Thursday, December 30, 2010

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें

        कुछ समय पूर्व टी वी पर "इंडियन आयीडियल" शो चल रहा था. एक शो के दौरान एक प्रत्याशी द्वारा वह देश भक्ति गीत गाया गया जो लता जी की आवाज में हम बचपन से सुनते आ रहे हैं  ( बल्कि एक पूरी पीढ़ी जवान हुयी और अब बूढी हो रही है, जिसका एक-एक शब्द व लय याद है  " - - - - ऐ मेरे वतन के लोगों - - - - -  " ) तो निर्णायक ही नहीं, दर्शक भी खिसिया गए. क्योंकि यह एक ऐसा गीत है जो श्रोता किसी और आवाज में सुनना बर्दाश्त नहीं कर सकते, चाहे वह स्थापित गायक, गायिका ही क्यों न हो. 
               मुझे भी लगता है कि नव वर्ष पर मै चाहे कैसा भी लिखूं लगता है भावनाएं तो अव्यक्त ही रह गयी है. नए वर्ष पर मुझे आज भी हरिवंश राय बच्चन जी कि इस कविता के बराबर कोई कविता जमती ही नहीं है. अतः पाठकों को भी नव वर्ष की अनेकानेक शुभकामनाओं के साथ बच्चन जी की यह लोकप्रिय  'नव  वर्ष'  कविता भेज रहा हूँ ;   
नव वर्ष,
हर्ष नव,
जीवन उत्कर्ष नव !

नव उमंग,
नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग !
नवल चाह,
नवल राह,
जीवन का नव प्रवाह !
गीत नवल,
प्रीत नवल,
जीवन की रीति नवल,
जीवन की नीति नवल,
जीवन की जीत नवल !
 

