Friday, January 13, 2012

माफ़ करना अन्ना जी !

कल अन्ना जी सपनों में आये मेरे 
बैठा हूँ उनके साथ अनशन पर मै जैसे-
जंतर-मंतर, रामलीला  या एम्एम्आरडीए मैदान पर
ओंठों को हल्की सी जुम्बिश देकर 
करते हैं अभिवादन वे हाथ हिलाकर.  

औ' शाम, विदा लेते वक्त
आग्रह करता हूँ हाथ जोड़कर उनसे   -
अन्ना जी ! 'पधारो म्हारो देश' !
चलाये अभियान म्हारे यहाँ -
भ्रष्टाचार उखाड़ने, जन लोकपाल बिल लाने के निमित्त
सहयोग दूंगा पूरा-पूरा, हरदम, अंतिम सांस तक
आप ललकारें खूब मंच से- अनाम नेताओं, अनाम अफसरों को
आप बेशक कोसें विधानसभा और देश की संसद को.

पर, अन्ना जी ! छोटी सी विनती जरूर है मेरी.
थोड़ी सी रहम करना, थोड़ा सा बख्स देना
मेरे विभाग को, मेरे अधिकारियों को.
रहेंगे वे तो खूब फलूँगा, फूलूँगा मै भी,
हाड़ मांस का पुतला ही तो मै भी,
फेहरिश्त छोटी सी है मेरी चाहतों की भी !

-कि महंगी शिक्षा के बाद रचाना है ब्याह बच्चों का,
 धूम-धाम से, शान-ओ-शौकत से.
-कि खरीदने होंगे शादी पर अनेक-अनेक जेवर,
 कार, कपडे, फर्नीचर और ढेर सारे उपहार.
-कि शादी से पहले
हटाकर पुराना पलाश्तर, पुरानी टाइल्स, पुराने परदे
बदलना होगा घर आँगन का स्वरुप,
देना होगा अपने इस भवन को नया लुक. 

और आदरणीय अन्ना जी, यह सब संभव है तभी जब
रहेगा विभाग, रहेंगे सलामत अधिकारी मेरे
फलेंगे-फूलेंगे वे तो फलूँगा-फूलूँगा मै भी.
बस अन्ना जी, बचाए रखना मेरे विभाग को -
अपने रोष से ! अपने तेज से !! अपने ताप से !!!

और टूटा सपना जब तो पानी पानी हो गया शर्म से.
माफ़ करना अन्ना जी ! मुझे सचमुच माफ़ करना !!
सपनों में भी जगी रहती है जाने क्यूं -
मनुष्य की अधूरी लालसाएं, अतृप्त वासनाएं.



5 comments:

  1. सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  2. सपनों में जागती हैं अतृप्त इच्छाएं ...
    सच कहा ... करार व्यंग है आज की व्यवस्था पे ...

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  3. बहुत ही सार्थक व सटीक लेखन| मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  4. एकदम सच कहा!

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  5. Hello, its nice paragraph concerning media print, we all
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