Monday, June 13, 2011

श्रृद्धा व रोमांच का अद्भुत संगम श्रीअमरनाथ यात्रा - 5

यात्रा संस्मरण  -  गतांक से आगे.... 
पञ्चतरणी का मनमोहक दृश्य 
पञ्चतरणी और अमरावती नदी का संगम
     पञ्चतरणी में रात लंगर छक कर टैंट में लौटे तो एक अधेड़ मराठी दम्पति उस टैंट की दूसरी चारपाइयों में लेटे थे. औरत कराह रही थी और पुरुष उसकी तीमारदारी में लगा था. ठेठ मराठी बोलने से पहले तो कुछ समझ ही नहीं आया, फिर मालूम हुआ कि वे बालटाल से हेलीकाप्टर द्वारा अमरनाथ दर्शन को आये थे. पञ्चतरणी से पालकी द्वारा अमरनाथ दर्शन कर आये. परन्तु आने जाने में बुरी तरह भीग गए. हेलीकाप्टर से आये थे तो कपडे, बरसाती या रेन कोट साथ ले कर नहीं आये. परन्तु घाटी में कोहरा होने के कारण हेलीकाप्टर शाम को आया ही नहीं. फिर यशपाल ने अपने सूखे कपडे उस महिला को पहनने को दिए और टैंट में खाली पड़ी चारपाइयों की रजाईयां उसे ओढ़ाई गयी. तब कहीं उस महिला की कंपकंपी और कराहट बंद हुयी. पुरुष रात भर टूर पैकेज वाले व अपने गाइड को गाली देते रहे. सुबह विदा होते वक्त उनकी आँखों में आंसू छलक आये.
              अमरनाथ पहुँचने की उत्सुकता व उत्कंठा के चलते सुबह छ बजे ही पञ्चतरणी से चल पड़े. कुछ दूर पञ्चतरणी नदी के किनारे किनारे चल कर और फिर भैरों घाटी की एक मील की चढ़ाई पार कर समतल मार्ग आता है. पहाडी के साथ साथ चलते एक मोड़ पर दायी ओर देखते हैं तो अमरावती की सुरम्य घाटी दिखाई देती है और यहीं से श्रीअमरनाथ के प्रथम दर्शन होते हैं. बारिस नहीं थी. मौसम साफ, स्वच्छ, शांत, स्निग्ध था. थोडा रुकते हैं- अमरावती के उस पार मार्ग से बालटाल आने जाने वाले यात्रियों की भीड़ थी और नीचे पञ्चतरणी तथा अमरावती के संगम पर अभिभूत करने वाला सौन्दर्य. अमरावती के बाएं किनारे पर चलते आगे बढ़ते हैं. यात्रियों द्वारा 'बर्फानी बाबा की जय', 'बम बम भोले' तथा 'हर हर महादेव' की जय- जयकार पूरी घाटी को गूंजा रही थी. दर्शन की वह घड़ी अब आने ही वाली है. पांव स्वतः ही आगे बढ़ते प्रतीत होते हैं, लगता है जैसे कोई अदृश्य शक्ति हमें अपनी ओर आकृष्ट कर रही हो. अमरावती नदी के दर्शन कहीं कहीं ही हो रहे थे, शेष उसके ऊपर ग्लेशियर जमे पड़े थे. अब हम भी मार्ग छोड़कर नदी के ऊपर बर्फ पर चलना शुरू करते हैं. आगे गुफा से पहले घाटी में सैकड़ों टैंट लगे हुए थे. एक टैंट में अपने कुली के भरोसे सामान रखकर पंच्स्नानी के बाद प्रसाद लेते है. परन्तु यह क्या? कुली, घोड़े खच्चर, पालकी वाले तो मुस्लिम है ही किन्तु प्रसाद, बेलपत्री, फोटो आदि बेचने वाले भी मुस्लिम लोग. सांप्रदायिक सद्भाव का यह अद्भुत समन्वय है. और आश्चर्य का ठिकाना न रहा जब ज्ञात हुआ कि आरती उतारने की जिम्मेदारी भी उसी मुसलमान गड़रिये बूटा मलिक के वंशज को है जिसने सैकड़ों वर्ष पहले इस गुफा की खोज की थी. आगे बढ़ते हुए ठीक उस स्थान पर पहुँचते हैं जहां से सर उठा कर देखें तो वह पवित्र गुफा दिखाई दे रही थी, बस, अब कुछ सीढ़ियों भर का फासला शेष था. सैकड़ों दर्शनार्थियों के साथ ढाई-तीन सौ सीढियां चढ़कर, भोले की जय जयकार करते हुए जैसे ही गुफा के द्वार पर पहुंचे तो मन अद्भुत आनंद से रोमांचित हो उठा. आँखों की कोरें भीग आयी. समुद्र तल से 13500 फिट ऊँचाई पर स्थित प्रकृति द्वारा निर्मित लगभग साठ फिट चौड़ी, तीस फिट गहरी और अठारह फिट ऊंची इस गुफा में न कोई मूर्ती है न कोई द्वार. है तो केवल बर्फ का एक शिवलिंग जिसका स्वतः निर्मित हो जाना ही अलौकिक शक्ति है. वर्षों से कल्पना में संजोये व इतने दिनों
अमरावती नदी के ऊपर खड़े साथी यशपाल रावत 
तक पल रही आस्था के चलते गुफा के सम्मुख चमत्कार से अभिभूत हो आश्चर्य व श्रृद्धावश सर चबूतरे पर रखना चाहा परन्तु ग्रिल की बाधा के कारण हाथ जोड़ कर ही रह गए. आँखे बंद करता हूँ तो भीतर अतल गहराइयों में परंपरागत शिव आरती की जगह गुरुवाणी गूँजती है; इक ओंकार सतनाम कर्ता पुरुख निर्भोग निर्भय अकाल मूरत अजोनी सैभंग ...........! गुफा में कबूतरों को देखना शुभ माना जाता है. हमें भी ऊपर जगह
