टिहरी बाँध परियोजना तीन चरणों में पूरी की जा रही
है, लगभग सात हज़ार करोड़ रुपये लागत का पहला चरण (1000 मेगावाट) पूर्ण हो
चुका है, चार सौ करोड़ रुपये लागत का दूसरा चरण (400 मेगावाट) कोटेश्वर
परियोजना लगभग पूर्णता की ओर है और अंतिम चरण पी0 एस0 पी0 (पम्पिंग
स्टोरेज प्लांट) 1000 मेगावाट पर कार्य शीघ्र ही प्रस्तावित है. प्रतिदिन
करोड़ों रुपये की विद्युत उत्पादन के अतिरिक्त टूरिज्म,
फिशिंग, इरिगेसन और वाटर स्पोर्ट्स जैसी बहुआयामी टिहरी बाँध परियोजना
सरकार के लिए कामधेनु गाय से कम नहीं है. परन्तु टिहरी बाँध परियोजना का
जो दूसरा पक्ष है वह अत्यंत पीड़ादाई है (कम से कम उनके लिए तो है ही जो वहां से उजड़ गए ) इस दूसरे पक्ष को जानने के लिए हमें थोडा टिहरी के इतिहास व भूगोल को जानना होगा.
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टिहरी का सबसे लोकप्रिय कालेज - कक्षा छ से बारहवीं तक की पढाई यहीं पर पूरी की |
ऋषिकेश से गंगोत्री मार्ग पर अस्सी किलोमीटर उत्तर में 650 -700 मीटर आर0
एल0 पर बसा हुआ था टिहरी नगर. जो कि भागीरथी और भिलंगना नदी का संगम भी
है. इन नदियों द्वारा हजारों- लाखों वर्षों में लाई गयी मिटटी, रेत व
पत्थरों का जमाव इस चौड़ी घाटी में हुआ होगा क्योंकि यहाँ से आगे भागीरथी
के प्रवाह की दिशा में घाटी काफी संकरी थी. (जहाँ पर आज मुख्य बाँध है)
समशीतोष्ण जलवायु वाला यह क्षेत्र मनुष्यों की बसासत के लिए उपयुक्त
क्षेत्र रहा. प्रचुर जल, आवास निर्माण हेतु लकड़ी, मिट्टी व पत्थर, पशुओं
के लिए चारा तथा अन्नोत्पादन हेतु उपयुक्त भूमि. दो-दो हिमानियाँ, मछलियों
के शिकार के लिए भरपूर संभावना. बस्तियां बसती गयी तो भिलंगना और भागीरथी
को पार करने की आवश्यकता महसूस की जाने लगी. तब 'धुनार' जाति के पुरुष कुश
की रस्सियाँ बनाकर आने-जाने वालों को पार कराने लगे और थोड़ा बहुत कर के
रूप में उनको जो भी मिलता उसी से गुज़ारा करते.
सन 1803 में राजधानी श्रीनगर सहित पूरे गढ़वाल पर
गोरखों के आक्रमण और 1804 में गढ़वाल के पंवार वंश शासक राजा प्रद्युम्न
शाह की वीरगति के बाद गढ़वाल व कुमाऊँ पर सम्पूर्ण रूप से गोरखों का
आधिपत्य हो गया. (सर्वविदित है कि गोरखों के शासन काल में गढ़वाल, कुमाऊँ की जनता पर जो अत्याचार किये गए वे अत्यंत क्रूर और अमानवीय थे )
अंग्रेजों के साथ सिंघौली की संधि के उपरांत अंग्रेजों द्वारा गोरखों को
मार भगाया गया. किन्तु बदले में अंग्रेजों ने वर्तमान टिहरी, उत्तरकाशी के
भूभाग को छोड़कर पूरा गढ़वाल (व कुमाऊँ) अपने अधीन ले लिया. दिसंबर 1815
में तब राजा प्रद्युम्न शाह के पुत्र सुदर्शन शाह ने टिहरी की भागीरथी और
भिलंगना नदी के संगमतट स्थित चौड़ी व रमणीक घाटी को राजधानी बनाया. टिहरी
में महाराजा सुदर्शन शाह (शासनकाल 1815 -57) के बाद महाराजा भवानी शाह
(शासनकाल 1859 -71), महाराजा प्रताप शाह (शासनकाल 1871 -86), महाराजा
कीर्ति शाह (शासनकाल 1886 -1913) और अंतिम शासक के तौर पर 59वीं पीढ़ी में
महाराजा नरेन्द्र शाह (शासनकाल 1913 -48) गद्दीनशीन हुए. महाराजा
मानवेन्द्र शाह (जीवनकाल 1918-2007) को शासन करने का अवसर नहीं मिल पाया.
