Tuesday, February 21, 2012

वैभवशाली अतीत के साक्षी हैं गोलकोण्डा के खण्डहर- 1


ग्रेनाईट पत्थरों से बना किला और  दीवारें
                             पिछले पांच हजार वर्षों का इतिहास साक्षी है कि भारतवर्ष में यूनानी, शक, कुषाण, हूण, तुर्क, अफगान, मंगोल, पुर्तगाली, डच, फ़्रांसिसी और अंग्रेज जातियों का आगमन हुआ. जिन्होंने भारतवर्ष की संस्कृति, समाज, धर्म व रहन सहन को ही प्रभावित नहीं किया अपितु स्वयं भी भारतीय परिवेश से बहुत कुछ सीखा. भारतीय इतिहास में मध्यकालीन अर्थात मुग़लकालीन समय अपनी विशिष्ठता के लिए आज भी याद किया जाता है. मुग़ल बादशाह शाहजहाँ का समय मुगलों के इतिहास में स्वर्णिम काल रहा है. उनके शासनकाल में ही लालकिला (दिल्ली) का निर्माण, राजधानी आगरा से दिल्ली स्थानांतरण, बेगम मुमताज महल की याद में विश्व प्रसिद्द धरोहर ताजमहल का निर्माण. शाहजहाँ का मयूर सिंहासन और उस पर जड़ा कोहिनूर हीरा का जिक्र आज भी बड़े फक्र से किया जाता है. कोहिनूर हीरे की चमक से बड़े-बड़े राजा महाराजाओं की आँखे चुंधिया गयी थी. किन्तु  कोहिनूर आज लन्दन के एक संग्रहालय की शोभा बढा रहा है. सभी जानते है कि कोहिनूर हीरा गोलकोण्डा माइन्स (हैदरबाद) की देन हैं.
 किले का प्रवेश द्वार 
                           हैदराबाद प्रवास के दौरान वहां पर चारमिनार, हुसैनसागर, एन टी आर पार्क, सलारजंग  संग्रहालय, रामोजी फिल्म सिटी, बिडला मंदिर आदि देखने के बाद गोलकोण्डा फोर्ट देखने की बड़ी इच्छा हुयी. गोलकोण्डा के बारे में कुछ जानने से पहले हमें पीछे भारतीय इतिहास पर नजर दौड़ानी होगी.
वास्तुशिल्प का अद्भुत नमूना है ये दीवारें
                       आन्ध्रा का सर्वप्रथम उल्लेख मौर्यकालीन समय में मिलता है. किन्तु व्यापक रूप से यह तब जब जाना गया जब तेरहवीं सदी में ककातियों ने वारंगल को राजधानी बनाते हुए आन्ध्रा देश की सीमाओं का विस्तार किया. चौदहवीं सदी के पूर्वार्ध (सन 1323) में ही दिल्ली के सुल्तान तुगलक ने ककातियों को पराजित कर वहां पर अपना साम्राज्य स्थापित किया. किन्तु ककातियों के साम्राज्य से पूर्व में टूटकर जो चार रियासतें अलग हुयी थी तुगलक शासकों को उन्हें कभी भी अपने साम्राज्य में मिलाने में रूचि नहीं रही. और ये अप्रत्यक्ष रूप से तुगलकों के हिमायती रहकर स्वतंत्र रूप से शासन करते रहे. किन्तु विजयनगर रियासत के शासकों ने किले की दीवार बनकर दो सौ वर्षों से अधिक समय तक मुस्लिम साम्राज्य के विस्तार को रोके रखा. जिसके लिए वे कभी किसी सुल्तान की सहायता मांगते और कभी किसी की. यह स्थिति ज्यादा समय तक न रह सकी. अंततः बीजापुर, गोलकोण्डा, अहमदनगर और बिदार के शासक सुल्तान कुली क़ुतुब शाह के नेतृत्व में संगठित हुए और विजयनगर की विशाल सेना को तलाईकोटा के युद्ध में पराजित कर एक संयुक्त साम्राज्य स्थापित किया- दख्खन साम्राज्य. जिसके प्रथम शासक कुली क़ुतुब शाह ने गोलकोण्डा को राजधानी बनाया.
किले से हैदराबाद का दृश्य और मै
                       गोलकोण्डा पूर्व से ही एक ऐतिहासिक किला रहा है. गोलकोण्डा, जिसका तेलगु में शाब्दिक अर्थ है - ग्वाले की पहाड़ी.  राजधानी बनाने के बाद कुली क़ुतुब शाह ने किले के स्वरुप में व्यापक बदलाव किये. वर्तमान हैदराबाद शहर से छ-सात मील पश्चिम में लगभग चार सौ फुट ऊंची पहाड़ी पर स्थित किले को सुल्तान ने बड़े धैर्य और रुचिपूर्ण ढंग से बनाया. पहाड़ी के चारों ओर सात किलोमीटर परिधि में फैले ग्रेनाइट पत्थरों से बनी किले की बाहरी दीवार को वृत्ताकार रूप देकर उसके अन्दर नगर बसाया गया. इसके बाद दूसरे भीतरी घेरे में दोहरी दीवार देकर (अपेक्षाकृत ऊंची भूमि पर) महल के कारिन्दों व सैन्य अधिकरियों को बसाया गया. और भीतरी घेरे व पहाड़ी पर महल, बारादरी, दरबार-ए-आम, दरबार-ए-खास, तोपखाना, मंदिर व मस्जिद तथा जलाशय बनाये गए. आठ प्रवेश द्वारों व 15 से 18 मीटर ऊंचे सत्तासी झरोखेदार बुर्जों वाले हिन्दू, इस्लाम व फारसी शैली में निर्मित लगभग खंडहर हो चुके महल आज भी अपने भव्यता की कहानी बयां करते हैं.
 हुसैन सागर झील (टैंक पौंड)का विस्तार  
                  किले के निर्माण से अधिक महत्वपूर्ण था किले में पेयजल आपूर्ति. चार सौ फिट ऊंची पहाड़ी पर बने किले में लगभग साढे चार सौ वर्ष पूर्व पानी पहुँचाना असंभव नहीं तो मुश्किल अवश्य था. लेकिन उस समय के वास्तुशिल्पियों व योजनाकारों ने यह सम्भव कर दिखाया.  इब्राहीम कुली क़ुतुबशाह के शासन के दौरान ही हुसैनशाह वली ने सन 1562  में मूसी नदी की एक धारा को मोड़कर विशाल झील का निर्माण करवाया गया. जिसे आज हुसैन सागर या टैंक बंड के नाम से जाना जाता है.

