(05 मई -गुरुवार को अक्षय तृतीया पर विशेष )
सौर-मंडल का नाम है दक्ष और जो उसकी सत्ताईस कन्यायें कही जाती है - वे सत्ताईस नक्षत्र हैं. ये नक्षत्र सौर-मंडल के उस रास्ते में हैं, जहाँ से सातों ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं. ब्रह्मांड एक गोलाई लिए हुए है, और वह गोलाई तीन सौ साठ अंश की होती है. इसी में एक निश्चित दूरी बनाये हुए सत्ताईस नक्षत्र हैं. हर नक्षत्र तेरह अंश बीस कला की दूरी पर है. यही राजा दक्ष की सत्ताईस कन्यायें हैं, जो चन्द्रमा की सत्ताईस पत्नियाँ भी कही जाती हैं.
सौर-मंडल का नाम है दक्ष और जो उसकी सत्ताईस कन्यायें कही जाती है - वे सत्ताईस नक्षत्र हैं. ये नक्षत्र सौर-मंडल के उस रास्ते में हैं, जहाँ से सातों ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं. ब्रह्मांड एक गोलाई लिए हुए है, और वह गोलाई तीन सौ साठ अंश की होती है. इसी में एक निश्चित दूरी बनाये हुए सत्ताईस नक्षत्र हैं. हर नक्षत्र तेरह अंश बीस कला की दूरी पर है. यही राजा दक्ष की सत्ताईस कन्यायें हैं, जो चन्द्रमा की सत्ताईस पत्नियाँ भी कही जाती हैं.
यह कहा जाता है की चन्द्रमा को सत्ताईस पत्नियों में से रोहिणी नाम की पत्नी सबसे अधिक प्रिय थी और बाकी पत्नियों ने उसी की शिकायत अपने पिता राजा दक्ष से की थी - इसका विज्ञान यह है कि जब चन्द्रमा सब नक्षत्रों से गुजरता हुआ रोहिणी नक्षत्र पर आता है, तो वह स्थिति चन्द्रमा की उच्च स्थिति मानी जाती है.
बैशाख के शुक्ल-पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है, क्योंकि उस रात चन्द्रमा का सौन्दर्य देखने वाला होता है, तब वह रोहिणी नक्षत्र से गुज़रता है. अगर उस समय बुध ग्रह भी रोहिणी नक्षत्र से गुज़र रहा हो, तो यह वही क्षण होता है, इलाही-नूर का - जिसे ब्रह्म दर्शन भी कहा जाता है.
कवि तुलसीदास ने उस क्षण के सौन्दर्य का चौपाई में वर्णन किया और हज़रत मुहम्मद ने उसी क्षण के दर्शन को उस झंडे पर उतारा, जो उन्होंने अपनी कौम को दिया. उस लहराते हुए झंडे पर तीज के चाँद की फांक होती है, और ऊपर बुध का सितारा. ग्रहों के इस मिलन का निश्चित बिंदु प्रकृति के सौन्दर्य की एक ऐसी घटना है - जिसका दर्शन इन्सान को विस्माद की अवस्था में ले जाता है.
अमृता प्रीतम
( 'अक्षरों की अंतर्ध्वनि ' से साभार )