अमरावती नदी पर टैंट व पार्श्व में अमरनाथ गुफा
तलाशते पंख फड फडाते चार कबूतर दिखाई दिए. जिस निर्जन स्थल में मीलों तक कोई आबादी नहीं वहां पर कबूतर, चमत्कार ही तो हैं. बर्फ का शिवलिंग अब मात्र दो ढाई फिट का ही रह गया था. (जबकि यात्रा प्रारंभ में यह सोलह फिट का तक होना बताया जाता है) प्रसाद चढाने के बाद लोग पिघलते हुए शिवलिंग का पानी घर के लिए बर्तनों में भर रहे थे. गुफा के दाहिनी ओर चट्टान का स्वरुप कुछ बुझे हुए चूने की भांति है, लोग भभूत के रूप में घर ले जाते हैं. घर से निकलते वक्त एक दो ने मुझे भी कहा कि वहां से भभूत जरूर ले
गुफा द्वार पर दर्शनार्थियों की भीड़            छाया:  साभार गूगल
आना. चट्टान की जड़ पर काफी बड़ा गड्ढा सा बन गया. गुफा को खतरा न हो इसलिए सेना ने कंटीले तार वहां पर डाल रखे थे, उसके बावजूद लोग खोदते जा रहे थे. एक जवान ने जब यह देखा तो एक लड़के पर बुरी तरह बिगड़ा, लहजा ठेठ हरियाणवी था " "अबे तू यहाँ अमरनाथ की गुफा खोदने आया क्या ?"
           अमरनाथ के विषय में एक कथा प्रचलित है ; एक बार पार्वती ने भगवान शंकर से जानना चाहा कि  संसार के सब प्राणी तथा पार्वती स्वयं भी जन्म मृत्यु से बंधे हैं तो भगवान शंकर क्यों नहीं. भगवान  ने कहा कि यह सब अमरकथा के कारण है. पार्वती ने सुनने की जिज्ञासा प्रकट की. निर्जन स्थल की तलाश में उन्होंने पार्वती सहित हिमालय की ओर प्रस्थान किया. अनंत नाग में उन्होंने अपने नागों को त्याग दिया, पहलगाम में नंदी बैल को (जिससे उसका नाम बैलगाम व तदनंतर पहलगाम पड़ा ), चन्दनबाड़ी में अपने माथे का चन्दन धोया, शेषनाग स्थल में गले में पड़े शेषनाग का त्याग किया, महागुनुष टॉप पर गणेश जी को बिठाया और पञ्चतरणी में पञ्च विकारों को त्याग दिया. फिर पार्वती के साथ तांडव नृत्य कर इस गुफा में मृगछाल बिछाकर बैठ गए. कथा सुनाने से पूर्व उन्होंने कालाग्नि को आदेशित किया कि वह गुफा के आसपास समस्त प्राणियों को भस्म कर दे जिससे कोई भी अमरकथा सुनकर अमर न हो जाय......... आदि आदि  (यह वृतांत बहुत लम्बा है और उम्मीद है कि सभी विद्वान ब्लोगर्स सुने या पढ़े ही होंगे)          
सिंध नदी तट पर बालटाल व पड़
      गुफा से नीचे उतरकर एक लंगर में खाकर वापस बालटाल के लिए चल पड़े. बराड़ी, दोमेल होते हुए यह चौदह किलोमीटर का यह मार्ग सुरक्षित नहीं है. नीचे उन्माद से परिपूर्ण विकराल रूप धारण किये सिन्धु नदी और ऊपर कच्ची पहाड़ियां. इस पहाड़ी से पत्थर गिर कर(विशेष कर बारिस में ) कब इहलीला समाप्त कर दे या पाँव फिसल कर नीचे नदी अपने आगोश में ले ले, सब भगवान भरोसे. 
     इस यात्रा के विषय में इतना अवश्य कहूँगा  कि केन्द्रीय सुरक्षा बलों का संरक्षण, हर पड़ाव पर चिकित्सा शिविर और जगह जगह लंगर न हो तो
बालटाल में हेलीपैड तथा  टैक्सी व बस स्टैंड
प्रति दिन औसतन पंद्रह हज़ार पहुँचने वाले यात्रियों के स्थान पर मात्र डेढ़ दो सौ लोग ही पहुँच पाए. पिट्ठू(कुली), पालकी वाले व घोड़े वालों के साथ यदि मिल बैठकर भाड़े की प्रीपेड की व्यवस्था लागू जा सके तो यात्री अपने को ज्यादा महफूज़ महसूस करेंगे. शेषनाग व पञ्चतरणी में शौचालय की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है, जिससे टैंट के चारों ओर गन्दगी देखी जाती है. मुख्य यह है कि पूरे मार्ग पर यात्रियों द्वारा प्लास्टिक कचरा फैलाया जाता है, मानो हम लोग नरक को स्वर्ग तो नहीं बना सकते किन्तु स्वर्ग को नरक बनाने की काबिलियत तो हममे है ही.     
श्रीनगर में डल झील का अभिभूत करता सौन्दर्य 
      एक रात बालटाल में रूककर सोनमर्ग, गंदरबल, श्रीनगर, अनंतनाग होते हुए वापस जम्मू पहुँचते हैं.कश्मीर का सौन्दर्य निस्संदेह स्वर्गिक है. किसी कवि ने ठीक ही कहा है;
अगर फिरदेश बरा हाय ज़मी अस्थ,
हमी अस्थ, हमी अस्थ, हमी अस्थ, हमी अस्थ.
                                                                                                                              ........समाप्त........ 

