नव हस्ताक्षर डाo प्रीतम नेगी 'अपछ्याण' हिंदी साहित्य जगत के उन उभरते हुए
साहित्यकारों में से हैं जिन्होंने कम समय में ही अपनी पहचान कायम कर ली
है. प्रीतम यद्यपि मूल रूप से कवि हैं किन्तु लोकसंस्कृति, समसामयिक और
सामजिक अव्यवस्था के खिलाफ लिखने से भी कभी नहीं चूकते. वे हिंदी व गढ़वाली भाषा में समान
रूप से सभी विधाओं पर
जम कर लिख रहे हैं. उत्तराखण्ड के लेखकों में डाo प्रीतम अपछ्याण आज एक
जाना पहचाना नाम है. पर्यावरण विज्ञान में मास्टर डिग्री धारक प्रीतम की
पकड़ साहित्य में उतनी ही है जितनी कि पर्यावरण के क्षेत्र में. अब तक उनके
तीन कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. पहाड़ की भौगोलिक विषमता व विकट
जीवन संघर्ष ही नहीं अपितु व्यवस्था की जड़ता भी कवि के लिए भावभूमि का
काम करती है. यह
कविता उनके सद्ध्य प्रकाशित कविता संग्रह " ध्वनियों के शिखर " से है.
समता समानता का वरदान पाया
हमारा यह जालिम युग
नेता प्रसूत लोकतंत्र
प्लेटों में सजा कर लाता है नेता.
हर जन्म नेता का जन्म है
हर पंजीकरण भावी
नेता का प्रमाण-पत्र
अब जनता नहीं जनती नेता
नेता जन रहा वैध-अवैध जनता
को.
चुनाव का न्यायिक चेहरा
ढक देता नेता के करम
विवेकशून्य जनता के भरम
पुरुष नेतृत्वहीन हो गए
सो औरतें पा गयी नेता आरक्षण.
लोकतंत्र व चुनाव वैसे ही हैं
नेता का महिला अवतार हो गया
ठीक उसी लीक पर
अब भी
समता समानता की ढाल ताने चुनावी वाण बरसाते
आक्रमणकारी जैसे आते हैं
नेता
पिछली फसल के बचे खुचे पौधों जैसे
कुछेक जनता रुपी वोटर
पचा नहीं पाए
इस नए अवतार को
भ्रमित हो गए मन कोमा में गयी बुद्धि
अब न सोचती है न समझती
है.
चालाक पुरुष
औरतों को घेर कर नेता बन रहे हैं
और चालाक औरतें
सशर्त गर्भवती हो रही हैं,
नेता जनना है तो ठीक
इंसान हम नहीं जनेगी.