Thursday, November 15, 2012

अद्भुत, अनुपम सौन्दर्य है रेणुका जी का


गिरी नदी का विहंगम दृश्य 
     देहरादून जिले का शिवालिक पहाड़ी व हिमालय के मध्य वाला भाग दून वैली के नाम से विख्यात है। दून वैली की पूर्वी सीमा गंगा नदी है और पश्चिमी सीमा यमुना तथा टोंस नदी।  दो-तीन महीनों से देहरादून के बाहर नहीं निकल पाया था। छटपटाहट थी मन में। एक दो दोस्तों को फोन किया, किन्तु हर कोई इतना व्यस्त कि ‘‘घूमने’’ जैसे शब्द वे सुनना भी पसन्द नहीं करते। फिर गुरुदेव की कविता याद आयी-
‘‘जदि तोर डाक सूने केउ ना आसे,
 तोबे ऐकला चलो रे,
 ऐकला चलो  ऐकला चलो  ऐकला चलो रे।.............’’

      अतः ‘ऐकला चलो’ की नीति पर हिमाचल में रेणुका जी घूमने निकल गया। शिमला, कुलू, मनाली, धर्मशाला, डलहौजी जैसे अनेक दर्शनीय स्थलों तथा बागवानी व भेड़पालन के लिये विख्यात हिमाचल प्रदेश के दक्षिण-पूर्व में सिरमौर जिला है। कभी सिरमौर एक स्वतंत्र रियासत थी। प्रकृति प्रेमी राजा करण प्रकाश ने सन् 1621 में समुद्रतल से लगभग 930 मीटर ऊँचाई वाली कछुये जैसी पहाड़ी पर इस राज्य का मुख्यालय नाहन बसाया, जो आज भी सिरमौर का मुख्यालय है। सन् 1803 में गोरखों ने गढवाल व कुमाऊँ के साथ-साथ सिरमौर को भी अपने कब्जे में ले लिया था जो कि बारह वर्षों तक उनके अधीन रहा। सन् 1815 में अंग्रेजों के साथ सिंघौली की सन्धि के उपरान्त ही गढ़वाल, कुमाऊँ सहित सिरमौर रियासत भी गोरखों के अत्याचार से मुक्त हो पायी थी। तत्पश्चात सिरमौर रियासत औपनिवेशिक राज्य बना। स्वतन्त्रतोत्तर भारत में सरदार बल्लभ भाई पटेल की पहल पर 565 रियासतों का विलय भारतीय गणराज्य में हुआ, सिरमौर रियासत भी उनमें एक थी।
 रेणुका जी के निकट पथ प्रदर्शक 
       यमुना के दायें तट पर बसा हुआ पावंटा साहिब एक चहल पहल वाला नगर है, जो सिरमौर का हिस्सा है। पावंटा साहिब देहरादून के पश्चिम में 55 कि0मी0 तथा चण्डीगढ़ से 95 कि0मी0 पूरब में स्थित है। रेणुका जी के लिये पावंटा से सतौन होते हुये तथा नाहन से भी नियमित बस सेवा है। गिरी नदी, जो कि सिरमौर जिले को ठीक मध्य से दो समान भागों में विभक्त करती है, पार कर दो पहाड़ियों के बीच में आधा कि0मी लम्बा समतल भूभाग में मेला मैदान है।कुछ आगे लगभग चार सौ मीटर परिधि वाला एक परशुराम ताल विकसित किया गया है। इस कुण्ड के सिरे पर ही माँ रेणुका जी का भव्य मन्दिर है। आगे बढते हैं तो जमदग्नि टीला व धार गावं की पहाड़ी के मध्य स्थित है गुब्बारे के आकार वाली प्राकृतिक रेणुका झील।  जो लगभग डेढ़ कि0मी0 लम्बी और औसतन दो सौ मीटर चौड़ी है। झील के चारों ओर हरा-भरा घना जंगल है । घना जंगल होने के कारण हमें तरह तरह की चिड़ियाओं व जंगली जानवरों की मनमोहक गूंजें सुनायी देती है। झील की परिक्रमा के लिये एक पक्की सड़क है। परिक्रमा करते हुये मैने देखा कि कुछ श्रृद्धालु लोग सड़क की रिटेनिंग वाल के ऊपर छोटे छोटे चार-पांच पत्थरों को एक के ऊपर एक करके रख रहे थे। बचपन में हम ऐसे ही पांच पत्थरों को एक के ऊपर एक रखकर क्रिकेट की बॉल जितनी रबर की गेंद से खेला करते थे, जिसे ‘पंचपथरी’ खेल कहा जाता है। श्रृद्धालु से पूछा तो  बताया कि जो इन पत्थरों को गिरायेगा हमारा सारा दुःख उस व्यक्ति पर लग जायेगा और हम दुःखों से मुक्त हो जायेंगे। 