15 comments:

  1. sunder yaatra vratan or khubsurat chitron hetu abhaar...............

    ReplyDelete
  2. जै हो बाबा अमरनाथ जी की ... बहुत कमाल का दृश्य खैंकगा है आपने ... आपके द्वारा साक्षात दर्शन का आभास होता है ...

    ReplyDelete
  3. आपका यात्रा वर्णन पढ़कर मुझे भी पुण्य लाभ हुआ। अमर कथा के बारे में मुझे नहीं पता है , आप लिखते तो अच्छा होता । शायद बहुत से लोगों को नहीं पता होगा

    ReplyDelete
  4. दर्शन तो मार्मिक यात्रा वृतांत से पूरे कश्मीर के करा दिए है किन्तु गुफा की मूल चित्र स्वयं खींच कर लगाते तो बाबा के दर्शन सजीव हो उठते . चिर अविस्मर्णीय है वर्णन

    ReplyDelete
  5. यात्रा के रोचक और रोमांचक वर्णन के लिए बधाई.एकदम लाइव रिपोर्टिंग.

    ReplyDelete
  6. आपके इस लेखे से बहुत से लोगों को फायदा मिलेगा. धन्यवाद .

    ReplyDelete
  7. आपके वर्णन के द्वारा भोलेनाथ की गुफ़ा के दर्शन हो गये .....आभार !