Sunday, December 26, 2010

माया बांद के बहाने

                                                                      Photo-Subir
व्यंग्य
                राज्य की राजधानी से अब 'छुमा बौ'  पैसेंजेर के साथ-साथ 'भानुमती ' मेल और 'लीला घस्यारी' एक्सप्रेस बसें भी चला करेगी. कई बरसों से ठन्डे व सुस्त पड़े राज्य के नौ रत्नों में गिने जाने वाले "उखड़ी क्लब" की एक खास सभा में बोलते हुए राज्य के घोषणा मंत्री जी ने कहा कि छुमा बौ  बस की थकी हुयी रफ़्तार को देखते हुए राजधानी से शीघ्र ही प्रत्येक जिला मुख्यालय के लिए भानुमती मेल और लीला घस्यारी एक्सप्रेस सर्विस भी चलायी जाएगी. उन्होंने सौं (कसम) खाते हुए कहा कि हमारी सरकार द्वारा ये घोषणाएं महज़ चुनावी घोषणाएं नहीं है. ये सभी  सेवाएँ जनता को समर्पित की जायेगी.
       'उखड़ी क्लब' के खचाखच भरे सभागार में घोषणा मंत्री जी ने उखड़ी (असिंचित) भूमि का क्षेत्रफल लगातार बढ़ते जाते रहने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि ये हमारे लिए बड़ी उपलब्धि है. कारण चाहे बारिस का कम होना हो, सरकार द्वारा सिंचाई के साधन मुहैया न कराना हो, या किसानों का खेती से मोहभंग हो, या पलायन, या जो भी हो हमारे लिए खुशी की बात है. जनता कई तरह के तनावों से मुक्त रहेगी, उखड बढ़ेंगे और बारिस होगी नहीं, बारिस नहीं तो खेती भी नहीं, बंदरों, सूअरों के उत्पात की भी चिंता नहीं. खूंटे पर पशु नहीं होंगे और आँगन भी साफ सुथरा रहेगा. और फिर "गाय न बाछी, नींद आये आछी "   वाली कहावत चरितार्थ होगी. मंत्री जी ने कहा कि हमारी सरकार ने निर्यात पर पूरी तरह से रोक लगा दी है और आयात को खुला रखा है. अब बाहर से आने वाले किसी भी वाहन को पुलिस चेक नहीं किया करेगी. बाहर से सभी कुछ लाने की खुली स्वतंत्रता है, अन्न, सब्जी, दूध, मावा, पक्की, कच्ची..... परन्तु राज्य से बाहर कुछ नहीं जायेगा, न कोदा झंगोरा, न गहत भट्ट, न घी की माणी और न ही किल्मोड़ा टिमरू. और हो सका तो हम राज्य से बहने वाली सभी नदियों का पानी भी रोकने का प्रयास करेंगे. "पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आये"   पर उन्होंने चिंता व्यक्त की. प्रत्येक नदी-नालों और गाड-गदेरों पर बांध बनाने का भी उन्होंने आश्वासन दिया. पलायन को रोकने के लिए सरकार की ठोस रणनीति के बारे में जब टोप्ल्या पत्रकार द्वारा सवाल उठाया गया तो मंत्री जी ने खुलासा किया कि हमारी युवा पीढ़ी वास्तव में घर, परिवार व माँ, बाप से दूरी बनाये रखना चाहती है. जिससे वे पढाई, नौकरी, रोजगार आदि सवालों से बचे रहें. इस मुद्दे पर सरकार द्वारा सम्यक विचार कर छानियों को फिर से बसाने की योजना तैयार कर ली गयी है. राज्य सरकार छानी निर्माण अथवा जीर्णोद्धार ऋण भी बेरोजगार युवाओं को देगी ताकि छानिया फिर से बस सके और युवा पीढी पलायन की बजाय छानियों में सकूं से जिंदगी बिता सके. आगामी चुनाव में यदि हमारी सरकार पुनः सत्ता में आयी तो बेरोजगारों को "छानी भत्ता" भी दिया जायेगा. 
         सभा में हवाई योजना मंत्री जी ने पहाड़ों के विकास के लिए रज्जू मार्ग बनाने की बात रखी. आवागमन की सुविधा बढ़ेगी तो सभी गाँव, नगर एक दूसरे से जुड़ सकेंगे और पलायन भी रुक सकेगा. बांधों के निर्माण से बिजली पैदा होगी और रज्जू सञ्चालन में कोई दिक्कत नहीं आयेगी. मंत्री जी ने प्रत्येक गाँव में एक paying गेस्ट हाउस बनाने का भी सुझाव रखा जिससे गाँव के ही दो चार युवकों को रोजगार मिल सकेगा. 
       सभा में उध्यान विद्यालय के संचालक द्वारा विचार व्यक्त किये गए की हमें प्रचलित फल आम, लीची, सेब आदि के उत्पादन के साथ साथ अपने पारंपरिक फलों जैसे किल्मोड़ा, हिंसालू, करौंदा, काफल, तिम्ला आदि के उत्पादन और संवर्धन पर अधिकाधिक ध्यान देना होगा. इन्हें ही पुराणों में कंदमूल फल कहा जाता है और इनके निर्यात से विदेशी मुद्रा भी प्राप्त हो सकेगी. फलोत्पादन तकनीक जानने हेतु जगह-जगह प्रशिक्षण केंद्र भी स्थापित किये जाने होंगे. ग्राम प्रधान सभा के अध्यक्ष द्वारा प्रत्येक धार पर बरसाती पानी के पोखर बनाकर मछली पालन का भी सुझाव रखा गया जिस पर सर्वसम्मति नहीं बन पाई. लेखक द्वारा पहाड़ की बिगड़ती अर्थव्यवस्था में बैलों पर होने वाले औसत खर्चे का ब्यौरा रखा गया और बैलों के बदले खच्चरों द्वारा हल लगाने व मंडई करने का भी सुझाव रखा गया और कहा कि खच्चर बैलों के मुकाबले ज्यादा उपयोगी साबित होगा. पहाड़वासी यदि खच्चरों की पूंछ मरोड़ कर हल लगाने में सफल हो गए तो प्रत्येक घर के आँगन में दो चार खच्चर अवश्य हिन् हिनाते हुए दिखेंगे और बैल भैंसे (male bafaloe ) की भांति तिरष्कृत हो जाया करेंगे.  
                अंत में उखड़ी क्लब के अध्यक्ष द्वारा सभी वक्ताओं का आभार व्यक्त किया गया और क्लब के घटते सदस्यों पर चिंता जताई. उन्होंने कहा कि अन्य भाषा संस्कृति के लोग जहाँ अपने क्लबों पर हजारों रूपया बहाते हैं,अपने समाज और संस्कृति के लिए बेधड़क प्रयास करते हैं,  वहीं हमारे लोग अपनी बोली भाषा और अन्न को अपनाने में पिछड़ापन महसूस करते हैं. शदियों से मन में घर कर गए इस 'कॉम्लेक्स' को उखाड़ फेंकने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि यदि सभी लोग साथ दें तो हम प्रत्येक जिला मुख्यालयों में कम से कम उखड़ी क्लब की एक एक धर्मशाला अवश्य बनवायेंगे.  

Thursday, December 16, 2010

रिमोट कण्ट्रोल

Golkunda,,Hyderabad  Photo-Subir
  दिगपाल सिंह कोहली
               
                 यथार्त के धरातल पर रहते हुए यदि कोई सीधे और सपाट शब्दों में अपनी बात इस अंदाज़ में कहे कि बात का मर्म भी लोगों की समझ में आ जाय और बुरा भी न लगे, ऐसी क्षमता विरलों में ही होती है. पर भाई दिगपाल सिंह कोहली कौन सी बात  कब, कैसे और किस प्रकार बात की जानी है बखूबी जानते हैं. उनकी यह रचना पाठकों को अवश्य गुदगुदाएगी .

काश! हम कर सकते बीवी को कण्ट्रोल,
कभी घर में हमारा भी होता निर्णायक रोल. काश! बना दे कोई बीवी का रिमोट कण्ट्रोल.

