हमारे खेत बंजर हैं
गावं के दर्जनों खेतों के बीच।
उनमें अब हल नहीं चलते,
उनमें नहीं रेंगती बैलों की जोड़ियां।
जबकि
वो गायें भी आज नहीं रही,
जिनके बच्चे हुआ करते थे बैल।
गोठ में आज सन्नाटा है
सुनी जा सकती है वहाँ केवल
मकड़ियों की पदचाप और
दीमकों की सरसराहट।
और माँ !
यह सब हुआ है
तुम्हारे गुजर जाने के बाद।
रावत जी दुखती रग छेड़ दी आपने।
ReplyDeleteBilkul sahi Khankriyal jee. Lekin yah ham sabka dukh hai jiska koi samadhan nahi dikh raha.
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