यात्रा संस्मरण - गतांक से आगे....
नुनावल में लंगर की व्यवस्था और तैयारी में अमरनाथ यात्री |
नुनावल (पहलगाम) में सघन जांच के बाद हम सी0 आर0 पी0 एफ0 द्वारा सुरक्षित कैम्प में प्रवेश करते हैं. सुरक्षित अर्थात तारबाड़ से घिरा हुआ और चारों ओर हथियारों से लैस चौकस जवान तैनात. सैकड़ों छोटे-बड़े टैंट, जिनमे छः-सात हज़ार यात्री तक रुकने की व्यवस्था हैं. स्थानीय लोगों को रोजगार देने के उद्देश्य से यह टैंट सरकार द्वारा उन्हें मुहैया कराये गए हैं और वे यात्रियों से किराया वसूल कर अपना गुजारा करते हैं. कैम्प के एक कोने में हिन्दू श्रृद्धालुओं द्वारा दर्ज़न भर से अधिक लंगर (भंडारे) लगाये हैं. यहाँ पर स्वास्थ्य केंद्र, जे0 एंड के0 टूरिज्म का कैम्प कार्यालय, पंजीकरण कार्यालय, दैनिक उपयोग व आगे की यात्रा में काम आने वाले आवश्यक सामान की कई दुकाने है. यात्रा की थकान से उबरने के लिए गुनगुने पानी की बीस रुपये प्रति बाल्टी खरीद कर नहाते हैं. सेना द्वारा यहाँ पर फाइबर की चद्दरों से पर्याप्त लैट्रिन, बाथरूम तैयार करवाए गए हैं. नहाने व लंगर में लजीज भोजन के बाद ऊबड़ खाबड़ टैंट के फर्श तथा पतले गद्दों में भी ऐसी नींद आयी कि सुबह यशपाल ने ही बताया-" भाई साहब, आपके खराटों के शोर में तो लिद्दर का शोर भी दब कर रह गया था."
चन्दनबाड़ी में लिद्दर के दोनों और शिविर |
अगली सुबह जल्दी ही तैयार होकर और लंगर में स्वादिष्ट नाश्ता कर चन्दनबाड़ी की ओर बढ़ते हैं. नाश्ता स्वादिष्ट तो था ही, किन्तु लंगर कर्मियों का मृदु व्यवहार इतना आत्मीय व हृदयस्पर्शी था कि भूख न होने के बावजूद कुछ लेना ही पड़ा. पहलगाम बाजार के बीच से गुजरते हुए सन्नाटा पसरा नजर आता है. वह भी समय था जब अनेक हिंदी फिल्मों के अलावा राजेश खन्ना व मुमताज अभिनीत सुपरहिट फिल्म 'रोटी' यहीं पहलगाम में फिल्माई गयी थी. किन्तु अब होटल स्वामियों और दुकानदारों के चेहरे पर उदासी और बेचारगी के भाव कश्मीर में आतंकवाद की दास्ताँ बयां करते हैं. एक डेढ़ माह चलने वाली इस अमरनाथ यात्रा में पालकी व घोड़े-खच्चरों में यात्री ढोकर या कुली गिरी कर साल भर की रोजी रोटी की व्यवस्था संभव नहीं है. फिर अमरनाथ यात्रा में सैलानी कम और धार्मिक यात्री अधिक होते हैं. हाँ, कभी कभार कोई विदेशी यात्री आ जाते हैं. पहलगाम में लिद्दर पर बने पुल पार करते ही यात्रियों में जाने कैसे उबाल सा आता है और उनके "जय बर्फानी बाबा" "जय भोले" की जय जयकारे से घाटियाँ गुंजायमान होने लगती है. सामाजिक, आर्थिक व बौद्धिक स्तर पर यात्रियों में चाहे कितना ही भेद क्यों न हो किन्तु ऐसी यात्रा में, जहाँ सबका आराध्य एक हो, एक दूसरे के प्रति स्नेह स्वतः ही प्रगाढ़ होता है. मोड़ों को पार करने के बाद ऊँचाई से पहलगाम को देखते हैं वह अत्यंत आकर्षक दिखाई देता है. चन्दनबाड़ी पहुँच कर जब बस कंडक्टर साठ रुपये सवारी किराया मांगता है तो दंग रह जाते हैं. नुनावल से चन्दनबाड़ी तक मात्र सोलह किलोमीटर का किराया साठ रुपये.
