Thursday, January 13, 2011

पुत्रदायिनी है माँ अनुसूया देवी - 2

यात्रा संस्मरण - 1999
Maa Anusooya Temple     Photo-Subir
                   (पिछले अंक में आपने गढ़वाल उत्तराखण्ड के चमोली जिले में स्थित माँ अनुसूया देवी के दर्शनार्थ मंडल (गोपेश्वर) तक की यात्रा का विवरण पढ़ा. अब आगे है मंडल से मंदिर की ओर की यात्रा............. )
                   गोपेश्वर से केदारनाथ की ओर जाने वाले मार्ग पर मंडल से बीस- बाईस किलोमीटर पश्चिम में कस्तूरा मृग के लिए विख्यात कान्चुला खरक है और आगे तीनेक किलोमीटर पर गढ़वाल का स्विटज़रलैंड चोपता. चोपता का सौदर्य मनमोहक है और यहाँ के बुग्याल चित्ताकर्षक. हरे बुग्यालों पर लोट कर स्वर्गिक आनंद की अनुभूति होती है. (चोपता से तीन किलोमीटर पैदल चढ़ाई तय कर पञ्च केदार में से एक लगभग 3600 मीटर ऊँचाई पर स्थित तुंगनाथ के दर्शन किये जा सकते हैं) और उखीमठ, गुप्तकाशी होते हुए यही मार्ग केदारनाथ को चला जाता है. किन्तु हमारा गंतव्य है माँ अनुसूया मंदिर. अतः हम मंडल में थोड़ा सुस्ता कर पैदल ही उत्तर की ओर तेज कदमो से मंदिर की ओर बढ़ते हैं जो मंडल से पांच किलोमीटर दूरी पर है और मार्ग चढ़ाई वाला है.
                  माँ अनुसूया देवी मंदिर का प्रवेश द्वार मंडल में सड़क किनारे ही बना हुआ है. सड़क मार्ग से गुजरने वाले श्रृद्धालु यहीं घंटी बजाकर माँ का स्मरण कर लेते हैं. घंटी बजाने के लिए मै भी हाथ उठाता हूँ तो पंजों के बल खड़े होकर ही घंटी बजा पाया, जबकि नारायण सिंह नेगी लम्बा कद के होने के कारण आसानी से घंटी की डोर पकड़कर मेरी ओर देख मुस्कराने लगा. मंडल से गढ़ गंगा के किनारे आगे बढ़ते हैं तो सिरोली गाँव पड़ता है. तीसेक परिवार वाला यह गाँव आम पर्वतीय गांवों की श्रेणी में रखा जा सकता है. गाँव के दक्षिण में जहाँ समतल भूभाग पसरा हुआ है वहीं उत्तर में घने जंगल से युक्त हल्की ढलान युक्त पहाड़. पेय व सिंचाई के लिए गढ़ गंगा का जल प्रयाप्त है और चारा ईंधन के लिए जंगल. समतल भूभाग और उचित जलवायु होने के कारण खेती की अच्छी संभावना है. किन्तु प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग हम कहाँ कर पाते हैं. यह विडम्बना ही है कि तकनीकी अज्ञानता और नौकरी को प्रधानता के कारण हम लोग बहुत ही पिछड़ गए हैं और परिणति है पलायन. पर्वतीय  उत्पाद के विपणन के लिए उचित व्यवस्था न होना भी एक कारण है. फलस्वरूप पहाड़ का कृषक अपने उत्पाद सेब, माल्टा, आलू, राजमा, अखरोट, अदरक आदि दलालों के हाथ औने पौने दामों में बेचने को विवश है. हिमाचल राज्य में सेब विकास निगम और उत्तर प्रदेश में गन्ना विकास निगम की भांति सरकार उत्तराखण्ड फल विकास निगम बनाकर स्थानीय कृषकों को प्रोत्साहित करने हेतु माल्टा आदि उत्पादों का समर्थन मूल्य घोषित कर सकती हैं.