रेणुका जी का भव्य मन्दिर 
      झील के दायीं ओर आश्रम है व कुछ मन्दिर भी। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये हिरन, रीछ, शेर, मिथुन इत्यादि जानवर अलग अलग स्वतन्त्र बाड़े बनाकर यहां रखे गये हैं। झील में महाशीर मछलियां बहुतायत में है और पर्यटक व भक्त मछलियों को दाना डालते हैं। बोटिंग की पूरी सुविधा है अतः एकान्तचाहने वाले प्रेमियों को यह शान्त व रमणीक जगह खूब पसन्द आती है। ठहरने के लिये घने जंगलों के बीच हिमाचल प्रदेश पर्यटन विभाग का यहां पर एक बड़ा सा गेस्ट हाऊस है और मात्र डेढ कि0मी0 दूर ददाहु नगर में अनेक होटल हैं।  
       पुराणों के अनुसार रेणुका जी नामक यह तीर्थस्थल भगवान परशुराम जी की जन्मस्थली है। परशुराम भगवान विष्णु के अवतार थे। ऋषि जमदग्नि और भगवती रेणुका के पुत्र के रूप में जन्में परशुराम का बचपन का नाम राम था। राम ने शस्त्र संचालन भगवान शिव से सीखा और राम की भक्ति और शौर्य से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने राम को परशा भेंट किया। दन्तकथा है कि जमदग्नि ऋषि की कामधेनु गाय व पत्नी रेणुका प्राप्ति के लिये राजा सहस्रबाहु ने ऋषि जमदग्नि की हत्या कर दी। अपनी लाज की रक्षार्थ व शोक से व्याकुल होकर भगवती रेणुका ने रामसरोवर में जलसमाधि ले ली। वयस्क होने पर राम को जब यह पता चला तो उन्होंने फरसे से सहस्रबाहु व उसकी सेना का संहार कर दिया। शासन व्यवस्था बिगड़ने पर उन्होंने इक्कीस बार भ्रष्ट शासकों का वध किया। तभी से वे परशुराम कहलाये जाने लगे। परशुराम ने तपोबल से माँ रेणुका जी को 
झील का मनोहारी दृश्य 
बुलाया। माँ रेणुका ने परशुराम को वचन दिया कि प्रतिवर्ष देवप्रवोधिनी एकादशी पर वह सरोवर से बाहर आयेगी और मुक्त भाव से सभी को दर्शन देगी। इतना कहकर माँ अन्तर्धान हो गयी।
तभी से रामसरोवर रेणुका झील कहलाने लगी और रेणुका जी के दर्शनार्थ प्रतिवर्ष देवप्रवोधिनी ( कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में) एकादशी को झील के निकट लाखों भक्त एकत्रित होते हैं। इस अवसर पर रेणुका विकास बोर्ड, सिरमौर, द्वारा इस अवसर पर दशमी से पूर्णिमा तक, पांच दिन मेला आयोजित किया जाता है।  श्रृद्धालु झील में स्नान कर पूजा अर्चना करते हैं । मेला मैदान में सांस्कृतिक आयोजन के अन्तर्गत हिमाचल प्रदेश की लोक संस्कृति की झलक दिखायी देती है। जिसमें राज्य ही नहीं पूरे देश भर के संस्कृति प्रेमी भाग लेते हैं।

4 comments:

  1. ...इसी बहाने हम भी ऐसे सुरम्य पवित्र स्थलों की सैर कर लेते हैं
    रेणुका जी मंदिर का सुन्दर मनोहारी चित्रण प्रस्तुति के लिए आभार...

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  2. इस पवित्र स्थल के बारे में जानकारी देती आपकी यह पोस्ट अच्छी लगी।मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।

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  3. Awesome pics with great description.

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  4. Do you have any video of that? I'd like to find out more details.


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