Wednesday, October 30, 2019

मेरे मुल्क की लोककथाएं



         क्या आपने ये किस्सा सुना है कि एक शादी में लड़की वालों ने लड़के वालों के सामने शर्त रखी हो कि बाराती सभी जवान आने चाहिए, बूढ़ा कोई न हो। लेकिन बाराती बरडाली के बक्से में छुपाकर एक सयाना व्यक्ति को ले गए। बारात पहुंची तो लड़की के पिता ने शर्त रखी कि सभी मेहमानों के लिए हमने एक-एक बकरे की व्यवस्था कर रखी है। हर एक बाराती को एक-एक बकरा खाकर खत्म करना होगा तभी अगले दिन दुल्हन विदा होगी। यह शर्त सुन कर सभी बाराती सन्न रह गए।
         एक बाराती ने बरडाली के बक्से के पास जाकर सारी बातें बुजुर्ग से कही तो बुजुर्ग ने उपाय बताया कि एक-एक करके बकरा मारो और मिल बांट कर खाओ। फिर तो सारी रात ऐसा ही किया और बाराती शर्त जीत गए।

         अगर आपने यह किस्सा सुना है और अपनी यादों को ताजा करना चाहते हैं तो आप ‘शूरवीर रावत’ द्वारा संग्रहित, लिप्यांकित लोककथा संग्रह ‘‘मेरे मुल्क की लोककथाएं’’ जरूर पढ़ें। अगर नहीं सुना है तो तब तो जरूर पढ़ें। समझ लीजिए आपने अपने समय और समाज की नब्ज पढ़ ली।
       शूरवीर रावत द्वारा संग्रहीत इस लोककथा संग्रह की लोककथाएं अपने दौर की सामाजिक सोच और मनोदशाओं को प्रकट कर रही है। ये लोककथाएं बता रही हैं कि हमारे समाज की क्या मान्यताएं और मूल्य हैं, क्या पूज्य, क्या सम्मानजनक और क्या अपमानजनक है। हमारे समाज में किस प्रकार की सोच, विश्वास, अंधविश्वास प्रचलित हैं। ये कथाएं समाजिक सच को पूरी ईमानदारी के साथ बयां कर रही हैं।

        संग्रह में 42 कथाएं संग्रहीत हैं। ये कथाएं लेखक ने किसी क्षेत्र विशेष में जाकर संग्रहीत नहीं की बल्कि बचपन से लेकर अब तक अपनी स्मृतियों में संचित कथाओं को लिख लिया है। यूं भी लोककथाएं स्मृतियों का आख्यान होती हैं। लेखक के अनुसार, ‘‘ह्यूंद की सर्द रातों में भट्ट, बौंर या भुने हुए आलू खाते हुए और कभी किसी के घर में शादी ब्याह होने पर पड़ाव किसी दोस्त के घर पर होता तो वहां उसकी दादी या घर की ही किसी बुजुर्ग महिला या पुरूष से अनेक कथाएं मैंने सुनी हैं।’’ इन कथाओं का फलक विस्तृत है। इन कथाओं को आप सिर्फ गढ़वाल या उत्तराखण्ड की न कह कर भारत की लोककथाएं भी कह सकते हैं। लेखक के अनुसार, ‘‘इस संग्रह की कथाएं किसी समाज विशेष का प्रतिबिम्ब नहीं हैं बल्कि पूरे जनपद, पूरे राज्य या पूरे मुल्क के किसी भी कोने की कथा हो सकती है।’’
Image may contain: 1 person, outdoor
डॉ0 नन्द किशोर हटवाल
        जिन्होंने पहाड़ों और गांवों में जीवन का अधिकांश हिस्सा बिताया उन्हांने इस संग्रह में संकलित कुछ किस्से-कहानियों को हो सकता है पहले भी सुना हो या पूर्व प्रकाशित संकलनो में पढ़ा हो। संग्रह में संकलित कतिपय कहानियां मैंने पहले भी सुनी-पढ़ी थी तो कतिपय मेरे लिए एकदम नयी थी। असल में लोकसाहित्य अधिकांश विधाएं समाज में एकाधिक रूपों में प्रचलित रहती हैं। लोककथाओं के मामले में यह अधिक है। एक ही कथा के कई वर्जन प्रचलित रहते हैं। जितनी बार आप पढ़ेंगे सुनेंगे उतनी ही बार आपको एक नए रूप से परिचित होने का मौका मिलेगा।
        अपने सधे हुए लेखन से इन लोककथाओं को लेखक ने पठनीय बनाया है। शूरवीर रावत निरन्तर रचना करने वाले लेखक हैं। पूर्व में वे बारामासा पत्रिका का सम्पादन व प्रकाशन करते रहे। यात्राओं पर केन्द्रित उनकी पुस्तक ‘आवारा कदमों की बातें’, कविता संग्रह ‘कितने कितने अतीत’ अपने गांव पर केन्द्रित किताब ‘मेरे गांव के लोग’ और सोशल मीडिया में लिखे गए उनके लेखों का संकलन ‘चबूतरे से चौराहे तक’ उनके लेखन की निरन्तरता को बयां कर रहा है। वे फेसबुक और ब्लॉग के माध्यम से भी निरन्तर सक्रिय हैं।  लोककथा संग्रह ‘मेरे मुल्क की लोककथाएं’ के लिए रावत जी बधाई के पात्र हैं।

 पुस्तक का नाम -  मेरे मुल्क की लोककथाएं        प्रकाशक -  विनसर पब्लिशिंग कं0  देहरादून,  उत्तराखण्ड
मूल्य - रू. 195 कुल पृष्ठ सं.-144      समीक्षक :  डॉ0 नन्द किशोर हटवाल

2 comments:

  1. सुंदर लोक कथा पहाड़ की.....


    आपके बारामासा ब्लाग को मैं फोलो कर रहा हूं। बारामासा के माध्यम से आपके लेख, कविताएं पढ़कर मुझे सुखद अहसास होता है। पहाड़ हमारे मन में बसा है और बारामासा मेरे मन में पहाड़ प्रेम की अनुभूति पैदा करते हुए सृजन की प्रेरण प्रदान करता है। आपने मेरे ब्लाग का अवलोकन करते हुए मेरा उत्साह बढ़ाया, भैजि मैं आपका हिरदय से आभारी हूं।
    दिल्ली बस स्टैण्ड पर मुझे एक नवयुवक बैठा दिखाई दिया। पहाड़ी सूरत होने के कारण मैंने पूछा, भुला कख छ आपकु गौं? उसने मुझे बताया, मेरु गौं दयारा कर नजिक सांदणा छ। मैंने तुरंत पूछा, श्री शूरबीर सिंह रावत जी कु गौं। उसने मुझे बताया, मेरे चाचा लगते हैं। उनका एक मित्र मोटर साईकिल से आया और वो उस तरफ दौड़ पड़ा। संवाद के बीच ही उन्हें दोस्त की तरफ भागना पड़ा और मैं नाम तक नहीं पूछ पाया। दर्द भरी दिल्ली में मुझे भागता हुआ पहाड़ नजर आता है।
    जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासू
    9654972366

    ReplyDelete
  2. dhanyvaad Jayara jee.
    Kuchh faltu shauk hai yah. Aap padhte hain to mera saubhagya hai
    aabhaar aapka.

    ReplyDelete