Tuesday, March 12, 2013

वहीं कहीं आज भी

भाग्यशाली हो तुम
ओ बदरा !   
घूम आते हो
मेरे गावं, मुलुक तक
गाहे-बेगाहे,
वक्त-बेवक्त।

जा नहीं पाया मैं चाहकर भी
गावं वर्षों से ।
जबकि,
अटका पड़ा है मन मेरा
वहीं-कहीं ।
वहीं-कहीं आज भी ।।

2 comments:

  1. जा नहीं पाया मैं चाहकर भी
    गावं वर्षों से ।
    जबकि,
    अटका पड़ा है मन मेरा
    वहीं-कहीं ।
    वहीं-कहीं आज भी ।।------मन की पीड़ा को व्यक्त करती
    -- बहुत सुंदर रचना----बधाई

    आग्रह है मेरे भी ब्लॉग में सम्मलित हों
    प्रसन्नता होगी---आभार

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