Saturday, April 30, 2011

रोहिणी-गाथा


   (05 मई -गुरुवार को अक्षय तृतीया पर विशेष )                 
             सौर-मंडल का नाम है दक्ष और जो उसकी सत्ताईस कन्यायें कही जाती है - वे सत्ताईस नक्षत्र हैं. ये नक्षत्र सौर-मंडल के उस रास्ते में हैं, जहाँ से सातों ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं. ब्रह्मांड एक गोलाई लिए हुए है, और वह गोलाई तीन सौ साठ अंश की होती है. इसी में एक निश्चित दूरी बनाये हुए सत्ताईस नक्षत्र हैं. हर नक्षत्र तेरह अंश बीस कला की दूरी पर है. यही राजा दक्ष की सत्ताईस कन्यायें हैं, जो चन्द्रमा की सत्ताईस पत्नियाँ भी कही जाती हैं.
                यह कहा जाता है की चन्द्रमा को सत्ताईस पत्नियों में से रोहिणी नाम की पत्नी सबसे अधिक प्रिय थी और बाकी पत्नियों ने उसी की शिकायत अपने पिता राजा दक्ष से की थी - इसका विज्ञान यह है कि जब चन्द्रमा सब नक्षत्रों से गुजरता हुआ रोहिणी नक्षत्र पर आता है, तो वह स्थिति चन्द्रमा की उच्च स्थिति मानी जाती है.
            बैशाख के शुक्ल-पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है, क्योंकि उस रात चन्द्रमा का सौन्दर्य देखने वाला होता है, तब वह रोहिणी नक्षत्र से गुज़रता है. अगर उस समय बुध ग्रह भी रोहिणी नक्षत्र से गुज़र रहा हो, तो यह वही क्षण होता है, इलाही-नूर का - जिसे ब्रह्म दर्शन भी कहा जाता है.
                कवि तुलसीदास ने उस क्षण के सौन्दर्य का चौपाई में वर्णन किया और हज़रत मुहम्मद ने उसी क्षण के दर्शन को उस झंडे पर उतारा, जो उन्होंने अपनी कौम को दिया. उस लहराते हुए झंडे पर तीज के चाँद की फांक होती है, और ऊपर बुध का सितारा. ग्रहों के इस मिलन का निश्चित बिंदु प्रकृति के सौन्दर्य की एक ऐसी घटना है - जिसका दर्शन इन्सान को विस्माद की अवस्था में ले जाता है.
                                                                                                                                  अमृता प्रीतम
                                                                                                                           ( 'अक्षरों की अंतर्ध्वनि ' से साभार )

Tuesday, April 19, 2011

जो शहीद हुए हैं उनकी जरा याद करो क़ुरबानी........

