Saturday, April 28, 2012

मैन वर्सेस वाइल्ड



छाया - साभार गूगल  
इस विशेष सप्ताह में  'वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्सन' व 
 'कन्जर्वेसन ऑफ़ टाइगर' जैसे मुद्दों पर बहस करते,
साथी चर्चाकारों के साथ उलझते, लड़ते, झगड़ते 
पक जाता हूँ, थक जाता हूँ  आफिस में  हर रोज  
थका-हारा घर लौटते एक शाम नोट करता हूँ कि -
मनुष्य जितने हो गए धरती पर बाघ, और
कुल बाघ जितने रह गए मनुष्य .

जारी है पलायन बाघों का- जंगलों से शहरों की ओर
और मनुष्य ठूस दिए गए हैं पिंजरों में, चिड़ियाघरों में,
वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी में, नेशनल पार्कों में.
बाघों की सत्ता हो गयी धरती पर और मनुष्य-
गिने जा रहे हैं उँगलियों पर निरीह प्राणी से.
इतने हैं अमुक चिड़ियाघर में, फलां सैंक्चुरी में
या इतने फलां पार्क में. इतने नर, इतने मादा.
चर्चाएँ, बहस और सेमिनार हो रहे खूब बड़े-बड़े
मनुष्यों के नाम पर, उनकी सुरक्षा को लेकर
हाईलाइट हो रही ख़बरें टी० वी०, रेडियो, अख़बारों में
पढ़ रहे ख़बरें बाघ घर के लान में बैठकर,
कभी दोस्तों के बीच चाय की चुस्कियों के साथ
और कभी अंगड़ाई ले-लेकर टी० वी० देखते !


आये दिन ख़बरों की हेडलाइन होती कि-
'एक मादा मनुष्य भटक रही थी जंगलों में
अपने दो बच्चों के साथ भोजन की तलाश में
कि, एक जांबाज बाघ ने तीनो को मार गिराया.'
या कभी इस तरह भी कि,
'कुछ बाघखोर मनुष्य घुस आये रात बस्ती में 
और दो माह के शावक को ले गए उठाकर
अपनी कई दिनों की क्षुधा मिटाने को
बाघों ने सारी रात जंगल पूरा छान मारा 
पर शावक नहीं पाया गया, न जीवित और न मृत ही' 

मै आफिस से जल्दी-जल्दी सीधे घर भागता हूँ
कि कुछ वर्दीधारी खूंखार बाघ लपक पड़े मेरी ओर
वे फाड़ना चाहते थे मेरा शरीर, नोचना चाहते थे बोटी बोटी 
एक समझदार, प्रौढ़ बाघ ने बचा लिया मुझे  इतने में 
करवा दिया बंद मनुष्यों के बीच सीधे चिड़ियाघर में 
अब कटती है जिंदगी खूब मौज मस्ती में  
चिढ़ाता हूँ मै खुश होकर रोज दर्शक बन आये बाघों को-
जाली के इस ओर कभी उस पार -घुर्रर्रर्रर्र.. खौंऔंऔंऔं... 


छाया - साभार गूगल 
होता है गीलेपन का सा अहसास एकाएक
सपना टूटता है, उठिए बाघ महाराज कहकर 
साक्षात् दुर्गा बनी सिरहाने खड़ी मेरी पत्नी 
बाल्टी भर पानी मुझ पे उड़ेल मुझे जगाती है, और
मेरी घुर्रर्रर्रर्र खौंऔंऔंऔं, म्याऊं-म्याऊं में बदल जाती है !

17 comments:

  1. वाह............
    क्या व्यंगात्मक कटाक्ष है..............
    एकदम पैना.........

    सादर.

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  2. एक नए अंदाज और व्यंगात्मक शैली में लिखी गई आपकी यह कविता मन के संवेदनशील तारों को झंकृत कर गई । हरिवंश राय बच्चन की एक कविता पोस्ट किया हूं, जरूर पढ़े शायद आपके दिल में छोड़ी सी जगह पा जाए । धन्यवाद ।

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  3. आपका ये व्यंगात्मक कटाक्ष बेहद पसंद आया। आपको बधाई सर जी ।

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  4. मेरी घुर्रर्रर्रर्र.. खौंऔंऔंऔं... म्याऊं, म्याऊं में बदल जाती है,...
    आपका ये अंदाज पसंद आया,..रावत जी

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  5. आपका ये व्यंगात्मक कटाक्ष बहुत सटीक और सही है ...बहुत सुन्दर....

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  6. वाह रावत जी वाह ...........सच में आज के समय में लोग व्यंगात्मक लेखों से दूर जा रहे हैं क्योंकि हर कलम व्यंग पर नहीं चल सकती, शव्दों के ढेर तो बहुत सरे लोग इकठ्ठे कर रहे है, आप के इस व्यंगात्मक अंदाज को सलाम ! सुन्दर प्रस्तुति

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  7. Waah !..Great satire... Loving it .

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  8. bagh hamare paryavarn ke liye nitant awshyak hain kintu manushy rupi bagh ko nasht kar dena chahiye.

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  9. bahut khoob sir...vyangy ke madhyam se sashkt sandesh deti sarthak post..

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  10. आपका लिखने का अंदाज पसंद आया,...सुंदर प्रस्तुति,..

    my recent post....काव्यान्जलि ...: कभी कभी.....

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  11. होता है गीलेपन का सा अहसास एकाएक
    सपना टूटता है, उठिए बाघ महाराज कहकर
    साक्षात् दुर्गा बनी सिरहाने खड़ी मेरी पत्नी
    बाल्टी भर पानी मुझ पे उड़ेल मुझे जगाती है, और
    मेरी घुर्रर्रर्रर्र खौंऔंऔंऔं, म्याऊं-म्याऊं में बदल जाती है !

    Ha-ha-ha....

    रावतजी , मुझे लगता है कि आपके ब्लॉग पर जो हिन्दी ट्रांसलिट्रेसन का टूल लगा है उसी में कुछ खराबी है ! आप गूगल के में पृष्ट पर गूगल सर्च में "google hindi translitretion" type करके उस पर क्लिक करके गूगल ट्रांसलिट्रेसन पृष्ठ का भी इस्तेमाल कर सकते है! मैं भी यही इस्तेमाल करता हूँ ! एक और जगह (साईट ० शायद आप वाकिफ भी हों इससे ! हम कुछ गिने चुने उत्तराखंडी भाई -बंद इस मंच पर वाद-विवाद करते है साईट का नाम है http://uttaranchal.yuku.com/. इस पर भी जाकर आप सीधे " now type and post in hindi tool" पर क्लिक करके हिन्दी लिख सकते है ! साथ ही इस मंच के वाद-विवाद पोर्टल पर भी आपका स्वागत है !

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    1. Thanx. Godiyal jee. Mai try karoonga aur fir aapko likhoonga. Thanx again.

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  12. यह क्या हो गया .........
    शुभकामनायें !

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  13. pahle wild the insaan phir se usi disha mein jaa rahai hai.. bahut achha likha hai..

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