मेरे गावं के गदेरे पर
नहीं था पहले एक भी पुल।
अक्सर स्कूल आते-जाते बच्चों को
पार करवाते थे तब बरसात में बड़े बुजुर्ग
कमर कमर भर पानी में।
फिर पंचायत में पैसा आया, और
एक पुल बना गावं के लिये।
कुछ साल बाद दूसरा, फिर तीसरा, और फिर चौथा।
अलग-अलग रास्तों पर अलग-अलग पुल बने
विकास के लिये, या फिर कयावद-
सरकारी धन को ठिकाने लगाने की ?
प्रधान बदलते गये और पुल बनते गये।
वक्त ने करवट ली- और आज
नहीं चढ़ता गदेरे में पानी इतना कि
कमर क्या घुटने भी भीग सके ठीक से।
और स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या
गिनी जा सकती है उंगलियों पर, क्योंकि
कर गये हैं पलायन लोग गावं से आज।
कल जब नहीं गुजरेगा कोई उन पुलों से
बैठे दिखेंगे पुलों की रेलिंग पर तब
केवल और केवल गूणी बान्दर ही।
नहीं था पहले एक भी पुल।
अक्सर स्कूल आते-जाते बच्चों को
पार करवाते थे तब बरसात में बड़े बुजुर्ग
कमर कमर भर पानी में।
फिर पंचायत में पैसा आया, और
एक पुल बना गावं के लिये।
कुछ साल बाद दूसरा, फिर तीसरा, और फिर चौथा।
अलग-अलग रास्तों पर अलग-अलग पुल बने
विकास के लिये, या फिर कयावद-
सरकारी धन को ठिकाने लगाने की ?
प्रधान बदलते गये और पुल बनते गये।
वक्त ने करवट ली- और आज
नहीं चढ़ता गदेरे में पानी इतना कि
कमर क्या घुटने भी भीग सके ठीक से।
और स्कूल जाने वाले बच्चों की संख्या
गिनी जा सकती है उंगलियों पर, क्योंकि
कर गये हैं पलायन लोग गावं से आज।
कल जब नहीं गुजरेगा कोई उन पुलों से
बैठे दिखेंगे पुलों की रेलिंग पर तब
केवल और केवल गूणी बान्दर ही।