Tuesday, November 19, 2019

जी.टी.एस.(Great Trigonometrical Survey) बंेच मार्क

            हैदराबाद में ‘‘सर्र्वेइंग इंस्टीट्यूट’’ में प्रशिक्षण के दौरान एक दिन हॉस्टल में बैठे थे, जी.टी.एस.(Great Trigonometrical Survey) पर चर्चा हुयी तो एक मित्र ने बताया कि ‘उच्च हिमालय में एक क्षेत्र विशेष के सर्वेक्षण के लिए एक बार हम पर्मानेण्ट बेंच मार्क ढूंढ रहे थे। मैप हमारे हाथ मे था और गणना की तो देखा कि जहाँ पर जी.टी.एस. बंेच मार्क था उसके ऊपर तो एक स्थाई पुलिस चेक पोस्ट स्थापित हो चुकी है। चौकी प्रभारी को यह बात बतायी गयी तो वह आपे से बाहर हो गया कि ‘यह नहीं हो सकता, हमारी पोस्ट कई सालों से यहाँ पर है, आप कन्फ्ूयज है, कहीं और ढूंढ लीजिए।’ अब क्या करें। अगला जी.टी.एस. बंेच मार्क मीलों दूर और सड़क मार्ग से परे था। चौकी प्रभारी नहीं माना तो हमारे सर्वे ऑफीसर भी फैल गये। फील्ड कार्य का लम्बा तजुर्बा होने के कारण उन्हें अपने पर पूरा विश्वास था। उन्होंने चौकी प्रभारी को जी.टी.एस. बंेच मार्क संरचना विस्तार से समझाया और कहा कि ‘यदि यहाँ प्रयुक्त पीतल की प्लेट, जिस पर संख्या अंकित है, नहीं मिलती है तो आप हमारे विरुद्ध कार्यवाही कर सकते हैं।’ चौकी हटाई गयी और अंकित पीतल की प्लेट देखकर चौकी प्रभारी को अपनी गलती का अहसास हुआ और शायद उस दिन ही वह सर्वे ऑव इण्डिया विभाग की महत्ता समझा होगा।

            
          प्रसंग इसलिए कि इसी माह शुरूआत में जनकवि व पर्यावरणविद चन्दन नेगी जी के साथ मसूरी घूम रहा था तो सन् 1885 में निर्मित कुलड़ी स्थित ‘सेण्ट्रल मेथोडिस्ट चर्च’ देखने भीतर गये। चर्च के आंगन में उत्तरी दिशा में एक जी.टी.एस. बंेच मार्क -1908 पर नजर पड़ी, जिस पर समुद्र तल से ऊंचाई 8570.028 फीट अंकित है। (गौरतलब है कि ब्रिटिश सिस्टम- एफ. पी. एस. में लम्बाई के माप फीट में है जबकि अमेरिकन सिस्टम एम. के. एस. में माप मीटर में लिखे जा रहे हैं।)
           
          जी.टी.एस. सर्वेक्षण की वह विधा है जिसमें उच्च वैज्ञानिक परिशुद्धता के साथ माप लिए जाते हैं। भारतीय सर्वेक्षण विभाग के स्थापना के लगभग सैंतीस वर्ष बाद एक इन्फेण्ट्री ऑफीसर विलियम लैम्बटन द्वारा यह त्रिकोणमितीय विधा सर्वप्रथम सन् 1802 में प्रारम्भ की गयी थी। आज भले ही उच्च तकनीकी के उपकरण आ गये हैं किन्तु लगभग दो सौ साल पहले इस विधा द्वारा ही माउण्ट एवरेस्ट, के-2 आदि हिमालयी पर्वत श्रेणियों की ऊंचाई की वास्तविक गणना की जा सकी है। भारत की आजादी तक सर्वेक्षण विभाग में गोरे लोग ही मुख्य पदों पर रहे है किन्तु यह गौरव की बात है कि नैन सिंह रावत और कृष्णा सिंह रावत जैसे भारतीय सर्वेक्षकों का ल्हासा-तिब्बत की ऊंचाई और ब्रह्मपुत्र नदी की लम्बाई नापना जैसे महत्वपूर्ण कार्यों में प्रमुख योगदान रहा है।