इस पराये शहर में
रहता हूँ अपने लोगों के बीच,
बैठता हूँ अपनें लोगों के बीच,
मिलते हैं साथ सुख-दुःख में,
होते हैं साथ सुख-दुःख में।
इस शहर के अपने लोग-
दूसरे बड़े शहर की बात करते हैं,
बड़े शहर बसने की चाह रखते हैं।
उन्हें सिर्फ धन-दौलत की बातें सुहाती,
उन्हें जमीन-जायदाद की बातें ही भाती।
इस शहर के अपने लोग-
अपने गावं की बात नहीं करते।
इस शहर के अपने लोग-
अपने गावं को याद नहीं करते।
यहाँ के अपने लोग पराये हुये,
यह शहर कभी अपना नहीं रहा।
गावं अपने लौट जाऊँगा एक दिन,
शहर अब मेरा सपना नहीं रहा।
रहता हूँ अपने लोगों के बीच,
बैठता हूँ अपनें लोगों के बीच,
मिलते हैं साथ सुख-दुःख में,
होते हैं साथ सुख-दुःख में।
इस शहर के अपने लोग-
दूसरे बड़े शहर की बात करते हैं,
बड़े शहर बसने की चाह रखते हैं।
उन्हें सिर्फ धन-दौलत की बातें सुहाती,
उन्हें जमीन-जायदाद की बातें ही भाती।
इस शहर के अपने लोग-
अपने गावं की बात नहीं करते।
इस शहर के अपने लोग-
अपने गावं को याद नहीं करते।
यहाँ के अपने लोग पराये हुये,
यह शहर कभी अपना नहीं रहा।
गावं अपने लौट जाऊँगा एक दिन,
शहर अब मेरा सपना नहीं रहा।