Monday, February 28, 2011

कण्व ऋषि की प्रतीक्षा में है कण्वाश्रम -3

अंतिम किश्त. ( क्रमशः अंक 2 से आगे  ............)
कण्वाश्रम                                                                 साभार गूगल
युधिष्टर के शाशनकाल तक कण्वाश्रम लोकप्रियता के चरम पर था. महारिशी वेदव्यास कुलपति तो रहे ही बल्कि उनके द्वारा अनेक ग्रंथों की सृजन स्थली भी यह आश्रम व मालिनी तट ही रहा. चाणक्य काल में यद्यपि तक्षशिला व मगध विश्वविध्यालय भी अस्तित्व में आ गए थे, किन्तु कण्वाश्रम महत्वहीन नहीं हुआ था. महाकवि के 'रघुवंशम' के अनुसार उनके समय में यह मथुरा के नीप वंशीय राजा सुवर्ण के अधीन था.  विदेशी आक्रमणों, छोटे-छोटे रजवाड़े बन जाने और संभवतः आश्रम को योग्य कुलपति न मिलने के कारण शनैः शनैः कण्वाश्रम अपना महत्व खोता गया और यह राहगीरों, यात्रियों, फकीरों का अड्डा बन कर ही रह गया.  
घाटी में सैकड़ों गुफाएं व समय समय पर उत्खनन के उपरांत प्राप्त भग्नावशेषों से यहाँ पर आश्रम होने की पुष्टि होती है. आश्रम के मानदंडो के अनुरूप यहाँ पर विद्यालय,छात्रावास, सम्मलेन स्थल आदि व कृषि योग्य प्रचुर भूमि भी आज भी है. कण्वाश्रम के छः-सात मील उत्तर में कौशिकी नदी किनारे विश्वामित्र की गुफा है जिसे स्थानीय लोग विस्तरकाटल कहते हैं, जो कि संभवतः विश्वामित्र काटल का अपभ्रंश है. आस पास सिद्धे  की धार, सिद्धे की गाजी आदि अनेक स्थल है. मालिनी उपत्यका के सौंदर्य ने "अभिज्ञानशाकुंतलम" जैसी अमर कृति के लिए भावभूमि का काम किया है. संभव है महाकवि कालिदास को मालविकाग्निमित्रं, रघुवंशम, कुमारसम्भवम आदि ग्रथों की सामग्री भी यहीं कहीं मिल गयी हो. 
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो समुद्र तल से लगभग साढ़े पांच सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित कण्वाश्रम विकास समिति, कोटद्वार  द्वारा विकसित स्थल के उत्तर में मध्य हिमालय है व दक्षिण में भावर (हल्की ढलान लिए मैदानी) क्षेत्र.  मालिनी के बाएं तट पर कोटला, गोरखपुर, नंदपुर, पदमपुर, शिवराजपुर, दुर्गापुर, मावाकोट, लिम्बूचौड़, घमंडपुर आदि गाँव  तो दायें तट पर उदैरामपुर, कमालगंज, भीमसिंग पुर, मानपुर, त्रिलोकपुर, गीतापुर, हल्दूखाता, किशनपुरी आदि गाँव है. मालिनी को मालन या मालिन नदी कह कर संबोधित किया जाने लगा है. वर्षा का औसत वर्ष दर वर्ष कम होने से मालिनी में पानी बहुत कम रह गया है. बल्कि यह कहना ज्यादा प्रासंगिक होगा की मालिनी वर्तमान में बरसाती नदी बन कर रह गयी है.  गढ़वाल मंडल विकास निगम द्वारा "कण्वाश्रम विश्राम गृह" बना तो दिया गया है किन्तु कोटद्वार से पांच छः मील दूर होने व सुविधाएँ न होने के कारण शायद ही कोई यहाँ रुकता हो. मुज़फ्फरनगर निवासी व्यक्ति द्वारा यहाँ पर एक गुरुकुल की स्थापना की गयी है किन्तु अभी गुरुकुल जैसा कुछ भी नहीं दिखाई दिया. कण्वाश्रम विकास समिति द्वारा प्रतिवर्ष बसंत पंचमी पर दो तीन दिन का मेला आयोजित करवा इति समझी जाती है. चिंता का विषय है कि हमें अपनी थाती, अपनी विरासत को सहेजने का सलीका कब आएगा ?  
       कोटद्वार उत्तराखंड राज्य के गढ़वाल संभाग के अंतर्गत पौड़ी गढ़वाल जनपद का तहसील मुख्यालय है. यहाँ पर हनुमान जी के सिद्धबली मंदिर में दूर-दूर से भक्त दर्शनार्थ आते हैं, जो कि खोह नदी के बाएं तट पर एक ऊंची चट्टान पर स्थित है. राज्य सरकार के अनेक विभागों के अतिरिक्त भारत सरकार का उपक्रम 'भारत इलेक्ट्रिकल लिमिटेड ' भी यहाँ पर है. ठहरने हेतु कण्वाश्रम विश्राम गृह के अतिरिक्त गढ़वाल मंडल विकास निगम का 'पनियाली विश्राम गृह ' भी है. वन विभाग का भी पनियाली में विश्राम गृह है. इसके अतिरिक्त पी० डब्लू० डी० का व पेय जल निगम का भी गेस्ट हॉउस है तथा देवयानी, पैराडाईज व राज आदि होटल में ठहरा जा सकता है. दिल्ली से लगभग 250 किलोमीटर व हरिद्वार से 75 किलोमीटर दूरी पर कोटद्वार सड़क व रेल मार्ग से भली भांति जुड़ा हुआ है.  
 
  

3 comments:

  1. मैथलीशरण गुप्त ने भी लिखा था

    पढ़ते सहस्रों शिष्य थे पर फीस ली जाती नहीं ,

    उच्च शिक्षा तुच्छ धन पर बेच दी जाती नहीं .

    इस गरिमामय कण्वाश्रम पर आपका शोध पूर्ण लेख, एतिहासिक एवं ज्ञान वर्धक hai

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  2. अब तो कण्वाश्रम से दिल का रिश्ता जुड गया है। कभी आऊँगी जरूर देखने। शायद देख कर कुछ स्कून मिले। बहुत बहुत शुभकामनायें।

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