Sunday, April 22, 2012

अब तुम्हारे हवाले वतन.....

पेशावरकाण्ड की 82 वीं वर्षगांठ पर विशेष  
                       स्वतंत्रता आन्दोलन में जिस सेनानी में गांधी जैसी अहिंसा दृष्टि, नेहरु जैसी सौम्यता, पटेल जैसी दृढ़ता, सुभाष जैसा दुस्साहस, भगत सिंह जैसे विचार और चन्द्रशेखर 'आजाद' जैसा स्वाभिमान एक साथ देखा जा सकता है वह सिर्फ और सिर्फ चन्द्र सिंह गढ़वाली ही थे.
गढ़वाली  (25/12/1891 - 01/10/1979 )
                        आजादी की लड़ाई पूरे भारतवर्ष में लड़ी जा रही थी और शांति व सुरक्षा व्यवस्था बनाये रखने के लिए पुलिस व सेना जगह-जगह तैनात थी. पेशावर में भी गढ़वाल रायफल्स की 2 /18 बटालियन की 'ए' कम्पनी तैनात थी. इंडियन नेशनल कांग्रेस की पहल पर पेशावर शहर के किस्साखानी बाजार में देशभक्त पठानों द्वारा 23 अप्रैल 1930 को अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाते व तिरंगा हाथों में लहराते हुए नमक सत्याग्रह के पक्ष में एक जुलूस निकाला जा रहा था कि एक अंग्रेज अधिकारी द्वारा आजादी के इन दीवानों पर गोली चलाने का निर्देश दिया गया-'गढ़वाल, थ्री राउंड फायर!' किन्तु क्वार्टर मास्टर(न0-253, प्लाटून न0-4)चन्द्र सिंह भंडारी पुत्र जाथली सिंह भंडारी, निवासी- मासौं, थलीसैण, पौड़ी गढ़वाल (जिन्होंने बाद में अपना उपनाम 'भंडारी' के स्थान पर 'गढ़वाली' लिखा व इसी नाम से आज हम उन्हें जानते हैं) ने अपनी प्लाटून न0-4 व प्लाटून न0-1 के सिपाहियों को तत्काल निर्देश दिया 'गढ़वाली सीज फायर !' जवानों ने गढ़वाली के आदेश का पालन करते हुए गोली चलाने से इंकार कर दिया. बंदूकें निर्दोष देशभक्त पठानों पर नहीं उठी तो नहीं उठी. 
                        दोनों ओर से प्रतिक्रिया हुयी, जबरदस्त. अंग्रेज अधिकारी हतप्रभ रह गये और देशभक्त पठान गढ़वाली जवानों की जय-जयकार करने लगे. देखते ही देखते यह खबर आग की तरह चारों ओर फ़ैल गयी. जनता उन वीर जवानों को देखने के लिए सड़कों पर उमड़ पड़ी और अंग्रेजों की नींद उड़ गयी. आज गढ़वाली सेना ने अपने ही अंग्रेज अधिकारी का आदेश मानने से इंकार कर दिया गया था. सम्पूर्ण ब्रिटिश साम्राज्य में यह पहला सैनिक विद्रोह था. वह भी उन गढ़वाली वीरों द्वारा जो प्रथम विश्वयुद्ध में फ्रांस के मोर्चे पर अंग्रेजों के पक्ष में लड़ते हुए अपना लोहा मनवा चुके थे. यह माना जाता है कि कूटनीति के तहत ही अंग्रेजों द्वारा पठानों के दमन हेतु गढ़वाली जवानों को तैनात किया गया था. वे जानते थे कि गढ़वाली सेना में सभी जवान हिन्दू हैं और पेशावर में आजादी के सभी दीवाने मुस्लिम पठान. फिर फायर हेतु कोई लिखित आदेश भी नहीं दिया गया. वे जानते थे कि गोली काण्ड होते ही इसे सांप्रदायिक रूप दिया जाएगा और वे "divide and rule" के तहत हिंदुस्तान पर अपना साम्राज्य लम्बे समय तक बनाये रख सकेंगे. चन्द्र सिंह गढ़वाली व उनकी सैनिक टुकड़ी को संभवतः इस षड्यंत्र की भनक एक दिन पहले ही लग गयी थी. और परिणति "  सीज फायर "   के रूप में हुयी. इस अभूतपूर्व घटना ने कई मिशालें कायम कर दी. पहली, यह कि देशभक्त सत्याग्रहियों पर गोली न चलाकर अहिंसा का अनूठा उदहारण, अन्यथा अंग्रेजों की मंसा तो जालियांवाला बाग़ की पुनरावृत्ति की थी. दूसरी, ब्रिटिश अधिकारियों की साम्प्रदायिक दंगे फ़ैलाने की कुचेष्टा पर कुठाराघात. तीसरी, ब्रिटिश साम्राज्य को यह सन्देश कि फौजी अनुशासन भी देशभक्ति का ज्वार नहीं रोक सकता और न ही कोई भय उन्हें पथ से डिगा सकता है. कालांतर में आजाद हिंद फ़ौज के गठन और ब्रिटिश रायल नेवी विद्रोह के लिए भी इसी पेशावर काण्ड ने प्रेरक का काम किया.
