Wednesday, December 26, 2012

कुमाऊँ - 3 (भगवान बागनाथ जी के चरणों में)


यात्रा संस्मरण  
 बागेश्वर- सरयू नदी का फैलाव और गोमती का संगम 
            ईश्वर को प्रणाम कर, भोजन बागेश्वर में किया जाय यह सोचकर हम आगे बढ़ते हैं. बैजनाथ से कुछ दूरी पर से एक रास्ता बायीं ओर बदरीनाथ को जाता है और दूसरा बागेश्वर को. यहाँ से निरंतर चढ़ाई चढ़ते हुए अठारह किलोमीटर दूरी पर चमोली जिले का एक हिल स्टेशन है ग्वालदम. समुद्रतल से लगभग 2000 मीटर ऊँचाई पर होने के कारण सर्दियों में जमकर हिमपात होता है जो सैलानियों को आकृषित करता है. हल्द्वानी, नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर आदि जगहों से बदरीनाथ जाने वाले लोग ग्वालदम होकर जाते हैं. ग्वालदम का सौन्दर्य प्रकृति प्रेमी को बरबस अपनी ओर आकृषित करने वाला है. हम गोमती नदी के बाएं तट पर बागेश्वर की ओर आगे बढ़ते हैं. समशीतोष्ण जलवायु वाली चौड़ी व इस रमणीक घाटी में गाँव काफी पास-पास हैं और जनसँख्या घनत्व ठीकठाक है. पहाड़ों में बढ़ते पलायन को देखते हुए कहा जा सकता है कि गगास घाटी और यह कत्यूर घाटी अपवाद है. गांवों में हलचल दिखती है. पुरुषों की भागदौड़, महिलाओं की खिलखिलाहट और बच्चों की धमाचौकड़ी से जीवन्तता आज भी बनी हुयी है. कत्यूरी शासन काल में राजधानी होने के साथ साथ कारण यह भी है कि बसासत के लिए आवश्यक संसाधन उपलब्ध है. चारा व जलावन लकड़ी हेतु गाँव के पीछे पहाड़ियों पर घना जंगल, आस पास अपेक्षाकृत समतल कृषि योग्य प्रचुर भूमि तथा आवागमन के लिए चौड़ी सड़कें. तीन ओर पहाड़ियां होने से पानी की कमी भी कदाचित ही होती होगी. और सबसे मुख्य यह भी कि गाँव लगभग समतल भाग या हल्की ढलान वाली भूमि पर होने के कारण न भूस्खलन का खतरा है और न ही पहाड़ियों से मलबा गिरने का भय. सड़क के दोनों ओर बसे गांवों में केले, आम, खुबानी और नाशपाती के फलदार पेड़ों की कतारें मन मोह लेती है. नाशपाती के लकदक पेड़ों को देखकर मेरी बेटी ललचाती है और एकाध नाशपाती तोड़ लाने की जिद पकडती है. मना करता हूँ और किसी तरह ही उसे मना पाता हूँ.             
भगवान बागनाथ जी का मन्दिर (पार्श्व ओर  से )
             चालक राणा जी कई वर्षों तक लम्बी दूरी की बसों में ड्राइविंग करता था. इसलिए उसे हमेशा मंजिल पर पहुँचने की जल्दी रहती है. मना करते हैं कि हम लोग घूमने के मकसद से ही घर से निकले हैं इसलिए हमें कहीं पहुँचने की कोई जल्दी नहीं है. जहाँ रात होगी वहीँ पर रुक जायेंगे. नदी के दोनों ओर खेतों में किसानों ने धान की नर्सरी उगा कर खेत के शेष हिस्से में जुताई भी कर दी है. आशमान बरसेगा तो रोपाई कर देंगे. जून का अंतिम सप्ताह चल रहा है किन्तु बारिस का इन्तेजार ख़त्म नहीं हुआ. चाय पीने की इच्छा से सड़क किनारे गाडी रोकते हैं. एक अधेड़ व्यक्ति से हाल चाल पूछता हूँ तो जबाव मिलता है ठेठ कुमाउनी लहजे में " ..... कहाँ हो, इस साल बारिस हुयी ही कहाँ ठहरी, खेतों की तो छोड़ो पीने के पानी का अकाल पड़ा हुआ ठहरा ......"  नीचे गोमती में पानी की एक पतली सी धारा मात्र कहीं कहीं दिखाई दे रही थी और उसके सीने पर बेतरतीब बिखरे छोटे बड़े पत्थर शीशे की मानिंद चमक रहे थे. सन 2003 में सितम्बर माह में यहाँ से गुजरा था तो गोमती नदी किसी अल्हड़ युवती की भांति इठलाती इतराती आगे बढ़ रही थी. नदी किनारे तब कई मछुवारे बगुला बने बैठे थे. गोमती का यह सूखा रूप उदास कर गया. धीरे धीरे रास्ते में कमेरा और कमेड़ी गाँव होते हुए हम बागेश्वर पहुँचते हैं जो कि बैजनाथ से मात्र 23 किलोमीटर की दूरी पर है.
