Saturday, October 15, 2011

कैसे होगा..??

जीना नहीं आसां दो पग चलना ही दुश्वार
जी नहीं रहा नाटक है कर रहा, देख औरों को आहें भर रहा    
है यहाँ हर कोई लोभ, मोह, स्वार्थ, ईर्ष्या, अहं का घर !

सवाल, सुरसा सी बढती महंगाई का नहीं है
क्योंकि देश के इन कर्णधारों के पास है अकूत सम्पदा-
लूट, घूस, चोरी, मक्कारी औ' बेईमानी के बूते
नहीं मरेंगे भूखे वे बिन कुछ किये ही, 
खुदा बख्श दे भले ही उम्र उन्हें हज़ार बरस
लड़ सकते हैं वे महंगाई से अगली सात पीढ़ियों तक

सवाल, प्रगति और विकास का भी नहीं है
समृद्धि आयी है जरूर - मेरे गाँव, मेरे शहर, मेरे देश में
गाँव शहर को जड़ने वाले रास्ते में मगर
उग आये हैं कांटे- ईर्ष्या, द्वेष, घृणा औ' हिंसा के

सवाल, बरसाती घास सी बढती आबादी का नहीं है
आबादी बढ़ रही है और बढती रहेगी. खुदा न करे - भले ही
जन्मे क्यों न फिर से सिकंदर, अशोक, नादिरशाह या हिटलर, 
या खुद जाये हीरोशीमा - नागासाकी जैसे घाव देश के सीने पर.
लेकिन, आबादी तो यूं ही बढती रहेगी कि जब तक
जनसँख्या नियंत्रण के बाहर बना रहेगा पहरा तुष्टिकरण का

सवाल, देश में बढती निरक्षरता का भी नहीं है, क्योंकि 
चल रहा साक्षरता मिशन, सर्वशिक्षा अभियान शिक्षा के नाम पर
फल रहा करोड़ों, अरबों रुपयों का व्यापार शिक्षा के नाम पर
बंट रही डिग्री, डिप्लोमा, सर्टिफिकेट लाखों शिक्षा के नाम पर
साक्षरता का अनुपात भले ही बढे न बढे, परन्तु
पढ़े-लिखों की संख्या में आयी है गिरावट जरूर

सवाल तो बस जिन्दा रहने का है भाई-
क्षद्म राजनीति, भ्रष्टाचार, महंगाई, अत्याचार और हिंसा से
उम्मीद है कि कोई है बच भी जाये,
लेकिन शायद ही कोई बचे धोखा, फरेब, छलकपट -
अपनों के ही द्वारा! अपने ही घर!! अपने ही भीतर!!!




13 comments:

  1. सुन्दर सटीक और विचारणीय अभिव्यक्ति..बधाई...

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  2. विचारणीय अभिव्यक्ति .......

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  3. जीना नहीं आसां दो पग चलना ही दुश्वार
    जी नहीं रहा नाटक है कर रहा, देख औरों को आहें भर रहा
    है यहाँ हर कोई लोभ, मोह, स्वार्थ, ईर्ष्या, अहं का घर !
    सटीक और विचारणीय अभिव्यक्ति.

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  4. लेकिन शायद ही कोई बचे धोखा, फरेब, छलकपट -
    अपनों के ही द्वारा! अपने ही घर!! अपने ही भीतर!!!
    सच ही हम अपने भीतर की बुराईयों को जब तक नही मारते तब तक समाज ऐसे ही चलेगा। शुभका.

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  5. जनाकक्षाएं अपनों द्वारा ही नैतिक स्तर गिर जाने के बाद कुचल दी जाती हैं . आपकी चिंता उचित है.

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  6. सवाल तो बस जिन्दा रहने का है भाई-
    क्षद्म राजनीति, भ्रष्टाचार, महंगाई, अत्याचार और हिंसा से
    उम्मीद है कि कोई है बच भी जाये,
    लेकिन शायद ही कोई बचे धोखा, फरेब, छलकपट -
    अपनों के ही द्वारा! अपने ही घर!! अपने ही भीतर!!!
    ..adhunik pradrashya ka sateek chitran..
    chintansheel prastuti hetu aabhar!

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  7. बहुत सुंदर,
    क्या कहने

    विचारणीय कितु हकीकत

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  8. सवाल तो बस जिन्दा रहने का है भाई-
    क्षद्म राजनीति, भ्रष्टाचार, महंगाई, अत्याचार और हिंसा से
    उम्मीद है कि कोई है बच भी जाये,
    लेकिन शायद ही कोई बचे धोखा, फरेब, छलकपट -
    अपनों के ही द्वारा! अपने ही घर!! अपने ही भीतर!!!

    Bitter truth Subeer ji .

    .

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  9. सच्चाई यही है,बहुत अच्छी सुंदर पोस्ट बधाई,...
    मेरे पोस्ट आइये स्वागत है,..

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  10. सुन्दर सटीक और विचारणीय अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

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  11. कटु सत्य का एहसास कराती रचना .......

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