वे राजा घोषित तो हुए किन्तु तब तक आज़ादी की बयार बहने लग गयी थी और वे
विद्रोह नहीं दबा पाए अतः महाराजा नरेन्द्र शाह को शासन पुनः अपने हाथों
में लेना पड़ा. टिहरी राजधानी बनी तो सुविधाएँ बढ़ी और आस-पास बस्तियां घनी
होती गयी. 14 जनवरी 1948 को टिहरी रियासत संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उ0
प्र०) में विलय हो गयी. (टिहरी लोकसभा सीट से महारानी कमलेंदुमति शाह तीन बार व महाराजा मानवेन्द्र शाह आठ बार सांसद रहे.)
टिहरी बाँध परियोजना की अवधारणा प्रधानमंत्री नेहरु जी के
कार्यकाल में ही थी किन्तु कभी हाँ, कभी ना होते-होते 29 अक्टूबर 2005 को
टिहरी को सदा के लिए डुबो दिया गया. बीसवीं सदी के आठवें दशक तक टिहरी
पूरे यौवन पर था. टिहरी जिला मुख्यालय तो नहीं था तथापि यहाँ पर चार
महाविद्यालय, दो इंटर कालेज, कई जूनियर स्कूल, जिला न्यायालय, सेवायोजन
कार्यालय, पी डब्लू डी सर्किल कार्यालय, फोरेस्ट डिविजन ऑफिस आदि अनेक
सरकारी कार्यालय खुल चुके थे. राजा के समय बना विशाल पोलो ग्राउंड
प्रदर्शनी मैदान तथा हजारों की क्षमता वाला आजाद मैदान रामलीला ग्राउंड
में बदल चुका था. टिहरी एक व्यावसायिक केंद्र ही नहीं बल्कि 15-20,000 की
आबादी वाला टिहरी नगर तथा आसपास उप्पू, सिरायीं, जुवा, अठूर, सारजुला,
खास, फैगुल, मंदार, ढुंग, धारमंडल, रैका आदि पट्टियों के सैकड़ों गाँवों के
लाखों लोगों का शैक्षणिक और सांस्कृतिक केंद्र भी था. हर वर्ष कृष्ण लीला,
राम लीला, विभिन्न आकर्षणो के साथ प्रदर्शनी, रीजनल रैली, साधुराम फुटबाल
टूर्नामेंट, जनरल करिअप्पा फुटबाल टूर्नामेंट के अतिरिक्त मकर सक्रांति,
बसंत पंचमी, शिवरात्रि आदि के पारंपरिक मेले भी प्रमुख थे. और ऐसे में जब
2005 में टिहरी को डुबो दिया गया तो भावनात्मक रूप से टिहरी से जुड़े लोग
फूट-फूट कर रो पड़े.
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टिहरी - मुख्य बाँध व झील |
डूब क्षेत्र के भीतर आने वाले लोगों का विस्थापन किया गया परन्तु टिहरी
बाँध प्रभावित लोगो को विस्थापन या बाँध के कुछ नियम नागावार गुजरें;
-अठारह वर्ष के वयस्क को एक परिवार माना जाना चाहिए था किन्तु यहाँ पर
परिवार की परिभाषा में वह शामिल किया गया जिसके सर पर पिता का साया नहीं
था. एक माह का अबोध अनाथ बच्चा बाँध विस्थापन की नज़र में परिवार था और
60-65 साल का बुजुर्ग व्यक्ति परिवार नहीं, यदि 80-90 वर्ष के उनके पिता जीवित हो. इसका परिणाम यह हुआ कि बाँध प्रभावित क्षेत्र में बुजुर्गों के प्रति वैमनष्य ही बढ़ा है.
-सरकार द्वारा विस्थापन के लिए पचास प्रतिशत भूमि का डूब
क्षेत्र के भीतर आना आवश्यक माना गया. यदि किसी परिवार की सौ नाली (उत्तराखंड में भूमि माप की इकाई,एक
नाली=200 वर्ग मीटर) भूमि है और अड़तालीस नाली भूमि डूब क्षेत्र के
अंतर्गत है तो वह विस्थापित की श्रेणी में नहीं रखा गया, किन्तु उसका
पडोसी यदि कुल दो नाली भूमिधर था और एक नाली भूमि डूब क्षेत्र में थी तो वह विस्थापन का पात्र माना गया.
