अगस्त 1960 को फ़ौज में भर्ती हो गए. जसवंत के पूर्वज गढ़वाल की ऐतिहासिक वीरांगना तीलू रौतेली के वंशज माने जाते हैं. जो रावतों में विशेष जाति 'गोर्ला रावत' कहलाते हैं।
यह भी सत्य है कि महापुरुषों के सम्बंध में समाज अनेक किवदंतियां गढ़ देता है. वीर जसवंत के विषय में भी कहा जाता है कि नूरानांग पहाड़ी पर तैनाती के दौरान उनका 'सीला' नाम की स्थानीय युवती से प्यार हो गया था. कहा जाता है कि जिन 72 घंटों में जसवंत सिंह संघर्ष कर रहे थे उस समय भी वह युवती साथ थी. भोजन व्यवस्था व हौसला आफजाई वही करती रही. तदोपरांत वह कहाँ गयी, जीवित बची या मारी गयी. कुछ स्पष्ट नहीं है. परन्तु माना जाता है कि नूरानांग पहाड़ियों पर आज " जागो, जागो ! आ गए, मारो, मारो !" की जो आवाज कभी कभार सुनाई देती है वह उसी युवती की है. सत्य ईश्वर ही जान सकता है.
हाँ, राजीव कृष्ण सक्सेना जी की यह कविता अवश्य याद आती है;
जुड़ा हूँ अमिट इतिहास से कैसे भुला दूं ? जो जागृत प्रीत की झंकार वह कैसे भुला दूं ?
हाँ, राजीव कृष्ण सक्सेना जी की यह कविता अवश्य याद आती है;
जुड़ा हूँ अमिट इतिहास से कैसे भुला दूं ? जो जागृत प्रीत की झंकार वह कैसे भुला दूं ?
जो घुट्टी संग भारतवर्ष की ममता मिली थी. उसे कैसे भुला कर आज माँ तुझसे विदा लूं ?
(सामग्री स्रोत साभार - विमल साहित्यरत्न की पुस्तक " हीरो आफ नेफा " के सम्पादित अंश)
is baare mein bahut pahle jarur tha ..lekin aapne visatar se likha hai jo bahut achhi lagi ..
ReplyDeleteaise veer jawanon se hi ham apne desh aur ghar mein surakshit rahte hai... nisandeh hamein in par naaz hona hi chahiye..
sundar saarthak prastuti ke liye aabhar!
Thanx. Kavita ji, for appreciating the article.
ReplyDeleteऐसे वीर बहादुर शहिदों को मेरा नमन...बहुत सुन्दर प्रस्तुति..सुबीर जी..
ReplyDeleteधन्यवाद रावत जी, इस महान विभूति का परिचय हमसे करवाने के लिये, शत-शत नमन
ReplyDeleteThanx bhai. He was real hero and all of us must know about him.
DeleteThanx again.
रावत जी, इस महान विभूति का परिचय हमसे करवाने के लिये, शत-शत नमन
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