Thursday, March 24, 2011

शून्य क्षितिज के पार

मन उदास होता है बहुत
जब आती है याद तुम्हारी.
चाहत की आस लिए 
सपनों के पंख लगाकर 
उड़ता है यह मन 
शून्य क्षितिज के उस पार.
और शाम की लालिमा 
उतर आयी है धरा पर .
पक्षियों का कोलाहल 
निश्छल, शांत वातावरण में 
छेड़ जाता है मधुर संगीत 
चुराकर जैसे तुम्हारी आवाज !

आलिंगन में लेने आकाश को
शिखरों सी ऊंची बाहें फैलाये 
आतुर बनी यह धरती,
और जाने क्यों
याद आने लगता है फिर से -  
उन संगमरमरी बाँहों का बंधन,
गंध तुम्हारी देह की 
बसी जो है साँसों में 
असह्य पीड़ा, अपार दुःख लिए यह मन 
लौट आना चाहता है फिर से
तुम्हारे गेसुओं की छांव में !!

3 comments:

  1. सच्चा प्रेम यदि दूर हो जाता है तो उसकी याद बहुत पीड़ादायी होती है ।

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  2. पीड़ा ही तो उत्साह को स्पंदित कर जीवन को नयी राह देती है

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