Saturday, February 11, 2012

गांधीदर्शन के सजग प्रहरी थे भक्त दर्शन

                        जन्मशती पर विशेष 
          राजनीति में ऐसे बहुत कम नेता हैं जिन्होंने राजनीतिक या सामाजिक जीवन में सादगी और शुचिता के साथ सफ़र शुरू कर जीवन भर उच्च मानवीय मूल्यों का निर्वाहन किया हो. स्व० भक्तदर्शन सिंह रावत जी ऐसे ही राजनेताओं में थे. जिन्होंने गांधीवादी चिंतन के साथ अपनी सामाजिक-राजनीतिक यात्रा शुरू की और जीवन भर उसका निर्वाह किया.
                 ग्राम- भौराड़, पट्टी- सांवली, पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखंड) निवासी बुद्धि देवी व गोपाल सिंह रावत के घर 12  फरवरी 1912  को जन्मे भक्त दर्शन के बचपन का नाम राज दर्शन था. जो उनके पिता द्वारा 1911 में जार्ज पंचम के दिल्ली आगमन से प्रभावित होकर रखा गया था. होश सँभालने पर उन्हें इस नाम में ब्रिटिश राज की बू आने लगी अतः बदलकर 'भक्त दर्शन' रख दिया. डी० ए० वी० देहरादून कालेज से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने गांधी दर्शन को आत्मसात करके स्वतंत्रता संग्राम में कूदने का निर्णय लिया. सन 1929 में लाहौर कांग्रेस के स्वयं सेवक बने. महज 18 वर्ष की उम्र में सन 1930 में नमक आन्दोलन में जेल गए. उच्च शिक्षा की प्राप्ति हेतु वे 1932  से 1934 तक शांति निकेतन में रहे. जहाँ पर उन्हें गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर व आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का सानिद्ध्य मिला. सन 1937  में इलाहाबाद विश्वविध्यालय से राजनीति शास्त्र में एम्0 ए0 की पढाई के बाद गढ़वाल की लोकप्रिय पत्रिका "गढ़देश" के सम्पादकीय विभाग में कार्य किया और फिर सन 1939 तक "कर्मभूमि" साप्ताहिक पत्र के संपादक रहे. इसके माध्यम से गढ़वाल के ग्रामीण इलाकों में राष्ट्रीय आन्दोलन की मशाल जलाई. एक अगस्त सन 1941 में तिलक दिवस पर बद्रीनाथ में सरकार विरोधी नारे लगाते व तिरंगा झंडा फहराते हुए पकड़े जाने पर उन्हें बंदी बनाया गया. आठ अगस्त को अदालत ने नौ माह कैद व एक सौ रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई. सन 1942 - 45 के बीच वे कई बार जेल गए. जेल में यातनाएं भोगने के बाद भी वे अपने पथ से नहीं डिगे. यह स्वदेशी और गांधीवादी दर्शन का ही जूनून रहा होगा कि 17 फरवरी सन 1931 को उनकी शादी सावित्री देवी से संपन्न हुयी. अपनी शादी पर उन्होंने शर्त रखी कि बारात में वही जायेगा जो खादी पहनेगा. उन्होंने शादी में न कोई भेंट स्वीकार की और न ही मुकुट पहना. विवाह के अगले ही दिन स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेने हेतु घर से निकले और संगलाकोटी में देशप्रेम से ओतप्रोत ओजस्वी भाषण के कारण गिरफ्तार किये गए.
                 स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान व कांग्रेसजनों के बीच गांधीवादी विचारक व पवित्र जीवन मूल्यों पर निष्ठा के लिए प्रसिद्धि के कारण उन्हें सन 1952 में प्रथम लोकसभा चुनाव में गढ़वाल से कांग्रेस प्रत्याशी बनाया गया. वे गढ़वाल से लगातार चार बार सांसद चुने गए. वे देश के ऐसे चुनींदा नेताओं में थे जिनकी योग्यता, निष्ठा व सदाचार के लिए जवाहरलाल नेहरु, लालबहादुर शास्त्री व इन्दिरा गांधी ने अपने मंत्रीमंडल में स्थान दिया. केन्द्रीय शिक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने केन्द्रीय विद्यालयों तथा केन्द्रीय हिंदी निदेशालय की स्थापना करवाई. केन्द्रीय विद्यालय संगठन के वे प्रथम अध्यक्ष रहे. त्रिभाषा फार्मूला की दृष्टि से इस योजना को सर्वाधिक महत्व देकर संगठन को प्रभावशाली बनाया. 
                 सन 1971 में कांग्रेस में इन्दिरा की लहर होने के बावजूद महज 59 वर्ष की उम्र में स्वेच्छापूर्वक राजनीति से सन्यास ले लिया. स्वच्छ और सिद्धांतपरक राजनीति के हिमायती भक्त दर्शन के विषय में पूर्व सांसद वाल्मीकि चौधरी ने कहा था " मैंने किसी नेता के बारे में आज तक यह नहीं सुना कि स्वास्थ्य ठीक होते हुए भी राजनीति से हट गए हों."  इंदिरा जी के जोर देने पर भक्त दर्शन जी ने साफ़ कह दिया था कि वे इस वर्ष ही नहीं भविष्य में भी कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे. कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि- वोटरों से पिछली बार ही कह दिया था कि अब अपने लिए वोट मांगने नहीं आऊँगा. अपने संकल्प का निर्वहन उन्होंने भीष्म प्रतिज्ञा की भांति किया. 'ज्यों की त्यों धर दीनी चदरिया' उक्ति को चरितार्थ करते हुए राजनीति से सन्यास लेने के बाद सामान्य व्यक्ति की भांति जीवन यापन किया. 
                भक्त दर्शन एक कुशल लेखक के रूप में भी प्रसिद्द हुए. गढ़वाल के प्राचीन इतिहास, संस्कृति, समाज, साहित्य, धर्म, कला व शौर्य का प्रदर्शन करने वाले दिवंगत लोगों को आधार मानकर "गढ़वाल की दिवंगत विभूतियाँ" "श्रीदेव सुमन स्मृति ग्रन्थ" आदि अनेक महत्वपूर्ण ग्रन्थ उन्होंने समाज को दिए. कलाविद मुकुन्दी लाल बैरिस्टर, अमर सिंह रावत व उनके अविष्कार तथा स्वामी रामतीर्थ पर उनके आलेख आज भी प्रकाशदीप की भांति है. इसके लिए उन्हें डाक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया. सन 1971 से 1972 तक वे उत्तर प्रदेश खादी बोर्ड के उपाध्यक्ष, सन 1972 से सन 1977 तक कानपुर विश्वविध्यालय के कुलपति तथा सन 1988 से सन 1990 तक उ0 प्र0 हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष पद पर रहे.
                   देहरादून में वे किराये के मकान में रहते थे. खद्दर का कुरता पायजामा, जैकेट और कंधे पर लम्बा थैला उनकी पहचान थी. उनके पास गाड़ी तो क्या साईकिल तक नहीं थी. जहाँ जाते पैदल ही जाते. गांधी दर्शन को जीवन पर्यंत ओढने बिछाने वाले इस नायक ने 30 अप्रैल 1991  को देहरादून के सरकारी दून अस्पताल में अंतिम सांस ली.
                                                                                     
