Statue-Lord Shiva, Hardwar Photo-Subir |
करता हूँ भगवान से फोन पर लम्बी-लम्बी बातें,
और अपने स्वर्ग के बारे में वे मुझे खूब लुभाते,
स्वर्ग में यह है, स्वर्ग में वह है, स्वर्ग धरती जैसा नहीं है...... !
पर, मौन हो जाते हैं वे जब भी पूछता हूँ मै उनसे-
अकाल मृत्यु को प्राप्त अपने पिता के बारे में,
उनकी मृत्यु पर पड़ा पर्दा हटाने के बारे में,
स्वर्गवासी अपने सगे, सम्बन्धियों, मित्रों के बारे में ,
मै उनसे जानना चाहता हूँ क्या हैं स्वर्ग के-
नियम, कायदे, कानून व्यवस्था और राज- काज !
मै उनसे जानना चाहता हूँ क्या है स्वर्ग की-
लोकोक्ति, लोकगीत, लोककथाएं, लोकरीति और लोकाचार !
मै उनसे जानना चाहता हूँ क्या है स्वर्ग की-
परम्पराएँ, आस्था, विश्वास और लोकव्यवहार !
मै उनसे प्रार्थना करता हूँ कि वे बता दें स्वर्ग की
वेबसाइट, टेलीफोन डाईरेक्टारी या मेरे पिता की ई-मेल आई0 डी0 ही !
और भगवान नहीं सुनते मेरी विनती पर
रख देते हैं फोन झट से क्रेडिल पर पटक कर.
रख देते हैं फोन झट से क्रेडिल पर पटक कर.
मै भगवान के रोष को नहीं समझ पाता हूँ
(या भगवान् ही शायद मुझे समझने में असमर्थ है )
अपने में ही बुदबुदाता हूँ मै -
अपने बनाये इंसानों से क्यों दूर भागते हो भगवान !
अपने भक्तों के प्रश्नों से क्यों कतराते हो भगवान !
अपने स्वर्ग पर इतना क्यों इतराते हो भगवान !
"..स्वर्गादपि गरीयसी.." का मन्त्र धरती पर ही है भगवान !
अरे तुम ठहरे इकलौते स्वर्ग के स्वामी, और
हमारी धरती पर तो कई स्वर्ग है ! कई-कई स्वर्ग हैं भगवान !!