उन्नत किस्म के बीज शब्दों के.
उम्मीद है लहलहाएगी जरूर फसल
सुन्दर शब्दों की, सुन्दर छंदों की.
निरर्थक शब्दों के कंकर पत्थर बीनते बीनते
जोत रहा हूँ अज्ञान से भरी ऊसर भूमि को
पिछले कई-कई वर्षों से !
धूप, बारिश की परवाह किये बिना ही
हटा रहा हूँ अनर्गल विचारों की खर-पतवार
पिछले कई-कई वर्षों से !
आसमा के भरोसे ही न बैठकर
कर रहा हूँ सिंचाई भावों, संवेगों, संवेदनाओं की
पिछले कई-कई वर्षों से !
छिड़क रहा हूँ खाली जगहों पर
समास, अलंकार, रस युक्त शैली की खाद
पिछले कई-कई वर्षों से !
रंग लाएगी मेहनत मेरी जरूर,
चमकेगी अब किस्मत मेरी जरूर
बन नहीं पाऊँगा भले ही -
टैगोर, रोमा रोल्याँ या ज्यां पाल सात्र सा
नहीं कमा पाऊंगा धन भले ही -
बिक्रम सेठ, चेतन भगत या जे० के० रोलिंग सा
नहीं रहूँगा चर्चा में भले ही -
सलमान रश्दी, शोभा डे या तसलीमा नसरीन सा.
परन्तु, उम्मीद है कि एक न एक दिन
किसी छोटी सी गोष्टी में ही सही
रखा जायेगा ताज जरूर मेरे सर पर
और, मेरे खेतों में उगने वाले हीरे मोती से शब्द
चमका करेंगे सितारों की भांति मेरे ताज पर !