                                                                                                                      शेष अगले अंक में ........


6 comments:

  1. सुबीर जी......आपका यात्रा संस्मरण बेहद पसंद आया।

    आपने मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी के माध्यम ये जानना चाहा कि मैं कब से लिखना शुरू कर रहा हूं....सुबीर जी.... बहुत जल्द ब्लॉग पर नियमित लिखूंगा। हौसंला बढ़ाने के लिए आपका आभार। मैंने ब्लॉग लेखन से ब्रेक जरूर ले रखा है लेकिन ब्लॉगिंग बंद करने का कोई इरादा नहीं हैं। दूसरी बात पिछले कई महींनों से ब्लॉंग लेखन से जरूर दूर रहा हूं लेकिन ब्लॉग पाठन नियमित हो रहा है। आपके ब्लॉग पर भी आता रहता हूं। हां....टिप्पणी नहीं करता हूं। आपका लेखन पसंद आता है बस इसलिए पढ़ता हूं और चला जाता हूं। कभी कोई पोस्ट अच्छी नहीं लगी तो जरूर टिप्पणी के माध्यम से बताऊंगा। इसके अलावा इस दौरान कई लोगों का ब्लॉग जगत में प्रवेश कराया है। हालांकि वो भी अभी नियमित तौर नहीं लिखते हैं। कुछ न्यूज वेब साईटस के लिए भी ब्लॉग लेखन किया है।

    फिलहाल एक न्यूज चैनल में कार्यरत होने के कारण समय बिल्कुल नहीं मिलता क्योंकि उ.प्र. में चुनाव हो रहे हैं। इसलिए व्यस्तता काफी बढ़ गई है।

    आपके स्नेह और लगाव के लिए आपका आभार।

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  2. इस सुन्दर, ऐतिहासिक जानकारी के लिए आभार। यात्रा संस्मरण पढ़कर वहां जाने की ललक मन में बढ़ गयी है। आपकी पोस्टों के माध्यम से इतिहास की अच्छी जानकारी मिल जाती है। कृतज्ञ हूँ।

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  3. बहुत बढ़िया,बेहतरीन देखने की ललक बढाती सुंदर एतिहासिक जानकारी,अच्छी प्रस्तुति,.....

    MY NEW POST...काव्यान्जलि...आज के नेता...

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  4. एतिहासिक एवं मार्मिक यात्रा वृतांत

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  5. बहुत सुंदर एतिहासिक जानकारी| धन्यवाद।

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