Sunday, August 16, 2015

रेणुका जी से परशुराम कुण्ड तक (4)

(क्षमा चाहता हूँ ब्लॉग के समस्त मित्रों से जिनकी प्रेरणा से लिखना शुरू किया था और जिन्होंने कमेण्ट के रूप में समय-समय पर अपनी टिप्पणी देकर मेरा हौसला बनाये रखा। लगभग एक वर्ष से अधिक बीत गया है, जब से मैं ब्लॉग से अनुपस्थित हूँ। अब इतने समय बाद आया तो पहले इस अधूरे यात्रा संस्मरण को ही पूरा कर लूं।)   पिछले अंक से........
सुदूर पूरब की ओर
              असम-अरुणाचल सीमा पर ही दक्षिण से उत्तर की ओर बहने वाली नामसांग नदी के दायें तट पर फुटहिल्स में स्थित है एक खूबसूरत कस्बा देवमाली। नदी पार कर पुल के किनारे ही पुलिस चेक पोस्ट पर इनर लाईन पास की जांच करवाकर आगे बढे। जिला तिराप के नामसांग सर्किल के अन्तर्गत देवमाली कस्बा समुद्र तल से मात्र साढे चार सौ फीट ऊँचाई पर बसा हुआ है और इसके चारों ओर आरक्षित वन क्षेत्र है। समशीतोष्ण जलवायु और चारों ओर खूबसूरत पहाडियों से घिरे देवमाली कस्बे में राज्य सरकार के छोटे-बड़े प्रतिष्ठानों के अलावा अरुणाचल वन निगम का मुख्यालय और कुछ प्लाइवुड मिल्स है। देवमाली के दक्षिण में लगभग आठ-दस कि0मी0 नामसांग नदी के दायें तट पर आगे बढने पर नामसांग गांव में पंहुचे, केवल इस गांव को देखने की इच्छा से। नामसांग ही संभवतः भारतवर्ष का पहला गांव होगा जहां से वर्ष 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस के
टिकट पर लोकसभा के लिए श्री वांग्फा लोवागं और विधान सभा के लिए श्री कैप्चन राजकुमार विजयी हुये। और यह भी संयोग ही माना जायेगा कि राज्य और केन्द्र दोनों में कांग्रेस सरकार ही सत्तारूढ हुयी। दोनों जन प्रतिनिधियों के प्रयास से नामसांग गांव की तस्वीर तो बदल ही सकती है। देवमाली से छः-सात कि0मी0 पूरब में बसे नामसांगमुख में श्रीरामकृष्ण मिशन का हायर सेकेण्डरी स्कूल है। श्री रामकृष्ण मिशन की स्थापना वर्ष 1896 में स्वामी विवेकानन्द जी द्वारा अपने आध्यात्मिक गुरू श्रीरामकृष्ण परमहंस के नाम पर की गई थी। मिशन के आज देश-विदेश में शिक्षा, चिकित्सा, सेवा-सुश्रुषा एवं अध्यात्म पर केन्द्रित सैकड़ों केन्द्र है। मिशन मुख्यालय बेलूरमठ (पश्चिम बंगाल) में है और ग्रीष्मकालीन लोहाघाट (पिथौरागढ़) के समीप मायावती में। मिशन में शिक्षक व अन्य कर्मचारी सामान्यतः बाहर से लिये जाते है परन्तु प्रबन्धन व देखरेख मिशन के सन्यासियों के हाथों में ही रहता है। सन्यासियों में श्वेत वस्त्रधारी ’महाराज’ और भगवा वस्त्रधारी ’स्वामी’ कहलाए जाते हैं। भगवा की पात्रता ’महाराज’ सन्यासियों को कठिन परीक्षाओं व कई बरसों की कड़ी मेहनत के बाद ही मिल पाता है। यहां मिशन भवन की बाहरी दीवार पर प्लास्टर को उकेरकर रंगों के साथ एक आदिवासी द्वारा अपने बच्चे को शिक्षा के लिये प्रेरित करने का मनमोहक चित्र उभारा गया है। मिशन केन्द्र के प्रभारी स्वामी गोकुलानन्द जी से औपचारिक भेंट करते हैं। एक सन्यासी के तेज व वाणी के ओज से प्रभावित हुये बिना नहीं रहते। मिशन स्कूल के पीछे जंगल में रुद्राक्ष के काफी पेड़ हैं, अरुणाचल का राज्य पक्षी हॉर्नबिल रुद्राक्ष फलों को बड़े चाव से खाता है।