पिस्सूटॉप से लिद्दर और गुफा को जाता मार्ग |
कुछ देर सुस्ताने के बाद शेषनाग की ओर बढ़ते हैं. चार फीट चौड़ा फुटपाथ आने-जाने वाले यात्रियों से खचाखच भरा हुआ. आने वालों के मुखमंडल भोले के दर्शनों से प्रदीप्त और जाने वालों के मनों में उत्सुकता व उत्कंठा. मार्ग में न ज्यादा चढ़ाई और न उतराई. एक ओर नीचे लिद्दर नदी की कल-कल ध्वनि और दूसरी ओर वृक्ष विहीन पहाड़. हाँ, ऊपर पहाड़ पर चरती भेड़ बकरियों से यह डर हर वक्त लगा रहा कि इन निरीह पशुओं के पैरों से गिरा कोई पत्थर किसी को चोटिल न कर दे. दुधिया रंग लिए लिद्दर नदी कहीं बर्फ की चादर के नीचे बहती और कहीं खुले में. नदी के दूसरी ओर हरियाली लिए पहाड़ी पर पेड़ भी हैं और जगह-जगह झरने फूटे हुए. आगे जोजिबाल में श्रृद्धालुओं द्वारा लंगर और स्थानीय लोगों द्वारा दुकानों की व्यवस्था है. एक पांडाल में डी0 जे0 पर देवी सिंह द्वारा रचित और कैलाश खेर द्वारा गाये भजन पर भक्तगण पूरे जोश से नाच रहे थे- " धन-धन भोलानाथ तुम्हारे कौड़ी नहीं खजाने में, तीन लोक बस्ती में बसाये आप बसे वीराने में. जटा-जूट का मुकुट शीश पर गले में मुंडों की माला, माथे पर छोटा सा चन्द्रमा कपाल का कर में प्याला, जिसे देखकर भय व्यापे सो गले बीच लिपटा काला, और तीसरे नेत्र में तुम्हारे महाप्रलय की है ज्वाला, पीने को हर वक्त भंग और आक धतूरा खाने में. तीन लोक बस्ती में ......." रोजमर्रा की भाग दौड़ से दूर जहाँ पर न समय का बंधन हो, न आगे कोई प्रतीक्षारत, न चिंता, न भय. न कोलाहल. है तो सिर्फ साफ़ स्वच्छ मौसम, शांत वादियाँ और पूरी निश्चिंतता. ऐसे में जोश आना भी स्वाभाविक था. पांव स्वतः थिरकने लगे. जी भर नाचने के बाद लंगर छक कर शेषनाग की ओर प्रस्थान कर दिए. दो-ढाई मील पर नागाकोटी की हल्की चढ़ाई के बाद शाम को समुद्रतल से 11730 फिट ऊँचाई पर स्थित शेषनाग पहुँचते हैं. झील का स्वच्छ निर्मल जल हरा व नीला रंग लिए हुए है. इस शेषनाग झील के पार्श्व में ब्रह्मा, विष्णु व महेश नाम की पहाड़ियों से बर्फ पिघलकर आती छोटी-छोटी जलधाराएँ अत्यंत मनमोहक है. यही झील लिद्दर (आगे चलकर झेलम) नदी का यह उद्गम स्थल है. नुनावल/ चन्दनबाड़ी के बाद यात्री शेषनाग में रात्रि विश्राम करते हैं.
जारी अगले अंक में .....