और आवाज- घाटियों से टकराकर
आ रही है - जो शायद तुम्हारी है
कितना अपनापन है इस आवाज में,
कितनी मिठास - शहद की बूँद सी !
कोई मुझे लम्बे समय से पुकार रहा है
और आवाज - जो शायद तुम्हारी है
कितनी विह्वलता है इस आवाज में - कितनी तड़प !
घाटियों में पड़ी बर्फ सी-
आतुर है जो नदियों के आगोश में समाने को.
शहर सारे जंगल हो गए हैं
प्यार पाने को आकुल एक युवा सन्यासिन
एक अपरिचित दरवाजा खटखटाती है
इस बियावान जंगल में - निश्वास, निशब्द !
आँसू जो आज थम नहीं रहे
सिर्फ मेरे हैं !
और यह कारुणिक पुकार
जो शायद तुम्हारी है - सिर्फ तुम्हारी !