मेरा अधिकार हो गुस्सा और प्यार पर,
उसका हक रहे मान मनुहार पर, उसकी जुबान पर हाँ, मेरे हों आदेश के बोल! काश, कोई बना .................

मैं जैसा चाहूं उसे नचाऊँ,
हर वो काम करे वह जो मैं उसे बताऊँ, वो बने कठपुतली मेरे हाथ में हो डोर! काश, कोई बना .....................

कभी न मांगे मुझसे कोई हिसाब,
न पूछे क्या लाये मेरे लिए आप, कहे 'कबूल मेरे सरताज!' न पूछे उसका मोल! काश, कोई बना ................

खुदा ने भी किस रचना को साकार किया,
बस, एक जुबान देकर उसे बेकार किया, इतनी खूबसूरत रचना हो गई बेमोल! काश, कोई बना .................

रिमोट भी ऐसा जो सिर्फ़ हैस्बैंड से हो बूट,
सारी सुविधा न हों पर जरूरी फॉरवर्ड और mute, सामने ही नहीं हो फोन पर भी हो कण्ट्रोल! काश, कोई बना ...........

दिल पर तो है कब्ज़ा मेरा वो दिमाग से न ले काम,
नज़रों पर ही नहीं, जुबान पर भी हो लगाम, जागते हुए रहे कब्ज़े में, हो सपनों पर भी कण्ट्रोल! काश, कोई बना ..............

कुछ पाबंदियां ही सही यारों, मगर care तो करती है,
हमें पसंद न हो पर, हमपर नज़र रखती है, दुनिया की कोई मशीन उसे कैसे करे कण्ट्रोल!  काश, कोई न बनाये ............. 
                                                                                                                                   

Sunday, December 12, 2010

ह्यूंद की खातिर

Pahalgam, J&K                                  Photo-Subir
गढ़वाली लोक कथा
                पुरानी बात है. तकनीकी विकास तब नाम मात्र था, संसाधनों की कमी थी किन्तु अभावग्रस्त होते हुए भी लोग सुख, संतोष से गुजारा कर लेते थे. दिन रात मेहनत-मजदूरी से जो मिल जाता लोग उसी के लिए ईश्वर का धन्यवाद करते न अघाते थे, और सुख चैन से रहते.  मनुष्य प्रकृति के नज़दीक थे और प्रकृति उनकी सहचारिणी.
             गढ़वाल के एक गाँव में एक दम्पति रहता था. सगे-सम्बन्धी गाँव में थे किन्तु अकेला भाई होने के कारण वह एक अकेले मकान में रहता था. छल-कपट रहित दम्पति जैसे तैसे अपना गुज़ारा कर लेते थे. पति गाँव में उठने बैठने और सभी कामों में शरीक होने के कारण दुनियादारी जानता था किन्तु पत्नी अत्यंत भोली और दूसरों पर सहज ही विश्वास कर लेने वाली  थी. पहाड़ों में गर्मी का मौसम जहाँ आनंददायी होता है वहीं सर्दियाँ कष्टकारी. और अभाव में गुज़र बसर कर रहे लोगों का तो...... परन्तु पक्षी भी आने वाले समय को भांपते हुए अपनी व्यवस्था कर लेता है फिर इन्सान क्यों नहीं कर सकता. यह दम्पति भी जो थोड़ा बहुत बच जाता उसे सम्भाल कर रखते -जलावन लकड़ी, गरम कपडे, कम्बल, घी आदि. सर्दियों के लिए जो जो इकहट्टा करते पति अपनी पत्नी को अवश्य बताता कि यह ह्यूंद (शीतकाल) की खातिर है. विडम्बना यह थी कि पत्नी दूसरे मुल्क की थी और बहुत सारे शब्दों का अर्थ वह नहीं समझ पाती थी. ह्यूंद का अर्थ भी वह नहीं समझ पाई थी और न ही अपने पति को पूछ पाई. पर उसके मन में यह जरूर था कि ह्यूंद उसके पति का कोई अज़ीज़ है जिसके लिए वह इतना इकहट्टा कर रहा है.
                           इस बात को उनके गाँव का एक धूर्त व्यक्ति जान गया था कि पत्नी ह्यूंद का अर्थ नहीं जानती है और वह मौके की तलाश में रहने लगा. एक दिन पति किसी काम से दूसरे गाँव गया तो इस धूर्त व्यक्ति को मौका मिल गया. थोड़ी वेश भूषा बदल कर वह इस भोली स्त्री के पास पंहुचा और वह सब सामान मांग बैठा जो उसके पति ने ह्यूंद की खातिर रखा था. स्त्री के यह पूछने पर कि वह कौन है तो वह बोल बैठा कि- "मुझे नहीं जानती?  मै ही तो ह्यूंद हूँ....." और सारा सामान लेकर वह धूर्त चम्पत हो गया.