                                                   आलेख - चन्दन सिंह नेगी (देहरादून) व दर्शन सिंह रावत (उदयपुर) 

9 comments:

  1. क्या आपने उनके जन्म स्थान की प्रमाणिक जानकारी दी है मैंने तो सुना है वे ग्राम मुसेटी पट्टी चोपड़ाकोट थालीसैन के हैं .

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    1. धन्यवाद खंखरियाल जी,
      भक्तदर्शन जी की जन्मस्थली भौंराड़, साबली ही है. यह उनकी पुस्तक "गढ़वाल की दिवंगत विभूतियाँ" में भी दर्ज है.

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  2. थोडा संपादन कर सकते है आप - "यह स्वदेशी ...... " वाला अंश को " नमक आन्दोलन में जेल गए"के बाद जोड़ा जा सकता है '

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    1. धन्यवाद खंखरियाल जी,
      आपने सही लिखा है. संभवतः वह नमक आन्दोलन ही रहा होगा.

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  3. भक्त दर्शन जी के बारे में सुना था ..अधिक जानकारी नही थी..विस्तृत जानकाती देने के लिए धन्यवाद..

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    1. धन्यवाद माहेश्वरी दीदी,
      यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि जहाँ चाटुकार और चापलूस नेता जनता की जुबान पर रहते हैं. वहीँ देश के लिए सर्वस्व लुटाने वाले स्वतंत्रता सेनानी, सिद्धांतो की राजनीति करने वाले राजनेता और समाज को बहुत कुछ देने वाले कलम के सिफाई डॉक्टर भक्तदर्शन जैसे को कम ही लोग जान पाते हैं.

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  4. Such personalities have reduced now but not totally elimated from the society. We generally meet opposite correcters around us. May be one of the reason that materistic aspect has covered simple realistic life style. I m thankful to know something more about this personality from your benign efforts.
    DS Chand

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  5. क्या यह जानकारी सही है हमारे पूर्वज तो कहते हैं कि उनका जन्म:मुसेटी-चोपडाकोट-थलीसैंण तहसील मैं हुआ है उन्होंने हमारे साथ खेला खुदा साथ में पड़ा है मैं यह जानकारी तब साझा कर रहा हूं क्योंकि मेरा जन्मस्थान भी :मुसेटी-है. और यहां पर भगत दर्शन सिंह जी के नाती पोते अभी भी रहते हैं और वह हमें यही जानकारी देते हैं बल्कि भगत दर्शन सिंह जी के नाम की यहां पर मूर्ति भी बनी हुई है और उस जमाने के यहां पर बड़े बड़े बंगले भी हैं

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  6. क्या यह जानकारी सही है हमारे पूर्वज तो कहते हैं कि उनका जन्म:मुसेटी-चोपडाकोट-थलीसैंण तहसील मैं हुआ है उन्होंने हमारे साथ खेला खुदा साथ में पड़ा है मैं यह जानकारी तब साझा कर रहा हूं क्योंकि मेरा जन्मस्थान भी :मुसेटी-है. और यहां पर भगत दर्शन सिंह जी के नाती पोते अभी भी रहते हैं और वह हमें यही जानकारी देते हैं बल्कि भगत दर्शन सिंह जी के नाम की यहां पर मूर्ति भी बनी हुई है और उस जमाने के यहां पर बड़े बड़े बंगले भी हैं

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