           नामसांगमुख से कुछ आगे पूरब में फॅारेस्ट रेंज आफिस और मात्र चार-पांच फर्लांग पर ही राज्य का फारेस्टर टेªनिंग स्कूल है। आगे रास्ता आबादी विहीन क्षेत्र से होकर गुजरता है और छः-सात कि0मी0 पर दिरोकमुख नामक जगह पड़ती है। दिरोकमुख उत्तर-दक्षिण बहने वाली दिरोक नदी के बायें तट पर स्थित है जो असम-अरुणाचल की सीमा भी है। आगे यही मार्ग मार्गेरिटा तक जाता है। वानस्पतिक दृष्टि से यह बात गौर करने लायक है कि अरुणाचल के तराई क्षेत्र में व समुद्र तल से बारह-चौदह सौ फीट ऊँचाई तक तिराप जिले में मुख्यतः ’’ग्रीन गोल्ड’’ नाम से विख्यात हौलोक व हौलोगं के आरक्षित वन है। शाल परिवार का हौलोक जहां इमारती लकड़ी के रूप में प्रयोग होती है तो वहीं हौलोंग से उत्तम क्वालिटी की प्लाई तैयार होती है। आरक्षित वनों के भीतर ही कहीं-कहीं बंेत व रिंगाल के जंगल भी हैं और कहीं बांस के जंगल बहुतायत में है जिनसे स्थानीय लोग घर, चारपाईयां व दाल-चावल रखने तथा पानी ढोने के ठूंगे तैयार करते हैं। पेपर मिल यदि कभी अरुणाचल में कहीं लगे तो अच्छा ’स्कोप’ है।)
अरुणाचल में दिरॉक नदी के पश्चिम में देवमाली, नामसांग, खोन्सा, लाजू आदि नोक्टे जनजातीय क्षेत्र है और लॉगंडिंग, वाक्का, पंग्चाव आदि वांग्चू जनजातीय क्षेत्र। वहीं दिरॉक नदी के पार चांगलांग, जयरामपुर, नाम्पोगं व मिआओं आदि तंग्छा बहुल। फुटहिल्स में स्थित मार्गेरिटा असम के डिब्रूगढ जिले का भाग है और पश्चिम को बहती बूरी डिहींग नदी के दोनों तटों पर बसा हुआ है। कुछ सरकारी कार्यालयों के अतिरिक्त ’कोल इण्डिया लिमिटेड’ का ’रिजनल ऑफिस’ भी मार्गेरिटा में है। रेलवे लाईन तिनसुखिया से आकर मार्गेरिटा होते हुये आगे लेखापानी तक जाती है।
             हम मार्गेरिटा से पूरब की ओर बढते हैं पांच-छः कि0मी0 बाद लीडो, (लीडो क्वैलारी वाला)और कुद आगे लेखापानी है। लेखापानी तक रेल लाईन है, सेना का ब्रिगेड हेडक्वार्टर है और पास ही तिराप और बूरी डिहींग नदी का संगम भी। लेखापानीबूरी डिहींग नदी के बायें तट पर बसा हुआ है। बढते जाते हैं तो लेखापानी से सात-आठ कि0मी0 पूरब में जगुन गांव पड़ता है। जिसे स्थानीय लोग ’’नौ माइल’’ कहते हैं। जगुन से एक सड़क पूरब में मिआओं की ओर चली जाती है और दूसरी सड़क दक्षिण में जयरामपुर को।
