Saturday, January 29, 2011

धरती पर कई स्वर्ग हैं !

Statue-Lord Shiva, Hardwar     Photo-Subir
सपनों में अक्सर मै हर रोज 
करता हूँ भगवान से फोन पर लम्बी-लम्बी बातें,
और अपने स्वर्ग के बारे में वे मुझे खूब लुभाते,
स्वर्ग में यह है, स्वर्ग में वह है, स्वर्ग धरती जैसा नहीं है...... !

पर, मौन हो जाते हैं वे जब भी पूछता हूँ मै उनसे- 
अकाल मृत्यु को प्राप्त अपने पिता के बारे में,
उनकी मृत्यु पर पड़ा पर्दा हटाने के बारे में,
स्वर्गवासी अपने सगे, सम्बन्धियों, मित्रों के बारे में ,
मै उनसे जानना चाहता हूँ क्या हैं स्वर्ग के-
नियम, कायदे, कानून व्यवस्था और राज- काज !
मै उनसे जानना चाहता हूँ क्या है स्वर्ग की- 
लोकोक्ति, लोकगीत, लोककथाएं, लोकरीति और लोकाचार  !
मै उनसे जानना चाहता हूँ क्या है स्वर्ग की-
परम्पराएँ, आस्था, विश्वास और लोकव्यवहार  !
मै उनसे प्रार्थना करता हूँ कि वे बता दें स्वर्ग की 
वेबसाइट, टेलीफोन डाईरेक्टारी या मेरे पिता की ई-मेल आई0 डी0 ही !
और भगवान  नहीं सुनते मेरी विनती पर
रख देते हैं फोन झट से क्रेडिल पर पटक कर.

मै भगवान के रोष को नहीं समझ पाता हूँ 
(या भगवान् ही शायद मुझे समझने में असमर्थ है )  
अपने में ही बुदबुदाता हूँ  मै -
अपने बनाये इंसानों से क्यों दूर भागते हो भगवान !
अपने भक्तों के प्रश्नों से क्यों कतराते हो भगवान !
अपने स्वर्ग पर इतना क्यों इतराते हो भगवान !
"..स्वर्गादपि गरीयसी.." का मन्त्र धरती पर ही है भगवान !
अरे तुम ठहरे इकलौते स्वर्ग के स्वामी, और 
हमारी धरती पर तो कई स्वर्ग है ! कई-कई स्वर्ग हैं भगवान !!

12 comments:

  1. "..स्वर्गादपि गरीयसी.." का मन्त्र धरती पर ही है भगवान !
    और तुम ठहरे इकलौते स्वर्ग के स्वामी,
    परन्तु धरती पर तो कई स्वर्ग है ! कई-कई स्वर्ग हैं भगवान !!
    .... भगवान को लेकर मन में कई सवाल उठाना लाजिमी हैं ......आदमी भगवान से कुछ न कुछ लेने की बात तो करता है लेकिन बिडम्बना देखिये की भगवान को कोई नहीं मांगता, अब भगवान करे भी तो क्या करे.. .. ... आपने सही कहा कि धरती पर कई स्वर्ग हैं, फिर क्यों हमें और उनसे मांगने की जरुरत आ पड़ती हैं,,...उसने इतनी सुन्दर धरा को तो हम इंसानों के लिए बनाया है लेकिन हम इंसान ही तो हैं जो ढंग से जीना नहीं सीख पाते.....
    बहुत अच्छा लगा आपकी यह रचना.......बधाई

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  2. अपने भक्तों के प्रश्नों से क्यों कतराते हो भगवान !
    अपने स्वर्ग पर इतना क्यों इतराते हो भगवान !
    achchi prastuti, ishwer se sidha samvad, kabhi-kabhi awshyak ho jata hai .

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  3. धरती तो सारी ही स्वर्ग है देखने वाले की नज़र चाहिये। बहुत सुन्दर रचना है। बधाई।

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  4. सुबीर जी..बहुत ही बढ़िया कविता है। आपकी रचनात्मकता बेहद पसंद आई। इसके लिए आपको आभार!

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  5. अपने बनाये इंसानों से क्यों दूर भागते हो भगवान !
    अपने भक्तों के प्रश्नों से क्यों कतराते हो भगवान !
    अपने स्वर्ग पर इतना क्यों इतराते हो भगवान !

    सुबीर जी
    नमस्कार
    अच्छे प्रश्न पूछे हैं आपने भगवान् से ..पर यह कहना चाहूँगा यह सारी सृष्टि खुदा का कुनवा है ....बस हम उसे महसूस कर पायें
    थोड़ी सी इनायत भरी निगाह यहाँ भी डाल दें तो आपके प्रश्नों का हल मिल जाये
    http://mohalladharmordarshan.blogspot.com

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  6. सुन्दर रचना. बधाई .

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  7. धन्यवाद कविता जी, ........
    धन्यवाद निर्मला जी, .........
    धन्यवाद भाकुनी जी, .........
    धन्यवाद केवल जी, .......
    धन्यवाद वीरेन्द्र जी, .........
    धन्यवाद मनोज जी, ...........
    ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी मुझे नयी उर्जा और नयी शक्ति देती है. आभार! उम्मीद है आप इसी भांति स्नेह बनाये रखेंगे.
    बसन्त पंचमी की शुभकामनाओं सहित..............

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  8. हमारी धरती पर तो कई स्वर्ग है ! कई-कई स्वर्ग हैं भगवान !!
    क्या बात है.सुन्दर रचना.

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  9. अरे तुम ठहरे इकलौते स्वर्ग के स्वामी, और
    हमारी धरती पर तो कई स्वर्ग है ! कई-कई स्वर्ग हैं भगवान !!
    बहुत सुन्दर रचना|

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  10. बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ...

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  11. aapki kavita achi lagi subhir ji....par aisa lagta hai jaise apko unse kuch shikayete hai...anyway God bless u...thanks Archana

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