|
किले के शीर्ष से हैदराबाद का विस्तार |
पिछले अंक से आगे............
गोलकोण्डा किले के आठ द्वारों
में
मुख्य द्वार बाला हिसार है. बाला हिसार द्वार के भीतर के मुख्य आकर्षण
एक तीन मंजिला अस्स्लाह खाना, नगीना बाग़, अकन्ना मदन्ना आफिस, रामदास
जेल व दरबार हाल है. गाइड बताता है कि किले के प्रवेश द्वार पर यदि ताली भी बजाई जाये तो लगभग एक किलोमीटर दूर इस पहाड़ी पर बने बालाहिसार द्वार तक इसकी
गूँज सुनाई देती है. गोलकोण्डा किला वास्तुकला का यह अद्भुत व अनूठा नमूना तो है ही.
इतिहास में अक्सर जिक्र आता है कि राजा, महाराजा, सुल्तान, बादशाह युद्ध के मैदान में जितनी जीवटता दिखाते थे, अपने शान-ओ-शौकत के लिए भी वे उतने जाने जाते रहे हैं. शिकार, युद्ध, संगीत, नृत्य राजाओं, महाराजाओं व बादशाहों का शौक रहा है. मोहम्मद कुली क़ुतुब शाह भी अपवाद नहीं थे. गोलकोण्डा
|
किले के शीर्ष पर निर्मित अद्भुत शिल्प का नमूना ये मंदिर |
के महलों में भी नर्तकियों के पैरों के घुँघरू और पायल की झंकार, ढोलक-तबले की थाप व महल में गायिकाओं के गले से निकली मधुर स्वर लहरियां और बादशाह व उनके मेहमानों की वाह, वाह की आवाजों तथा ठहाकों का अहसास आज भी कहीं न कहीं बना रहता है. तारामथी व प्रेमाथि महल की मुख्य नर्तकियों में रही.
पौराणिक कथाओं की नायिकाओं की भांति नृत्य व संगीत को समर्पित ये दोनों बहिने अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन किया करती थी. सुल्तान अपने महल से सीधे देखकर ही जिसका आनंद उठाता था. उन दोनों बहिनों की याद में बना तारामथी गण मंदिर और प्रेमाथि नृत्य मंदिर आज भी अपनी और आकर्षित करता है. देवदासी भागमती व कुली क़ुतुब शाह की प्रेमगाथा का साक्षी महल का जर्रा-जर्रा है. सुल्तान कुली क़ुतुब शाह भागमती के मोहपाश में इस तरह बंधे कि वे ताउम्र भागमती के ही होकर रह गए.
|
किले के शीर्ष से दिखते भग्नावशेष व हैदराबाद का विस्तार |
भागमती बेगम बनी और नाम दिया गया हैदरजहां. कहते हैं कि हैदरजहां के नाम
से ही हैदराबाद शहर बसाया गया. कुली क़ुतुब शाह यद्यपि शिया मुसलमान थे
किन्तु हिन्दुओं के साथ कभी कोई भेदभाव नहीं रखा. उनके शासन में कई हिन्दू
सूबेदार व दरबारी थे. एक समय गोलकोण्डा क्षेत्र हीरों की माईन्स के लिए ही नहीं अपितु हीरों के व्यापार के लिए भी प्रसिद्द रहा है.
|
हैदराबाद की मशहूर चारमिनार |
क़ुतुब शाही खानदान के शासक मोहम्मद अबुल हसन ताना शाही (जो कि क़ुतुब शाही वंश के अंतिम शासक के रूप में जाने जाते हैं) के शासन काल में 28 जून 1685 को आलमगीर औरंगजेब ने किले पर चढ़ाई कर दी. आठ महीने तक औरंगजेब अपनी फ़ौज के साथ वहां पर डटा रहा किन्तु किले पर फतह नहीं कर सका. लौट आया किन्तु एक स्थानीय गद्दार को अपनी सेना में शामिल कर सन 1687 में किले को जीत पाया. क़ुतुब शाही वंश के साम्राज्य के पतन के बाद दख्खन के साम्राज्य को हिंदुस्तान की मुग़ल सल्तनत में शामिल कर दिया गया और आसफ जाह को औरंगजेब द्वारा दक्खन के सूबेदार के तौर पर नियुक्त किया गया. परन्तु सन 1707 में औरंगजेब की मृत्यु और दिल्ली में हिंदुस्तान की सल्तनत पर काबिज औरंगजेब के वारिस का ढीला रवैया देखते हुए सन 1713 में आसफ जाह ने हल्के संघर्ष के बाद मुग़ल साम्राज्य से मुक्ति पा ली तथा 'निजाम-उल-मुल्क' के रूप में स्वतत्र शासन करने लगा. सन 1948 तक
|
वापसी में किले से उतरते हुए साथी डाक्टर राजेंद्र सिंह
|
शासन करते रहे. आसफ जाह द्वारा सन 1724 में नगर के गोलकोण्डा किले से लगे हुए
उत्तर-पूर्व के कुछ हिस्से को किले में सम्मिलित किया गया जिसे आज 'नया किला' नाम से जाना जाता है.
लगभग आठ सौ वर्षों तक तेलंगाना में मुस्लिम साम्राज्य का आधिपत्य रहा जिससे वहां की समृद्ध संस्कृति, वृहद् साहित्य और वैभवशाली इतिहास का विकास हुआ. स्वतंत्र भारत में भाषाई आधार पर गठित होने वाले राज्यों में आन्ध्र प्रदेश ही पहला राज्य है. जो कि तेलंगाना, रायल सीमा व आन्ध्र क्षेत्र मिलकर बनाया गया है. गोलकोण्डा किले के इतिहास व सौन्दर्य को भली-भांति समझने के लिए पर्यटको हेतु किले के उत्तरी भाग में सप्ताह के छः दिन 'लाइट एंड साउंड शो' आयोजित किया जाता है जो कि हिंदी, अंग्रेजी व तेलुगु भाषा में अलग-अलग दिन प्रदर्शित होता है. -----
समाप्त -----