                           बागेश्वर जिला मुख्यालय है. गोमती व सरयू नदी के तट पर निर्मित बागनाथ जी का मन्दिर यहाँ का मुख्य आकर्षण है. बागनाथ भगवान शंकर का ही एक रूप है. बागनाथ जी के नाम से ही इस जगह का नाम बागेशुर पड़ा, जो कालांतर में बागेश्वर हो गया. मन्दिर का मुख्य द्वार उत्तर दिशा में है जहाँ तक पहुँचने के लिए एक सात-आठ फीट चौड़ी सड़क से गुजरना होता है. इस सड़क के दोनों ओर पूजा प्रसाद और श्रृंगार सामग्री आदि का बाजार सजा रहता है. खूब चहल पहल है. कहीं होटल में बैठकर गाँव से आये स्त्री पुरुष जलेबी, समोसा खा रहे थे तो कहीं औरतें हाथो में रंग बिरंगी चूड़ियाँ पहन रही थी. मै पत्नी को बाजार से चूड़ी, बिंदी  खरीदने को कहता हूँ तो वह मुंह बिचका कर आगे बढ़ जाती है. मन्दिर के दक्षिण में गोमती नदी है और पूरब में सरयू. जिन पर स्नानघाट बनाया गया है और पास ही गोमती-सरयू का संगम है. सरयू का जलागम क्षेत्र अधिक होने के कारण इसमें गोमती की अपेक्षा अधिक जलराशि है। मकर सक्रांति को लगने वाला उत्तरायणी मेला बागेश्वर का ही नहीं पूरे कुमाऊँ का प्रसिद्द मेला है. जिसमे
उत्तरखंड की समृद्ध संस्कृति की झलक दिखाई देती है. सरयूं नदी के दोनों ओर बाजार सजता है. मै परिवार सहित मन्दिर के उत्तरी द्वार से प्रवेश करता हूँ. मन्दिर में इक्का दुक्का लोग दिखाई दे रहे थे. भीतर पूजा अर्चना के लिए पुजारी नहीं दिखाई देते हैं तो मै बाहर आता हूँ उसी वक्त एक स्त्री मन्दिर में आती है. मै उस पर गौर नहीं करता हूँ, सोचता हूँ  दर्शनार्थ आई होगी. मै परिवार सहित बाहर ही खड़ा रहा कि कोई पुजारी आयेंगे. तो वह कुमाउनी स्त्री आवाज लगाती है " आईये, आईये !" हम आश्चर्य करते हैं तो फिर वह कहती है -"आईये, मै ही पूजा कर देती हूँ. आज स्त्रियाँ जब हवाई जहाज तक चला रही है तो क्या मै मन्दिर में पूजा नहीं कर सकती? " रावल लोग ही इस मन्दिर के पुजारी हैं और व्यवस्था भी देखते हैं. लोक धारणा है कि यदि कभी सरयू बरसात में विकराल रूप धारण करती है तो मन्दिर का रावल सरयू पुल से कूद कर बागनाथ जी से विनाश को रोकने की प्रार्थना करता है और यह बागनाथ जी की ही महिमा है कि उफनती नदी में कूदे रावल भी बच जाते हैं और मन्दिर व बागेश्वर भी. पूजा से निवृत्त होकर हम सभी बाहर आकर दीवार के सहारे बैठ जाते हैं. बाहर एक पंडित जी फर्श पर पालथी मर कर बैठे हुए थे और गाँव के एक दम्पति को उनकी कुंडली में देखकर राहू, केतु, शनि की दशा और ग्रहों का योग समझा रहे थे, साथ ही निवारण की विधि भी.
धर्म कर्म में लीन पण्डित जी और चिन्तित यजमान 
                     उनकी ओर पीठ कर मै पत्नी से इस मन्दिर की ऊँचाई नजरों से नापने को कहता हूँ. सन 1450 में कुमाऊ के राजा लक्ष्मी चन्द द्वारा ग्रेनाईट व नीस पत्थरों से निर्मित और काष्ट छत्र वाला 90 फीट ऊंचा यह मन्दिर आज भी भव्य है, मन्दिर में पूजा कक्ष व बरामदा आकार में इतना बड़ा है कि एक साथ पचास से अधिक लोग खड़े होकर पूजा कर सकते हैं. मन्दिर के चारों ओर भी
सैकड़ों भक्त खड़े हो सकते हैं. मन्दिर थोड़ा बहुत मरम्मत व सफाई मांग रहा है. गोमती की घाटी सरयू की अपेक्षा कुछ संकरी है इसलिए आबादी सरयू के तट पर ज्यादा है. लेकिन दुखद यह है कि आबादी जिस क्षेत्र में बसी है वहां कभी धान की फसलें लहलहाती थी. घाटी में होने और समुद्र तल से ऊँचाई मात्र 1000 मीटर होने के कारण बागेश्वर में काफी गर्मी पड़ती है. माना जाता है कि बागेश्वर के पूरब और पश्चिम दिशा में भीलेश्वर व नीलेश्वर पर्वत हैं तो उत्तर दिशा में सूरज कुण्ड तथा  दक्षिण में अग्निकुंड अवस्थित है. घूमते हुए शाम हो गयी थी अतः आज यहीं रुकने के इरादे से होटल की तलाश शुरू करते हैं ताकि कल की यात्रा के लिए तरोताजा रह सकें.                                                                                                                                                                                      क्रमशः  - - - - -     

