Monday, February 21, 2011

कण्व ऋषि की प्रतीक्षा में है कण्वाश्रम -2

(पिछले अंक में आपने पढ़ा कि ऋषि विश्वामित्र किस तरह मालिनी तट स्थित आश्रम में आ गए. यहीं विश्वामित्र और मेनका के संयोग से शकुंतला का जन्म हुआ. मेनका ऋषि विश्वामित्र को पथभ्रष्ट करने के बाद पुत्री व ऋषि को छोड़कर चली गयी. और ऋषि विश्वामित्र भी कुछ समय पश्चात् आश्रम और पुत्री शकुंतला को अपने निकटस्थ महर्षी कण्व को सौंपकर अज्ञात स्थान की ओर प्रस्थान कर गए. )
           संभवतः महर्षि विश्वामित्र के पश्चात् महर्षि कण्व ही आश्रम के कुलपति नियुक्त हुए. शकुंतला का लालन पालन, दुष्यंत-शकुन्तला का प्रेम प्रसंग, भरत का जन्म तथा भरत का बाल्यकाल भी इसी आश्रम में महर्षि कण्व के काल में हुआ. अतः सभी पौराणिक ग्रंथों में यह कण्वाश्रम के रूप में लोकप्रिय हुआ. दुष्यंत शकुन्तला का पुत्र भरत ही चक्रवर्ती सम्राट बना और उनके नाम से ही हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा. भरत के पुत्र शांतनु हुए और शांतनु के पुत्र देवब्रत, अर्थात भीष्म पितामह हुए. भरत से ही कौरव, पांडवों को भरतवंशी कहा जाता हैं. 
          विद्वानों की राय में भगवान श्रीकृष्ण के देह परित्याग के पश्चात ही कलयुग प्रारंभ हुआ. कलयुग की गणना को कलिसम्वत कहते हैं. कलिसम्वत को युधिष्टर संवत भी कहा जाता है. कलयुग का प्रारंभ अर्थात द्वापर की समाप्ति. कलिसम्वत के 3044 वर्ष बाद बिक्रमी संवत का प्रारंभ माना जाता है. इस प्रकार भगवान श्रीकृष्ण को इहलोक गए 5100 साल से अधिक हो गए. राजा दुष्यंत युधिष्ठर से छः पीढ़ी पहले हुए अर्थात लगभग 300 बर्ष पूर्व. अतः महर्षि कण्व के समय को लगभग 5400 वर्ष पूर्व माना जा सकता है. महाभारत के आदिपर्व में कण्वाश्रम का वर्णन मिलता है, विद्वानों का मत है कि महर्षि वेदव्यास इसी आश्रम के स्नातक थे और बाद में इसी आश्रम के कुलपति भी नियुक्त हुए. महाकवि कालिदास व उनके दो साथी निचुल और दिगनणाचार्य ने इसी आश्रम में शिक्षा पाई. महाकवि की कालजयी रचना 'अभिज्ञानशाकुंतलम 'में ही नहीं अपितु 'रघुवंशम' के छटे सर्ग में भी कण्वाश्रम का विषद वर्णन मिलता है.          
        महाभारत एवं अभिज्ञानशाकुंतलम के आधार पर यह तो स्पष्ट है कि कण्वाश्रम मालिनी तट पर स्थित था. किन्तु वर्णित मालिनी नदी के विषय में जो भ्रम है वह भी स्पष्ट हो. महर्षि बाल्मीकि ने शोणभद्रा  को मगध मालिनी तथा गढ़वाल मालिनी को उत्तर मालिनी नाम दिया है. बाल्मीकि रामायण में वर्णन है कि राम वनवास के समय भरत को बुलाने जो दूत कैकेय भेजा गया था उसने मालिनी को वहां पर पार किया जहाँ पर कण्वाश्रम था, तत्पश्चात गंगा नदी को. अयोध्या-कैकेय मार्ग आज भी है जो कंडी रोड के नाम से जाना जाता है.(कंडी से अभिप्राय बांस व रिंगाल से बनी टोकरी से है) संभवतः राजाओं, साधुओं, तीर्थयात्रियों व ऋषि मुनियों द्वारा सुदूर क्षेत्रों की यात्रायें इस मार्ग से की जाती रही हो, जिससे यह मार्ग प्रचलन में रहा हो. कंडी रोड चौघाट (चौकी घाट) से होकर गुजरने का वर्णन ग्रंथों में मिलता है. पूरब-पश्चिम दिशा को जाने वाला यह मार्ग कोटद्वार के समीप गढ़वाल व बिजनौर जिले (वर्तमान उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश) की सीमा भी है. मालिनी के पृष्ठ भाग में हिमवंत प्रदेश है इसका वर्णन महाभारत में मिलता है.  
प्रस्ते हिमवते रम्ये मालिनीम भितो नदीम.
कालिदास ने मालिनी स्थित कण्वाश्रम को मैदानी व पर्वतीय भूभाग का मिलन माना है.
कार्यसैकतलीनं हंसमिथुना स्रोतोबहामालिनी , यदास्तामाभितो निष्न्नाहरिणा गौरी गुरो पावनः      
मालिनी चरकारण्य पर्वत से प्रवाहित होकर चौघाट तक अल्हड बाला की भांति उछलती कूदती आती है और फिर समतल भूभाग में बहती हुयी रावली (बिजनोर )में गंगा में प्रवाहित हो जाती है.           
                                                                                                                  अगले अंक में जारी ..............

8 comments:

  1. देव भूमि के बारे में बहुत सुन्दर प्रयास है आपका| धन्यवाद|

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  2. बहुत ग्यानवर्द्धक आलेख है। लेकिन कोटदुआर का नाम आते ही मन दुखी सा हो गया। यहीं मेरे जवान बेटे का मर्डर हुया था। वो बी ई एल मे सीनियर इन्जीनियर था। खैर आलेख के माधयम से अच्छी जानकारी मिली। पिछला आलेख भी आज ही पढा। धन्यवाद।

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  3. ज्ञानवर्धक लेख , बहुत सुंदर

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  4. namaste sir,
    apke diye comment ke bad apke blog ka pata chala.apka blog yakinan bhratiy darshan ka anupam sangrah hai. main abhi bahut nayi hoon apke blog parivaar main, lihaza meri itani haisiyat nahi hai ki aap jese gurujano ko ankane ka dussahas kar sakoon, balki aap jese gurujanon ke lekh hi hum jeson ko prerna dete hain. ab to apaki follower bhi ban gayi hoon. to asha hai ki aage bhi apaka ashirwaad milata rahega.
    namaskaar.

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  5. post ek behtrin dharawahik ke rup main achhi chal rahi hai , jari rakhiyega.
    abhaar...........

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  6. कण्व आश्रम व भरत का जन्म स्थल मालिनी व गंगा के मिलन स्थल पर स्थित था यह स्थान वर्तमान में जनपद बिजनौर का रावली ग्राम है ।पर

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  7. कण्व आश्रम व भरत का जन्म स्थल मालिनी व गंगा के मिलन स्थल पर स्थित था यह स्थान वर्तमान में जनपद बिजनौर का रावली ग्राम है ।पर

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