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Monday, August 22, 2011

रोशनी की इस किरण को.....

                युगीन यथार्थ की विसंगतियों के खिलाफ तीन दशकों से निरंतर सक्रिय व जुझारू कवि चन्दन सिंह नेगी (या 'चन्दन उपेक्षित ' जैसे कि वे मित्रों के बीच लोकप्रिय हैं ) अपनी कविताओं व लेखों के माध्यम से जन जागरण में लगे हैं. ........ 1986 में युवा कवियों के कविता संकलन 'बानगी' में प्रकाशित उनकी कवितायेँ काफी चर्चा में रही. 1995 में लोकतंत्र अभियान, देहरादून द्वारा प्रकाशित "उत्तराखंडी जनाकांक्षा के गीत" में उनके वे जनगीत संकलित हैं जो उत्तराखंड आन्दोलन के दौरान सड़कों पर, पार्कों में तथा नुक्कड़ नाटकों में गाये गए और वे गीत आज भी प्रत्येक आन्दोलनकारी की जुवां पर हैं .......
            आज पूरा देश  भ्रष्टाचार के  मुद्दे पर उबल रहा है , जन लोकपाल विधेयक लाने को लेकर गांधीवादी विचारों के महापुरुष अन्ना हजारे जी की मुहीम को लेकर जनसैलाब सड़कों पर हैं, लोग उन्हें खुल कर समर्थन दे रहे हैं . चन्दन नेगी का यह जनगीत  इसी मसीहा को समर्पित है;
 तान कर जब मुट्ठियों को यूं उछाला जायेगा l
खून जो ठंडा पड़ा है, फिर उबाल आ जायेगा l l

आज फिर से एक चिड़िया चहचहाने सी लगी है 
भोर का तारा उगा है भोर आने-सी लगी है
जो कदम चल कर रुके थे वो कदम फिर चल पड़े हैं 
मंजिलें जो तय करी थी पास आने सी लगी है l
मौन रहने की हदों को तोड़ डाला जायेगा l तान कर जब .......... 

पीड़ इतनी बढ़ गयी है अब सही जाती नहीं है
भ्रष्ट लोगों की कहानी भी कही जाती नहीं है
आग मुठ्ठी भर पकड़ कर सिरफिरे कुछ चल पड़े हैं
इनको झुककर बात करने की अदा आती नहीं है
राजपथ पर जीतकर ईमान वाला जायेगा l तान कर जब ..........

कुछ सियासत की बनावट ही सवालों से घिरी है
कुछ न कुछ होकर रहेगा अब हवा ऐसी चली है 
लोग चौखट से निकलकर सड़क पर आने लगे हैं 
जंग मिल कर जीतने की आज सबने ठान ली है
रोशनी की इस किरण को कैसे टाला जायेगा ? तान कर जब .........


Saturday, November 06, 2010

ये कैसी राजधानी है !!

Clock Tower, Dehradun Photo-Subir
         युगीन यथार्थ की विसंगतियों के खिलाफ गत तीन दशक से निरंतर सक्रिय व जुझारू कवि चन्दन सिंह नेगी अपनी कविताओं, लेखों व जनगीतों के माध्यम से जन जागरण में लगे हैं......... उनके लेख व कवितायेँ उनकी पीड़ा, उनकी छटपटाहट को अभिव्यक्त करते हैं.........1986 में युवा कवियों के कविता संकलन 'बानगी' में प्रकाशित उनकी कवितायेँ काफी चर्चा में रही.......... 1995 में लोकतंत्र अभियान, देहरादून द्वारा प्रकाशित "उत्तराखंडी जनाकांक्षा के गीत"  में उनके वे जनगीत संकलित हैं जो उत्तराखंड आन्दोलन के दौरान सड़कों पर,पार्कों तथा नुक्कड़ नाटकों में गाये गए और वे गीत प्रत्येक आन्दोलनकारी की जुवां पर थे............समाज में व्याप्त संक्रमण के खिलाफ वे आज भी संघर्षरत है. 
यहाँ प्रस्तुत है उनका सद्ध्य प्रेषित जनगीत ;

 ये कैसी राजधानी है! ये कैसी राजधानी है!!
                                  हवा में जहर घुलता औ' जहरीला सा पानी है !!! ये कैसी राजधानी.......

शरीफों के दर्द को यहाँ कोई नहीं सुनता,
                                  यहाँ सबकी जुवां पर दबंगों की कहानी है !! ये कैसी राजधानी.........

कहाँ तो साँझ होते ही शहर में नींद सोती थी,
                                  कहाँ अब 'शाम होती है' ये कहना बेमानी है !! ये कैसी राजधानी.......