                        चन्द्र सिंह गढ़वाली और उनके अन्य साथियों को गोरों ने उसी दिन हिरासत में लिया. सभी जवानों ने अपने-अपने हथियार स्वयं ही जमा कर दिए. अन्यथा दूसरी सेनाएं भय से या सम्मान से उनके पास आने से बच रही थी. 24 अप्रैल को एक अंग्रेज अधिकारी ने गढ़वाली फौजियों को गाली दी तो रायफलमैन दौलत सिंह रावत व लांसनायक भीम सिंह ने फौजी बूटों से उसकी मरम्मत कर दी. चन्द्र सिंह गढ़वाली और उनके साथियों को मालूम था कि कोर्ट मार्शल होगा और फांसी तक की सजा हो सकती है, किन्तु अंग्रेजों के एक और षड्यंत्र से वे अनजान थे. पेशावर से बाहर ले जाने के लिए इस फौजी टुकड़ी को जिस रेल में बिठाया गया उसे समुद्र में डुबोने की योजना थी. पेशावरवासियों को जब इसकी भनक लगी तो उन्होंने रेल रोक दी. फिर इस टुकड़ी को एबटाबाद होते हुए काकुल ले जाकर तोप से उड़ाने की योजना बनी किन्तु आजादी की मतवाली जनता वहां भी बाधक बनी. दूसरी ओर अंग्रेजों को यह आशंका भी सताने लगी कि यदि इन्हें तोप, गोली से उड़ा दिया गया तो कहीं राष्ट्रव्यापी सैनिक विद्रोह न हो जाय.
                       कोर्ट मार्शल की कार्यवाही 2 जून से 8 जून तक चली. जवानों की ओर से मुकुन्दी लाल बैरिस्टर ने पैरवी की. आरोप तय हुआ कि सिपाहियों ने आदेश का उल्लंघन किया है व अनुशासन तोडा है. गढ़वाली व सभी साथी पहले ही स्पष्ट कर चुके थे कि बहरी दुश्मनों द्वारा आक्रमण करने पर वे अपनी जान तक न्यौछावर करने से नहीं हिचकते किन्तु निरपराध व निहत्थे नागरिकों पर गोली चलाना फौजी अनुशासन नहीं हो सकता. बैरिस्टर की बचाव की दलील भी इसीके आस पास थी. फ़ौज का काम सीमा पर युद्ध लड़ना हैं, जनता पर गोली चलाना नहीं. फौजी अदालत ने 11 जून 1930 को फैसला सुना दिया- दोनों प्लाटूनों के 60  जवानों की सेना से बर्खास्तगी तथा सम्पति, वेतन व पूरा जमा फंड जब्त. चन्द्र सिंह गढ़वाली सहित 17 जवानों को एक साल से लेकर कालापानी/आजीवन कारावास तक की सजा सुनाई गयी (गढ़वाली को कालापानी तथा हवालदार नारायण सिंह गुसाईं, नायक जीत सिंह रावत व नायक केशर सिंह रावत को 15-15 साल की जेल की सजा हुयी) और 43 जवानों को लाहोर होते हुए वापस गढ़वाल रायफल्स के मुख्यालय लैंसडौन भेज दिया गया.
                         लाहोर में इन गढ़वाली सिपाहियों का जोरदार स्वागत हुआ और देखते ही देखते 12000/= रुपये इकट्ठे किये गए. किन्तु सभी जवानों ने रुपये लेने से इंकार कर दिया और कठिन परिस्थितियों में ही जीवन गुजारा किया. चन्द्र सिंह गढ़वाली व उनके साथियों को एबटाबाद, डेरा इस्माइलखां, लखनऊ, बरेली, देहरादून व अल्मोड़ा की जेलों में रखा गया. साथी 16 जवान पहले ही जेल से छूट गए किन्तु चन्द्र सिंह गढ़वाली 11 साल, 3 महीने व 18 दिन जेल में रहने के बाद 26 सितम्बर 1941 को रिहा हुए. जेल में रहते हुए उन्हें अनेक प्रख्यात क्रांतिकारियों का सानिध्य मिला. जिनमे प्रमुख थे- यशपाल, शिव वर्मा व रमेश सिन्हा. गाँधी जी व मोतीलाल नेहरु से वे मुलाकात पहले कर चुके थे और जवाहर लाल नेहरु, सुभाष चन्द्र बोस, आचार्य नरेंद्र देव आदि उनसे मिलने आये.
                   चन्द्र सिंह गढ़वाली जेल से तो छूट गए किन्तु अंग्रेज सरकार ने उनके गढ़वाल प्रवेश पर रोक लगा दी थी. जिससे वे पूरी तरह आजादी की लड़ाई में शामिल हुए और भारत छोडो आन्दोलन के दौरान वे इलाहबाद में गिरफ्तार हुए और 3 वर्ष जेल में रहे. 16 वर्ष से अधिक समय बाद 26 दिसम्बर 1946 को वे गढ़वाल लौटे. इस सपूत को देखने के लिए लोग उमड़ पड़े. जगह जगह उनका स्वागत हुआ. चन्द्र सिंह गढ़वाली संभवतः देश के प्रथम स्वतंत्रता सेनानी होंगे जो 14 वर्ष से अधिक समय तक जेल में रहे. किन्तु दुखद पहलु यह भी रहा कि गांधी जी पेशावरकाण्ड के लिए गढ़वाली की आलोचना कर चुके थे अपितु 20 फरवरी 1932 को लन्दन में द्वितीय गोलमेज सम्मलेन के दौरान उन्होंने गढ़वाली की रिहाई के लिए कोई मांग भी नहीं रखी. कुछ समय बाद देश आजाद हुआ किन्तु देशभक्ति का जज्बा उनके अन्दर बना रहा. वे टिहरी रियासत के खिलाफ जनक्रांति में सम्मिलित हुए. शराब विरोधी आन्दोलन हो या भविष्य में उत्तराखंड  बनने पर  राजधानी गैरसैंण को  बनाये जाने का चिंतन अथवा जन सरोकारों को लेकर कोई और मुददा. वे आजीवन संघर्षरत रहे. इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि जिस देशभक्त को भारत रत्न से नवाजा जाना चाहिए था, जिनके नाम पर पुरस्कार की घोषणा होनी चाहिए थी. उस वीर सेनानी को कोई पदम् पुरस्कार तक भी नहीं दिया गया.  
                                         साभार- महीपाल सिंह नेगी के आलेख  "गढ़वाली सीज फायर"  के सम्पादित अंश