                   सिरोली गाँव से गढ़गंगा के दायें तट पर चलते हुए एक-आध किलोमीटर के बाद पुनः बाएं तट पर चलते हैं. अंग्रेजी के 'एस' अक्षरनुमा मार्ग पर आगे बढ़ते हैं. चौड़े पत्थरों से सीढियां बनाई गयी है जो काफी चौड़ी है. सुनील जो अपेक्षाकृत जवान है बच्चों की भांति दोनों पैरों से कूद कूद कर कुछ सीढियां पार कर लेता है और आगे जाकर घास पर लेटकर हमारी प्रतीक्षा करता है. कुछ सीढियां और कुछ मार्ग चलकर हम पांच हजार फीट ऊँचाई पर स्थित माँ अनुसूया देवी मंदिर में पहुँच जाते हैं. मंदिर सघन घने जंगल के बीच है जिससे रमणीकता बनी हुयी है. आबादी क्षेत्र से दूर और औसत ऊँचाई लिए हुए इस स्थान का मौसम अत्यंत सुवाहना है. केदार मंदिरों की भांति कत्युरी शैली में निर्मित यह मंदिर कष्ट छत्र्युक्त है. गर्भ गृह में माँ अनुसूया की भव्य मूर्ती है. गर्भ गृह के आगे बरामदा है और साथ में एक धर्मशाला. आस पास कुछ निजी भवन. भक्त साल भर देवी के दर्शनार्थ आते रहते हैं, विशेषतः निसंतान दम्पति. मान्यता है कि माँ के द्वार से कोई खाली हाथ  नहीं लौटा. प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को यहाँ विशाल मेला लगता है. 
                   अत्री ऋषि की पत्नी अनुसूया के बारे में कथा है कि वह ईश्वर की अनन्य उपासक और पतिव्रता देवी थी. मृत्यु लोक पर तो गुणगान होने ही लगा किन्तु उनकी ख्याति स्वर्ग तक पहुंची तो स्वर्ग की देवियाँ विचलित हो गयी. स्वर्ग की तीन श्रेष्ठ देवियों ने अपने अपने  पति (ब्रह्मा, विष्णु और महेश ) को  अनुसूया की परीक्षा लेने को भेजा. तीनो देवता भेष बदल कर माँ अनुसूया के आश्रम में पहुंचे. माँ से भोजन मांगते हुए कहा कि वह हमें अपने हाथों से भोजन कराये वह भी निर्वस्त्र. माँ ने अपने ईष्ट को स्मरण किया और तीनो देव बालकों के रूप में परिवर्तित हो गए, और माँ ने उन्हें स्तन पान कराकर वहीं पालने में डाल दिया. कई दिनों तक जब देवता वापस नहीं लौटे तो देवियों को चिंता होने लगी. वे अनुसूया आश्रम में आये तो वहां देखा तीन बालक पालने में खेल रहे हैं. उन्होंने अपने पतियों को वापस माँगा तो अनुसूया ने कह दिया उनके पति पालने में लेटे हैं, पहचान कर ले जाएँ. नन्हे बालकों के रूप में अपने पतियों को न पहचान पाने पर क्षमा मांगते हुए वे अनुसूया के कदमो में लेट गयी. स्वर्ग के देवताओं को भी अपनी भूल का आभास हुआ और उन्होंने माँ से क्षमा मांगी. तदनंतर ब्रह्मा ने चन्द्रमा, शिव ने दुर्वासा और विष्णु ने दत्तात्रेय के रूप में माँ अनुसूया की गोद से जन्म लिया और तभी से देवी अनुसूया 'पुत्रदा' अर्थात माँ के रूप में प्रसिद्द है.
                   अनुसूया आश्रम से डेढ़ किलोमीटर घने जंगलों से गुजरने के बाद निर्जन स्थान पर एक गुफा है, जिसे अत्री आश्रम कहते हैं. गुफा के बाहर लगभग चार सौ फीट ऊँचाई पर से एक झरना गिर रहा है. झरना जिस स्थान पर गिर रहा है वहां पर एक कुण्ड सा बन गया है जिसे अत्री कुण्ड भी कहा जाता है. गुफा के मध्य में एक अर्ध चंद्राकर संकरा मार्ग है जिसे श्रृद्धालु रेंग कर पार करते हैं. मान्यता है कि परिक्रमा करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. आगे बढ़ते हैं तो सोलह किलोमीटर दूर पैदल रुद्रनाथ मंदिर तक जाया जा सकता है किन्तु जो घने जंगलों के बीच से होकर गुजरता है. किन्तु हम यहीं से लौटकर वापस गोपेश्वर को आते हैं.                                                                                                                                                                              