मुखौटों का शहर है ये ज़रा बच के निकलना तुम,
                                  बुढ़ापा बाल रंगता है ये कैसी जवानी है !! ये कैसी राजधानी.......

नदी नालों की बाहों में बिवशता के घरौंदे हैं,
                                  गरीबी गाँव से चलकर यहाँ होती सयानी है !! ये कैसी राजधानी......

शहर में पेड़ लीची के बहुत सहमे हुए से हैं,
                                  सुना है एक 'बिल्डर' को नयी दुनिया बसानी है !! ये कैसी राजधानी......

न चावल है, न चूना है, न बागों में बहारें है,
                                  वो देहरादून तो गम है फ़क़त रश्मे निभानी है !! ये कैसी राजधानी......

महानगरी 'कल्चर' ने सब कुछ बदल डाला,
                                  इक घन्टाघर पुराना है औ' कुछ यादें पुरानी है !! ये कैसी राजधानी.......

Wednesday, September 29, 2010

जनता - गैरसैण राजधानी / सत्ता - गुजरी हुयी कहानी !

Chandan Negi        Photo-Subir
             युगीन यथार्थ की विसंगतियों के खिलाफ गत तीन दशक से निरंतर सक्रिय व जुझारू कवि चन्दन सिंह नेगी (या 'चन्दन उपेक्षित' जैसे कि वे कवि सम्मेलनों में व मित्रों के बीच जाने जाते हैं ) अपनी कविताओं व लेखों के माध्यम से वे जन जागरण में लगे रहे हैं. अपने धारदार व सार्थक लेखों से उन्होंने उत्तराखण्ड हिमालय की समस्याओं को विभिन्न राष्ट्रीय व क्षेत्रीय पत्र -पत्रिकाओं में उठाया है. उत्तराखण्ड के लिए कुछ कर गुजरने की प्रबल इच्छा उनके मन में सदैव  रहती है. उनके लेख व कवितायेँ उनकी पीड़ा, उनकी छटपटाहट को अभिव्यक्त करते हैं. 1986 में युवा कवियों के कविता संकलन 'बानगी' में प्रकाशित उनकी कवितायेँ काफी चर्चा में रही. 1995 में लोकतंत्र अभियान, देहरादून द्वारा प्रकाशित "उत्तराखंडी जनाकांक्षा के गीत" में उनके वे जनगीत संकलित हैं जो उत्तराखंड आन्दोलन के दौरान सड़कों पर, पार्कों में तथा नुक्कड़ नाटकों में गाये गए और वे गीत प्रत्येक आन्दोलनकारी की जुवां पर थे. यह उनकी जीवटता का ही प्रमाण है कि समाज में व्याप्त संक्रमण के खिलाफ वे आज भी संघर्षरत है. "जनता उत्तराखंडी" कविता उनके द्वारा बारामासा पत्रिका के लिए प्रेषित की गयी थी, किन्तु कतिपय कारणों से प्रकाशित नहीं हो पाई थी.

जनता- तनी मुठ्ठियाँ सबकी,  जनता- जीत हमारी पक्की,  जनता- अपने पर विश्वास,  सत्ता- हार चुकी अबकी !

जनता- सीधे बोली मात,  जनता- वक्त नहीं है आज,  जनता- सड़कों पर सैलाब,  सत्ता- झेलेगी प्रतिघात !

जनता- घर-घर में अंगार,  जनता- पहुँच गयी दरबार,  जनता- गाँव-गाँव में जलसे,  सत्ता- चौतरफा लाचार  !

जनता- सधे हुए कुछ वोट,  जनता- नया करारा नोट,  जनता- दाग रही सवाल,  सत्ता- सिले हुए अब ओंठ  !

जनता- उठे हुए सब लोग,  जनता- चुने हुए सब लोग,  जनता- होली और दीवाली,  सत्ता- पिटे हुए कुछ लोग !

जनता- रौद्र रूप विकराल,  जनता- शेर मूंछ का बाल,  जनता- बदला लेगी अब तो,  सत्ता- बकरी जैसा हाल !

जनता- क्रांति-क्रांति का शोर,  जनता- गर्जन है घनघोर,  जनता- करवट ले गयी अब तो,  सत्ता- कटी पतंग की डोर  !

जनता- तेरा मेरा साथ,  जनता- दिल से दिल की बात,  जनता- खुली हवा में घूमे,  सत्ता- दम घोंटू हालात  !

जनता- जनता उत्तराखंडी,  जनता- कमला, दुर्गा, चंडी,  जनता- जय हो उत्तराखण्ड,  सत्ता- सांस पड़ रही ठंडी !

जनता- फिर से नयी जवानी,  जनता- गैरसैण राजधानी,  जनता- निकल पडी सड़कों पर,  सत्ता - गुजरी हुयी कहानी !