9 comments:

  1. वीर सेनानी चन्द्र सिंह गढ़वाली के बारे में विस्तृत ऐतिहासिक जानकारी प्रस्तुति के लिए आभार
    अपने वतन के लिए सर्वस्व कुर्बान करने वाले अमर वीर सेनानी को सादर नमन !

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  2. thanks for providing detail but concise fact about our uttarakhandi hero. this story will be a great tourch bearer for teen generation of uttarakhand, we should make all efforts to make available this true story to them.

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  3. भारत माँ के वीर सपूत देवभूमि उत्तराखंड का गौरव पूरी दुनिया में गढ़वालियो को पहचान दिलाने वाले वीर चंद्र सिंह गढ़वाली का बलिदान सदा याद रहेगा |
    वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के बारे में बिस्तृत जानकारी हेतु धन्यबाद

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  4. वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली जी को शत शत नमन. उनके महान कार्य को कौन भूल सकता है. गढ़वाली जी चाहते तो सैनिको को निहत्थे पठानों पर गोली चलाने का आदेश दे सकते थे. वीर गढ़वाली जी ने "काल के कपाल पर" लिख दिया...."उत्तराखंडी अन्याय का साथ कभी नहीं दे सकते और देश भक्ति उनकी महान है" उत्तराखंडी समाज के लिए एक अभिमान की बात है, हमारा कर्तब्य है हम उनकी तरह महान कार्य करें, नाम रोशन करें. गढ़वाली जी को भारत रत्न प्रदान किया जाना चाहिए, जिसके स्वर्गीय गढ़वाली जी हक्कदार हैं.
    -लेख के माध्यम से गढ़वाली जी के बारे में विस्तार पूर्वक जानकरी हेतु आभार और धन्यवाद...

    -जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"

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  5. वीर सेनानी चन्द्र सिंह गढ़वाली के बारे में विस्तृत ऐतिहासिक जानकारी प्रस्तुति के लिए आभार

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  6. शायद आपके पोस्ट पर प्रथम बार आया हू । वीर सेनानी चन्द्र सिंह गढ़वाली के बारे में रोचक जानकारी मिली ।
    समय इजाजत दे तो मेरे नए पोस्ट पर आकर मुझे प्रोत्साहित करने की कोशिश करें । धन्यवाद ।

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  7. 25 दिसंबर 1891 को जन्मे महान स्वतंत्रता सेनानी श्री चन्द्र सिंह गढवाली को उनके जन्मदिवस पर शत शत नमन.

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  8. 25 दिसंबर 1891 को जन्मे महान स्वतंत्रता सेनानी श्री चन्द्र सिंह गढवाली को उनके जन्मदिवस पर शत शत नमन.

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