जब आती है याद तुम्हारी.
चाहत की आस लिए
सपनों के पंख लगाकर
सपनों के पंख लगाकर
उड़ता है यह मन
शून्य क्षितिज के उस पार.
और शाम की लालिमा
उतर आयी है धरा पर .
पक्षियों का कोलाहल
निश्छल, शांत वातावरण में
छेड़ जाता है मधुर संगीत
छेड़ जाता है मधुर संगीत
चुराकर जैसे तुम्हारी आवाज !
आलिंगन में लेने आकाश को
शिखरों सी ऊंची बाहें फैलाये
आतुर बनी यह धरती,
और जाने क्यों
याद आने लगता है फिर से -
याद आने लगता है फिर से -
उन संगमरमरी बाँहों का बंधन,
गंध तुम्हारी देह की
बसी जो है साँसों में
बसी जो है साँसों में
असह्य पीड़ा, अपार दुःख लिए यह मन
लौट आना चाहता है फिर से
सच्चा प्रेम यदि दूर हो जाता है तो उसकी याद बहुत पीड़ादायी होती है ।
ReplyDeleteपीड़ा ही तो उत्साह को स्पंदित कर जीवन को नयी राह देती है
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