5 comments:

  1. दिन तीन सौ पैसठ साल के,
    यों ऐसे निकल गए,
    मुट्ठी में बंद कुछ रेत-कण,
    ज्यों कहीं फिसल गए।
    कुछ आनंद, उमंग,उल्लास तो
    कुछ आकुल,विकल गए।
    दिन तीन सौ पैसठ साल के,
    यों ऐसे निकल गए।।
    शुभकामनाये और मंगलमय नववर्ष की दुआ !
    इस उम्मीद और आशा के साथ कि

    ऐसा होवे नए साल में,
    मिले न काला कहीं दाल में,
    जंगलराज ख़त्म हो जाए,
    गद्हे न घूमें शेर खाल में।

    दीप प्रज्वलित हो बुद्धि-ज्ञान का,
    प्राबल्य विनाश हो अभिमान का,
    बैठा न हो उलूक डाल-ड़ाल में,
    ऐसा होवे नए साल में।

    Wishing you all a very Happy & Prosperous New Year.

    May the year ahead be filled Good Health, Happiness and Peace !!!

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  2. बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
    नब बर्ष (2013) की हार्दिक शुभकामना.

    मंगलमय हो आपको नब बर्ष का त्यौहार
    जीवन में आती रहे पल पल नयी बहार
    ईश्वर से हम कर रहे हर पल यही पुकार
    इश्वर की कृपा रहे भरा रहे घर द्वार.

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  3. अत्यंत सुंदर , मै ग्वालदम से देवाल को जा रहा हूं आपका ब्लाग देखा तो रूक गया । अगली बार इधर भी जाना होगा

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  4. बहुत सुन्दर् और उत्तराखंड पर्यटन पर विशिष्ठ ब्लॉग हेतू सादर बधाई !

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