    ReplyDelete
  8. एक खूबसूरत यात्रा वृतांत तब और भी ज्यादा खूबसूरत हो जाता है जब उसमे सुन्दर चित्रों का भी संकलन किया जाता है , आपकी ये पोस्ट ऐसी ही एक पोस्ट है सर , बेहद सुन्दर और शानदार |

    ReplyDelete
  9. वो अमर कथा जो शिव ने पार्बती को सुनाइ वो आज तक कहीम पढने को नही मिली। क्या आपको पता है अगर हाँ तो उसे भी लिखिये। आपका यात्रा वृताँत पडः कर लगता है हम भी आपके साथ वहाँ मौजूद थे। धन्यवाद जै भोले नाथ।

    ReplyDelete
  10. खूबसूरत यात्रा वृतांत, साहब एक सलाह भी चाहिये,कैम्पिंग में क्या क्या सामान ले जाना चाहिये,


    आभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

    ReplyDelete
  11. अमरकथा के बारे में- डॉक्टर दिव्या जी व निर्मला दी ने अमरकथा के विषय में लिखा है तो क्षमा मांगते हुए यह कहना चाहूंगा कि मैंने भी नुनावल (पहलगाम ) कैम्प में एक सज्जन के हाथ में पुस्तक देखी तो पढ़ ली तभी जाना, फिर अमरनाथ यात्रा पर टी सीरिज की विडियो ले आया तो उसमे भी अमरकथा का जिक्र है.

    गुफा की फोटो के बारे में- भाई गिरधारी खंकरियाल जी ने गुफा की फोटो के बारे में लिखा है तो वह यह कि हमारे कुली ने अमरावती में गुफा से काफी पहले ही हमारा सामान एक टैंट में रखवा दिया. और बताया कि कैमरे भी यहीं जमा कर दो क्योंकि गुफा के आस पास कैमरे allow नहीं है. परन्तु अफ़सोस हुआ जब देखा कि यात्री गुफा के आस पास भी खूब फोटोग्राफी कर रहे हैं. मन मसोस कर रह गए क्योंकि फिर वापस आपकर कैमरे ले जाने में काफी वक्त निकल जाता.

    यात्रा हेतु आवश्यक सामान के बारे में- इस बारे में मित्रों से यही निवेदन कर सकता हूँ कि सामान कम से कम हो तो आप कुली को दिए जाने वाले अनावश्यक खर्चे से बच सकते हैं.(हमने जानकारी न होने की वजह से साढ़े तीन हज़ार रुपये कुली में गवाएं ) १- ओढने बिछाने का सामान बिलकुल साथ न ले जाएँ प्रत्येक पड़ाव पर कैम्प हैं. २- खाने का सामान भी बिलकुल साथ न ले जाएँ जगह जगह लंगर/भंडारे की व्यवस्था है. ३- रेगुलर दवाइयां (यदि आप लेते हों )के अतिरिक्त थोड़ी बहुत रखनी चाहो तो ठीक अन्यथा जगह जगह निशुल्क चिकित्सा शिविर हैं. ४-कपडे तीन जोड़ी बहुत है तथा एक फुल स्वेटर और एक विंडशीटर, बस. कपडे रखने का बैग वाटर प्रूफ हो तो ठीक अन्यथा सभी कपडे बड़ी पोलिथीन के अन्दर रखे जाय. ५- स्त्रियाँ साड़ी की जगह ट्रैक शूट या कुरता पजामा पहने तो चलने में आसानी होगी. ६-जूते हंटिंग या स्पोर्ट्स शूज ही ठीक हैं. ७-एक ठीक ठाक छाता अवश्य होना चाहिए. आदि आदि.

    ReplyDelete
  12. सार्थक जानकारी के साथ यात्रा सम्पन्न हुई।
    अब आगे और किसी यात्रा का इंतजार है।
    वैसे भी इस तरह के सफ़र में समान कम ही रखना चाहिए, लोग शादी ब्याह में जा रहे हैं सोच कर बहुत कुछ भर लेते हैं और बाद में तकलीफ़ पाते हैं। सामान ही बहुत बडी समस्या हो जाता है।

    ReplyDelete
  13. Bahut hi sundar Yaatra virtant..
    Abhi tak Amarnath kee yaatra to nahi kee hai lekin aapka sansmaran padhkar aur chitron ko dekhkar laga ki ham bhi yaatra mein shamil ho gaye hain... Bhole baba sab par kripa banye rakhe yahi shubhkamna hai...
    Prastuti ke liye aabhar!

    ReplyDelete
  14. आपके यात्रा वर्णन के द्वारा भोलेनाथ की गुफ़ा के दर्शन हो गये| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  15. Highly energetic post, I liked that bit. Will
    there be a part 2?

    Also visit my blog ... free music downloads

    ReplyDelete