एक सियार था- बड़ा आलसी, झूठा, चालबाज और डींगबाज. और उसकी पत्नी उसके बिपरीत बहुत भोली थी. सियार जो कहता उस पर सहज ही विश्वास कर लेती. फिर भी उनका दाम्पत्य जीवन ठीक ढंग से ही व्यतीत हो रहा था. शादी के दिन से ही सियार कभी इस गुफा, कभी उस गुफा में पत्नी सहित दिन काटता. उसकी पत्नी उसे हर ऱोज अपना घर बनाने को कहती परन्तु वह तो ठहरा आलसी परन्तु साथ में झूठा भी था, तो उसने एक दिन अपनी पत्नी से कह दिया कि वह कल से अपना घर बनाना शुरू करेगा, उसकी पत्नी बड़ी खुश हुयी. सियार ऱोज सवेरे खा पीकर घर से निकलता, इधर-उधर डोलता, मस्ती मारता और शाम को मिटटी में लोटकर घर लौटता. घर आकर पत्नी पर रौब झाड़ता, हाथ मुंह धोने को गरम पानी मांगता और देर रात अपने पांव दबवाने को कहता. बेचारी सब कुछ सहती, सब कुछ करती और सपने देखती कि चलो जल्दी ही अपना एक घर होगा. इधर जब वह गर्भवती हुयी तो उसे और भी चिंता सताने लगी और वह सियार को जोर देती. परन्तु सियार ठहरा सियार.
एक दिन प्रसव पीड़ा तेज हुयी किन्तु सियार गायब. शाम को अँधेरा होने पर घर लौटा तो देखा तो पत्नी पीड़ा से छटफटा रही है. सियार गुफा से बाहर आया और 'हुवा हुवा ' का शोर मचाने लगा ताकि बिरादरी के लोगों से मदद मिल सके. परन्तु कौन आता. क्योंकि वह तो कभी बिरादरी के बीच रहा ही नहीं और न बिरादरी वाले उसे पसंद करते. फिर इस वक्त तो वह सियारों की बस्ती से दूर शेर की गुफा में ठाठ से रह रहा था. क्या करता, गुफा में लौट आया. पत्नी की पीड़ा देखी नहीं जा रही थी. इधर उधर करता रहा. ईश्वर की लीला देखिये इधर पौ फटी भी नहीं थी कि उधर दूर से शेर की गुर्राहट सुनाई दी जो लगातार गुफा की ओर बढ़ रही थी. शेर को समझते देर न लगी कि गुफा का स्वामी लौट आया है. वह भय से थर-थर काम्पने लगा. वह पत्नी को भाग चलने को कहता है जो लगभग बेहोशी की हालत में थी. फिर सियार स्वयं ही पत्नी को गर्दन से पकड़ कर बाहर खींचता है और गुफा से दूर ले चलने की कोशिश करता है. परन्तु गुफा से थोड़ी ही दूरी पर आ पाया था कि सियार पत्नी एक गड्ढे में गिर जाती है और इधर शेर की गुर्राहट बिल्कुल पास ही सुनाई देने लगी. सियार करे तो क्या करे. गुफा के पास पहुँच कर शेर को कुछ गड़बड़ सी लगती है. वह अँधेरे में गड्ढे में बेहोशी की हालात में गिरी सियार पत्नी को तो नहीं देख पाता किन्तु झाड़ियों के पीछे से सियार को भागते हुए जरूर देख लेता है. छलांग मार कर शेर सियार को मार गिराता है.
कुछ समय बाद सियार पत्नी अपने बच्चों सहित बाहर निकल आती है और दूर सियारों की बस्ती का रुख कर लेती है. परन्तु अपने आलसी पति सियार का दुःख उसे जिंदगी भर सालता रहा.
आलसी और चालाक सियार को अच्छी सजा मिली.....संदेश देती सार्थक कथा....
ReplyDeleteVery meaningful and interesting story!
ReplyDeleteप्रेम करने वाली पत्नी उसे भुला न सकी। करुणा युक्त कथा।
ReplyDeleteprachin lakkathaon aaj bhi apni saarthak sandesh ke karan prasangik lagti hai., unke mool mein chhupi nek bhawana hi hamen baar-baar padhne aur sikhne ke liye prerit karti hain..
ReplyDeleteBahut badiya saarthak sandesh deti lokkatha prastuti ke liye aabhar!
अच्छा सन्देश देती लाजवाब बोध कथा ...
ReplyDeleteअच्छा सन्देश देती सार्थक कथा|
ReplyDeleteसंदेश देती सार्थक कथा....
ReplyDeleteबहुत सुंदर कथा,
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग परचन्द्रकुंवर बर्त्वाल जी की एक प्रस्तुति भी है, आपका आशीर्वाद चाहूंगा,
http://vivj2000.blogspot.com/
निकम्मों की यही परिणिति !
ReplyDeleteझूठ का अंत बुरा. सार्थक कहानी.
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपकी टिपण्णी के लिए आभार.
क्या हुआ, भाषा ठीक नहीं लगी या स्पष्ट नहीं हो पाई.जरूर बताएं.
धन्यवाद.
सन्देश देती लाजवाब बोध कथा ...
ReplyDeleteअच्छा सन्देश ........
ReplyDeleteसंदेश देती सार्थक कथा
ReplyDeletethanks...once again.
ReplyDeleteसुन्दर सन्देश देती हुई लाजवाब और सार्थक कथा ! बेहतरीन प्रस्तुती!
ReplyDeleteमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
रावत जी !आजकल कुछ निजी व्यस्तताओं के कारन ब्लॉग जगत में पर्याप्त समय नहीं दे पा रहा हूँ जिसका मुझे खेद है, बावजूद इसके आपको स:परिवार नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ ,
ReplyDeleteजय माता दी ...........
रावत जी !आजकल कुछ निजी व्यस्तताओं के कारन ब्लॉग जगत में पर्याप्त समय नहीं दे पा रहा हूँ जिसका मुझे खेद है, बावजूद इसके आपको स:परिवार नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ ,
ReplyDeleteजय माता दी ...........
payra sa sandesh!!
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