-अपने पैत्रिक भूमि से पूरी तरह उखड़ने और देहरादून /
हरिद्वार में नए ठिकानो पर कई पीढ़ियों से जमी गृहस्थी (जी हाँ, सभी
सदस्यों के कपडे, किताबें, पूरी रसोई, बिस्तर, फर्नीचर ,बक्से, संग्रहीत
अन्न, खेती बड़ी के औजार व पालतू पशु आदि ) सहित पहुँचने के लिए विस्थापन
भत्ते के तौर पर सरकार द्वारा दिया गया कुल 2400 रूपया. जबकि कुछ गाँव रोड
हेड से पहाड़ी, पथरीले रास्ते वाले व पांच छः मील दूर थे. जहाँ से सामन
अपने नए ठिकानों पर पहुँचाने में विस्थापितों के चौबीस हजार रुपये से कई अधिक खर्च हुए.
-टिहरी नगर क्षेत्र के उन लोगों (जिनमें से अधिकांश वे थे
जिन्होंने सड़कें, पार्क या अन्य सरकारी जगह घेरकर झोपड़ियाँ /दुकाने खड़ी
की या उन लोगों को जो स्थानीय निवासियों के मकान पर वर्षों से बतौर दो-तीन
रूपये मासिक किरायेदार रहते हुए लाखों का व्यापार करते थे) को डेढ़ से
साढ़े चार लाख रुपये तक भवन सहायता के रूप में मिले. और जो ग्रामीण
विस्थापित थे उन्हें भवन सहायता के नाम पर ढेला नहीं .
-समुद्रतल से 845 मीटर की ऊँचाई तक ही डूब क्षेत्र माना गया
व उसके भीतर की भूमि या मकान का भुगतान कर दिया गया. जबकि झील का जलस्तर
835 मीटर तक रखा जाना प्रस्तावित है. 15 से 25 डिग्री तक का ढाल लिए तथा
भूकंपीय दृष्टि से अति संवेदनशील इस पर्वतीय भूभाग में विशाल झील और डूब
रेखा के बीच कुल दस मीटर ऊँचाई का फासला. ऊपर वाला ही जाने अतिवृष्टि और भूकंप में जाने कितने मकान जमीदोज हो जायेंगे .
-भिलंगना व भागीरथी के उत्तर में सैकड़ों गाँव हैं जो
विस्थापित नहीं हुए,परन्तु बुरी तरह प्रभावित हैं. इन नदियों पर एक भारी
वाहन पुल के अलावा सात-आठ झूला पुल थे. झील बनने के बाद अब दो हल्का वाहन
पुल के अलावा आवागमन का कोई साधन नहीं है और जो है, उनसे अपने घरों तक
पहुँचने में पहले की बनिस्बत समय व धन कई अधिक लग रहा है .
-आस -पास के ग्रामीणों की टिहरी पर निर्भरता तो थी ही किन्तु
कुछ किसान झंगोरा, मंडुआ, चौलाई, मौसमी सब्जी, तम्बाकू, मिर्च, दूध आदि
टिहरी में बेचकर आजीविका चलाते थे, उनसे वह छिन गया. कुछ ब्रह्मण व
हरिजनों की जीविका टिहरी व डूब क्षेत्र के गाँव में थी, किन्तु...... वे
भी अब भाग्य को कोस रहे हैं.
-विस्थापित होकर जो देहरादून, हरिद्वार के पुनर्वास स्थलों पर
चले गए उनमे से कुछ अपढ़ व सीधे-सादे लोग सामंजस्य नहीं बिठा पाए, या
दलालों द्वारा ठगे गए और अपनी जमीने औने-पौने दामों में बेचकर कई-कई व्यसन
पाल लिए. बेटे बेटियां कुसंगति में पड़ गए. जाति समाज से बाहर शादियाँ करने
लग गए.
खामियां अनेक, असह्य पीडाएं. कह सकते हैं कि टिहरी बाँध विकास
है सरकार के लिए, उनके लिए जो लाभान्वित हुए. परन्तु जो पीड़ा भोग रहे हैं
वे ही जानते हैं कि बाँध के मायने क्या है, विस्थापन के मायने क्या है.
शहरों को बसते हुए तो देखा किन्तु डूबते शहर का दर्द......! और यह दर्द
बढ़ता ही जायेगा. वर्ष दर वर्ष, पीढ़ी दर पीढ़ी.