युगीन यथार्थ की विसंगतियों के खिलाफ तीन दशकों से निरंतर सक्रिय व जुझारू कवि चन्दन सिंह नेगी (या 'चन्दन उपेक्षित ' जैसे कि वे मित्रों के बीच लोकप्रिय हैं ) अपनी कविताओं व लेखों के माध्यम से जन जागरण में लगे हैं. ........ 1986 में युवा कवियों के कविता संकलन 'बानगी' में प्रकाशित उनकी कवितायेँ काफी चर्चा में रही. 1995 में लोकतंत्र अभियान, देहरादून द्वारा प्रकाशित "उत्तराखंडी जनाकांक्षा के गीत" में उनके वे जनगीत संकलित हैं जो उत्तराखंड आन्दोलन के दौरान सड़कों पर, पार्कों में तथा नुक्कड़ नाटकों में गाये गए और वे गीत आज भी प्रत्येक आन्दोलनकारी की जुवां पर हैं .......
आज पूरा देश भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उबल रहा है , जन लोकपाल विधेयक लाने को लेकर गांधीवादी विचारों के महापुरुष अन्ना हजारे जी की मुहीम को लेकर जनसैलाब सड़कों पर हैं, लोग उन्हें खुल कर समर्थन दे रहे हैं . चन्दन नेगी का यह जनगीत इसी मसीहा को समर्पित है;
तान कर जब मुट्ठियों को यूं उछाला जायेगा l
खून जो ठंडा पड़ा है, फिर उबाल आ जायेगा l l
आज फिर से एक चिड़िया चहचहाने सी लगी है
भोर का तारा उगा है भोर आने-सी लगी है
जो कदम चल कर रुके थे वो कदम फिर चल पड़े हैं
मंजिलें जो तय करी थी पास आने सी लगी है l
मौन रहने की हदों को तोड़ डाला जायेगा l तान कर जब ..........
पीड़ इतनी बढ़ गयी है अब सही जाती नहीं है
भ्रष्ट लोगों की कहानी भी कही जाती नहीं है
आग मुठ्ठी भर पकड़ कर सिरफिरे कुछ चल पड़े हैं
इनको झुककर बात करने की अदा आती नहीं है
राजपथ पर जीतकर ईमान वाला जायेगा l तान कर जब ..........
कुछ सियासत की बनावट ही सवालों से घिरी है
कुछ न कुछ होकर रहेगा अब हवा ऐसी चली है
लोग चौखट से निकलकर सड़क पर आने लगे हैं
जंग मिल कर जीतने की आज सबने ठान ली है
रोशनी की इस किरण को कैसे टाला जायेगा ? तान कर जब .........
चन्दन नेगी का यह जनगीत बहुत ही उत्साहवर्घक है....
ReplyDeleteतान कर जब मुट्ठियों को यूं उछाला जायेगा l
खून जो ठंडा पड़ा है, फिर उबाल आ जायेगा l ..बहुत सुन्दर ..धन्यवाद..
तान कर जब मुट्ठियों को यूं उछाला जायेगा l
ReplyDeleteखून जो ठंडा पड़ा है, फिर उबाल आ जायेगा l ल
चन्दन जी का परिचय पाकर प्रसन्नता हुई .उनकी लेखनी में आग है .सार्थक प्रस्तुति हेतु आप भी बधाई के अधिकारी हैं .
BHARTIY NARI
prerak v josheela geet bahut pasand aaya.
ReplyDeleteaabhar
आज फिर से एक चिड़िया चहचहाने सी लगी है
ReplyDeleteभोर का तारा उगा है भोर आने-सी लगी है
जो कदम चल कर रुके थे वो कदम फिर चल पड़े हैं
मंजिलें जो तय करी थी पास आने सी लगी है l
मौन रहने की हदों को तोड़ डाला जायेगा l तान कर जब ....
इस ओजमयी कविता से देशवासियों के खून में उबाल आना तो तयशुदा है। हमसे सांझा करने के लिए आभार।
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बिलकुल सामयिक और प्रासंगिक प्रस्तुति है.
ReplyDeleteयदि मीडिया और ब्लॉग जगत में अन्ना हजारे के समाचारों की एकरसता से ऊब गए हों तो कृपया मन को झकझोरने वाले मौलिक, विचारोत्तेजक आलेख हेतु पढ़ें
अन्ना हजारे के बहाने ...... आत्म मंथन http://sachin-why-bharat-ratna.blogspot.com/2011/08/blog-post_24.html
सार्थक प्रस्तुति ........
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति है सुबीर जी, आजकल मैं थोड़ा वयस्त हूँ, जीवन की आपाधापी में, आशा है कि आप मुझे माफ कर देंगें यदि मैं हमेशा टिप्पणी न दे पाऊं, वैसे आपके ब्लॉग पर मैं हमेशा आता रहता हूँ.
ReplyDeleteएक चीज और, आप जैसा ज्ञानी ही मेरी मदद कर सकता है, मुझे कुछ धर्मिक किताबें यूनीकोड में चाहिये, क्या कोई वेबसाइट आप बता पायेंगें,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सुन्दर और लाजवाब गीत ! बेहतरीन प्रस्तुती !
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को ईद और गणेश चतुर्थी की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
वाकई जबरदस्त रचना वाली सार्थक पोस्ट पढ़कर दिल खुश हो गया!
ReplyDeleteआप को श्रीगणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ!
आदरणीय नेगी जी की ओजमयी और समसामयिक रचना पढवाने के लिए आभार
ReplyDelete"आग मुठ्ठी भर पकड़ कर सिरफिरे कुछ चल पड़े हैं
इनको झुककर बात करने की अदा आती नहीं है"
रावत जी, कुछ घरेलू काम में ब्यस्त होने से ब्लॉग पर नहीं आसका उसके लिए मांफी चाहता हूँ| चन्दन नेगी का यह जनगीत बहुत ही उत्साहवर्घक है|उनका यह गीत पढ़वाने के लिए धन्यवाद|
ReplyDeleteThis website really has all of the information and facts I wanted about this subject and didn't know who to ask.
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