Friday, March 22, 2013

पराये शहर के अपने लोग


इस पराये शहर में
रहता हूँ अपने लोगों के बीच,
बैठता हूँ अपनें लोगों के बीच,
मिलते हैं साथ सुख-दुःख में,
होते हैं साथ सुख-दुःख में।

इस शहर के अपने लोग-
दूसरे बड़े शहर की बात करते हैं,
बड़े शहर बसने की चाह रखते हैं।
उन्हें सिर्फ धन-दौलत की बातें सुहाती,
उन्हें जमीन-जायदाद की बातें ही भाती।

इस शहर के अपने लोग-
अपने गावं की बात नहीं करते।
इस शहर के अपने लोग-
अपने गावं को याद नहीं करते।

यहाँ के अपने लोग पराये हुये,
यह शहर कभी अपना नहीं रहा।
गावं अपने लौट जाऊँगा एक दिन,
शहर अब मेरा सपना नहीं रहा।

Tuesday, March 12, 2013

वहीं कहीं आज भी

भाग्यशाली हो तुम
ओ बदरा !   
घूम आते हो
मेरे गावं, मुलुक तक
गाहे-बेगाहे,
वक्त-बेवक्त।

जा नहीं पाया मैं चाहकर भी
गावं वर्षों से ।
जबकि,
अटका पड़ा है मन मेरा
वहीं-कहीं ।
वहीं-कहीं आज भी ।।