                    हम जगून से दक्षिण की ओर बढते हैं। मात्र बारह-चौदह कि0मी0 पर ही तिराप जनपद का सबसे खूबसूरत कस्बा जयरामपुर है, जो हमारा पड़ाव है। चेकपोस्ट के बाहर बांस व लकड़ियों की बनी सैकड़ों दुकानें हैंं, जो कि असम में है। इन्हीं दुकानों से जयरामपुर कस्बे के लोग सब्जियाँ, माँस, मछली इत्यादि खरीदते हैं। दुकानों में ही कहीं कच्ची शराब भी धड़ल्ले से बिकती है।  पुलिस चौकी जगून और जिला मुख्यालय डिब्रूगढ़ यहाँ से दूर होने के कारण इसे रोक पाना मुश्किल है।
            जयरामपुर का पुराना नाम ’तेरह माइल’ है। पैदल मार्ग अवश्य जगुन से चार मील ही होगा किन्तु सड़क से दूरी आठ-नौ मील की ही है। दक्षिण से उत्तर की ओर हल्की ढलान वाली भूमि पर बसा जयरामपुर एक वेल प्लान्ड कस्बा है, साफ सुथरी चौड़ी सड़कें तथा टिन की छत वाले सैकड़ों मकान हैं। यह अरुणाचल में ही सम्भव है जहां पर प्रायः शत-प्रतिशत कर्मचारियों को सरकारी आवास उपलब्ध हो पाते हैं। लगभग पन्द्रह-बीस हजार की आबादी वाले जयरामपुर में हायर सेकेण्ड्री स्कूल, सा0 नि0 वि0 का सर्किल कार्यालय, वन विभाग व वन निगम का डिवीजन, असम राईफल्स का बटालियन हेडक्वार्टर, आदि प्रतिष्ठान है। दो, तीन प्लाईवुड कारखाने भी हैं। हल्की ढलान वाला जयरामपुर चारों ओर घने जंगलों से घिरा हुआ है।
               अगली सुबह जयरामपुर से अठारह-बीस कि0मी0 दूर नाम्पोगं को चल पड़ते हैं।  लगभग चार-साढे़ चार हजार फीट की ऊँचाई वाला नाम्पोगं पहाड़ी की दक्षिणी ढलान पर बसा हुआ है। दक्षिण में मात्र बारह कि0मी0 दूरी पर नाम्पोगं पास (दर्रा) है और सड़क आगे बर्मा के निग्ंबेन, कामोइगं कस्बों से होकर मिटक्यीना शहर को जोड़ती है। भारतवर्ष में यह पूरी सड़क पक्की व चौड़ी है और बर्मा में भी इसे ’नेशनल हाइवे’ की तरह मेण्टेन किया जाता है। वस्तुतः यह ब्रिटिश काल में बनी उन सड़कों में से है जब बर्मा भारत का ही अंग था। सीमा पर तैनात बर्मी सैनिक नाम्पोगं कस्बे में दैनिक आवश्यकताओं की खरीददारी करने आते हैं। अरुणाचल के जिला तिराप की दक्षिणी सीमा पर बसे पग्ंचाव, खासा, वाक्का, लाजू, नाम्पोगं आदि कस्बे पूरब-पश्चिम फैली इस शिवालिक श्रेणी पर स्थित हैं और भारतीय सर्वेक्षण विभाग ने इस पर्वत श्रेणी को पतकै बूम नाम दिया है। नाम्पोगं से वापस जयरामपुर, जगुन होते हुये मिआओं की ओर बढ़ते हैं। नामचिक नदी पार अरूणाचल पुलिस का चेकपोस्ट है। नामचिक चेकपोस्ट के पास जंगलात का रंेज कार्यालय व एक विश्राम गृह है। विशाल बूरी ढिहींग की सहायक नदी होने के कारण नामाचिक में बहुत मछलियां है और काफी स्वादिष्ठ मानी जाती है। मिऑओं की ओर बढ़ते हैं तो दोनों ओर बड़े-बड़े हौलोक व हौलोंग के जंगलों के बीच से गुजरना देहरादून के लच्छीवाला/आशारोड़ी अथवा रुद्रपुर-हल्द्वानी मार्ग के जंगलों के बीच से गुजरने की याद दिलाता है। पच्चीस-तीस कि0मी0 की इस सड़क पर नामचिक, नामफाई, खरसियांग आदि गांव पड़ते हैं। रास्ते में प्लाईवुड मिल्स हैं। जिससे इस सड़क पर ट्रैफिक ज्यादा है।           शेष अगले अंक में...............