Saturday, May 26, 2012

एक शापित शिला

छाया - साभार गूगल 
शेरशाह, शाहजहाँ आदि बादशाहों की नजरों से
बौद्ध मठों, जैन मंदिरों व मूर्तियों के निर्माताओं से
बल्कि उससे पूर्व, सभ्यता की नीवं रखने वालों से 
छुपकर दुबका हुआ, मिटटी रेतगारे में पड़ा हुआ,
धरती के सीने पर गड़ा हुआ- एक पत्थर हूँ मै ।

ईश्वर ! भयभीत रहा हूँ मै सदा मानवी छायाओं से
आंकते हैं जब भी वे कभी मेरी उपयोगिता-
किसी देवालय की नीवं-दीवारें चिनवाने के लिए,
या शहर की ऊंची इमारतों के निर्माण के लिए,
किसी मंदिर की मूरत बनवाने के लिए, या किसी  
भ्रष्ट नेता का पापमय चेहरा गढ़ने के लिए ही।

ओह मनुष्यों ! तुम्हे तो बस
मिटा देना ही आता है किसी के अस्तित्व को
प्रहार करना ही आता है किसी की अस्मिता पर 
हो सकती है स्वतंत्र सत्ता मेरी भी, ऐतराज है क्यों तुम्हे
अरे मानव!
नहीं हो चराचर के स्वामी तुम,
उस अनाम-कोटिनाम विधाता की ही कृति हो-
तुम भी, मै भी. किया नहीं प्रयास कभी
तुम्हारा मार्ग बाधित करने का मैंने 
तुम ही गुजरते रहे हो अपितु, ठोकरें मार कर
या कभी मेरे सीने को ही रौंद कर।

शापित शिला हूँ मैं, युगों युगों से धरती के सीने में
दुबका हुआ, मिटटी रेतगारे में गड़ा हुआ.
मानव ! भगवान के लिए ही सही, रहने दो मेरी स्वतंत्र सत्ता, 
यूं ही पड़ा रहने दो मुझे, तुम यूं ही गड़ा रहने दो मुझे।

8 comments:

  1. ओह मनुष्यों ! तुम्हे तो बस
    मिटा देना ही आता है किसी के अस्तित्व को
    प्रहार करना ही आता है किसी की अस्मिता पर
    हो सकती है स्वतंत्र सत्ता मेरी भी, ऐतराज है क्यों तुम्हे
    अरे मानव!

    कविता का प्रत्येक शब्द एक अनूठा एहसास हमारे साथ सांझा कर रहा है .....और यही शापित शिला की अभिव्यक्ति है ....आपने बखूबी शब्दों का इस्तेमाल किया है ...!

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  2. मानव ! भगवान के लिए ही सही, रहने दो मेरी स्वतंत्र सत्ता,
    यूं ही पड़ा रहने दो मुझे, तुम यूं ही गड़ा रहने दो मुझे।

    बहुत सुंदर मन के भावो की प्रस्तुति,,,,,

    RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,

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  3. yakinan jo jitna kathor dikhata hai uska mann utna komal...
    shbdo ke madhyam se aapne ek dard ko bakhoobi ukera hai..

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  4. koi to naya ram ayega is shapit shila ko mukt karne!

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  5. शापित शिला हूँ मैं, युगों युगों से धरती के सीने में
    दुबका हुआ, मिटटी रेतगारे में गड़ा हुआ.
    मानव ! भगवान के लिए ही सही, रहने दो मेरी स्वतंत्र सत्ता,
    यूं ही पड़ा रहने दो मुझे, तुम यूं ही गड़ा रहने दो मुझे...

    Very impressive creation Subir ji.

    .

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  6. संवेदनशील रचना ...आज के भविष्य से सवाल है ...

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  7. Hi, of course this paragraph is in fact pleasant and I have learned lot
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