14 comments:

  1. आपके संस्मरण का यह दूसरा अंक भी रोचक और मन में आस्था पैदा करने वाला है .. आपके प्रस्तुतीकरण का अंदाज इसे और भी ग्राह्य बना गया ..इसी तरह अनवरत रूप से लिखते रहें ..और ब्लॉग जगत को समृद्ध करते रहें ..आपका आभार

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  2. trying to comment but due to bad connectivity -
    anable to process....

    P.S.Bhakuni

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  3. रावत जी आपके ब्लाग के माध्यम से पूरे केदारखंड के दर्शन हो गए.अनिर्बच्नीय, अप्रतिम यात्रा वृतांत , क्षेत्र का मनोरम दृश्य, और आस्था का संगम बरबस ही बनता है .

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  4. bahut sari jankaari samete huwi hai apne uprokt post main .nishandeh samany gyan badhane main sahayak hogi yh post,
    abhaar............

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  5. RAWAT ji my blog list mai samil krne ke bavjud bhi aapka blog mere desh board pr display nahi ho paya hai , Pryas jari hai ............

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  6. सुबीर जी!
    केदारनाथ की यात्रा तो अभी तक नहीं कर पायी हूँ लेकिन आज आपका यात्रा संस्मरण "पुत्रदायिनी है माँ अनुसूया देवी" पढ़कर माँ के मंदिर के दर्शन कर और उन्हें विस्तार से पढना मन को बेहद अच्छा लगा .. हमने भी आपके मार्फ़त माँ के दर्शन किये इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद...
    यह सोचकर मन रोमांचित हो उठता है कि हमारी देवभूमि बड़े बड़े ऋषि मुनियाँ और स्वयं शंकर भगवान की भी तपस्थली रही है ....वेद, पुराण के सृजन की भी यही भूमि है.....

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  7. रावत जी.....माँ अनुसू्या के बारे में जानकर बहुत ख़ुशी हुई।
    सार्थक लेख के लिए आपका आभार।

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  8. आपको पोस्ट पसंद आयी, भाई केवल जी! आभार. ........... कृपया समय समय पर त्रुटियों की ओर भी मुझे सचेत करते रहिएगा ......... शुभकामनाओं सहित.

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  9. भाकुनी जी, आपका मार्गदर्शन मुझे निरंतर लिखने की प्रेरणा देता रहता है. ...... कृपया संपर्क बनाये रखें. .... आभार!

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  10. खंकरियाल जी, जो लिखा, पाठकों को पसंद आ जाय, मै समझता हूँ मेरा लिखा सार्थक हो गया.. आप कृपया मार्गदर्शन करते रहिएगा.......... शुभकामनाओं सहित.

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  11. कविता जी, आपने सही लिखा है उत्तराखण्ड ऋषि मुनियों की तपस्थली रही है,....... जितना भी घूमो इच्छा बनी रहती है कि और अधिक देखूं....... जाने इस भूमि में ऐसा आकर्षण क्यों है.......... बहुत कुछ है देखने के लिए, बहुत जगह है घूमने के लिए. बशर्ते हम समय निकल पाए तो. ........ खैर. शुभकामनाओं सहित.

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  12. भाई वीरेन्द्र जी, उत्तराखण्ड के तीर्थ स्थलों के प्रति आपकी रूचि देखकर मन को अच्छा लगा. ........ आभार.

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  13. .माँ अनुसू्या के बारे में जानकर बहुत ख़ुशी हुई।

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