{सम्पूर्ण उत्तराखंड में वीर सपूतों की याद में जगह-जगह बैसाख और जेठ माह में मेले लगते हैं. अप्रैल 1895में ग्राम मंज्यूड़,पट्टी बमुंड,टिहरी गढ़वाल में बद्री सिंह नेगी के घर जन्मे तथा प्रथम विश्वयुद्ध में शहीद हुए वीर गबर सिंह नेगी, विक्टोरिया क्रास की स्मृति में उनके गाँव के निकट चंबा में 15 दिसंबर 1945 को  वीर गबर सिंह स्मारक बनाया गया, जहाँ पर हर वर्ष बैसाख आठ गते (20 अप्रैल )को विशाल मेला लगता है. गढ़वाल रायफल्स  द्वारा मेला प्रारंभ से पूर्व सलामी दी जाती है. परन्तु 1982 में वीर गबर सिंह नेगी की पत्नी सतुरी देवी के निधन के बाद मेले की अब बस औपचारिकता मात्र रह गयी है.}  
प्रथम विश्वयुद्ध प्रारंभ हुआ उस समय भारतीय सेनाएं युद्ध के लिए पूर्णतः तैयार नहीं थी. मुख्य कारण यह कि उस समय तक भारतीय सेनाओं को मुख्यतः दो ही कार्य करने होते थे-
1.-देश के भीतर आन्तरिक शांति कायम करना.  और
2.- दूसरे देशों में जाकर ब्रिटेन की सेना को सहायता प्रदान करना. 
अगस्त 01, 1914 को भारतीय सेना युद्ध में भाग लेने के लिए निम्न प्रकार डिविजनों में विभाजित की गयी-
1-पेशावर, 2-रावलपिंडी, 3-लाहौर, 4- क्वेटा, 5-महू, 6 -पूना, 7-मेरठ, 8- लखनऊ, 9-सिकन्दराबाद, और 10-बर्मा 4 
इस महायुद्ध में भारत की रियासती सेनाओं के लगभग 20,000 सैनिकों ने शाही सेना की सेवा के लिए विश्व के विभिन्न रणक्षेत्रों में भाग लिया. भारतीय फौजी दस्तों ने फ़्रांस, बेल्जियम, तुर्की, मेसोपोटामिया (ईराक), फिलिस्तीन, ईरान, मिश्र और यूनान में हुए अनेक युद्धों में भाग लिया. इनमे यूरोप और अफ्रीका में स्थित वे रणक्षेत्र भी सम्मिलित हैं जहाँ खतरों से घिरे विकट दर्रों तथा गर्म जलवायु या अधिक शीत को झेलते हुए भारतीय सैनिकों को अपनी क्षमता का प्रयोग करना पड़ा, जिसके लिए भारतीय सेना के 11 सैनिकों को ब्रिटिश साम्राज्य के सर्वोच्च सैनिक सम्मान "विक्टोरिया क्रास" (Victoria Cross) से सम्मानित किया गया. इस सन्दर्भ में ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह ने कहा कि "प्रथम विश्वयुद्ध में भारतीय सपूतों की वीरता तथा धैर्य की अमर कहानी का मूल्य सम्पूर्ण विश्व की समस्त सम्पति से बढ़ कर है, यदि हमें वह उपहारस्वरुप दी जाय." 
गढ़वाल राइफल्स-हिमालय की गोद में बसे गढ़वाल के वीर सैनिक भारतीय सेना में विशिष्ट स्थान रखते हैं. उनका गौरवपूर्ण इतिहास रहा है. भारतीय सेना में इन्होने अपनी अपूर्व निष्ठा, साहस, लगन, निडरता, कठोर परिश्रम, भाग्य पर विश्वास एवं कर्तव्य पालन से विशिष्ट पहचान बनायी है. प्रथम महायुद्ध में 39वीं गढ़वाल राइफल्स की फर्स्ट व सेकंड बटालियने मेरठ डिविजन के अंतर्गत 11 अक्टूबर 1914 को मरसेल्स पहुँची. उस समय मेरठ डिविजन में तीन ब्रिगेड थे- (i) देहरादून ब्रिगेड  (ii) गढ़वाल ब्रिगेड व   (iii) बरेली ब्रिगेड.  गढ़वाल ब्रिगेड के कमांडर मेजर जनरल एच० डी0 युकेरी तथा ब्रिगेडिएर जनरल ब्लेकेडर के अधीन गढ़वाल रायफल्स ने फ़्रांस तथा बेल्जियम के युद्ध क्षेत्रों पर अपना मोर्चा सम्भाल लिया.
फेस्टुबर्ट का संग्राम (फ़्रांस)- 23, 24 नवम्बर 1914 को फेस्टुबर्ट के निकट जर्मनों के खिलाफ अति महत्वपूर्ण लडाई लड़ी गयी. जर्मन ने यहाँ मोर्चा बना कर खाईयां खोद रखी थी और वहां से जमकर गोलाबारी कर रहे थे. इस फ्रंट पर फिरोजपुर ब्रिगेड को पीछे हटना पड़ा था और उन खाईयों पर जर्मनों ने कब्ज़ा कर दिया था. इन परिस्थितियों में 39वीं गढ़वाल रायफल्स की फर्स्ट बटालियन को आदेश दिया गया की वे खाई पर आक्रमण करें. लक्ष्य प्राप्ति व परिस्थितियों को पक्ष में करने के लिए सर्वप्रथम बमवर्षा व गोलियों की बौछार की गयी. कमांडर का विचार था कि भयानक वमबर्षा व गोलीबारी से स्थिति पर नियंत्रण होगा, शत्रुओं का मनोबल टूटेगा तथा कवरिंग फायर की मदद से आगे बढ़ सकेंगे. गढ़भूमि का वीर सपूत नायक दरबान सिंह नेगी ही पहला व्यक्ति था जो दुश्मनों की गोलियों और बमों की परवाह न करते हुए कुछ फीट दूरी से ही मुकाबला कर रहा था. इस साहस व वीरतापूर्ण कार्य में दो बार घायल हुआ लेकिन वह सच्चे सैनिक की भांति दर्द की परवाह न करते हुए भी खाई में दुश्मनों से लड़ता रहा. कई बार दुश्मनों को पछाड़ कर पीछे किया और कई बार मौत के मुंह में जाते-जाते बचा और अंततः बुरी तरह घायल होते हुए भी खाईयों पर फतह पा ली. इस अदम्य साहस और शौर्य के लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सर्वोच्च सैनिक सम्मान "विक्टोरिया क्रास" से सम्मानित किया. इस वीरतापूर्ण मोर्चे पर जान की परवाह न करते हुए जिन्होंने डटकर साथ दिया वे थे- सूबेदार धन सिंह (मिलिटरी क्रास), सूबेदार जगतपाल सिंह रावत(आर्डर ऑफ़ ब्रिटिश इंडिया) तथा हवालदार आलम सिंह नेगी, लांसनायक शंकरू गुसाईं तथा रायफलमैन कलामू बिष्ट (इंडियन आर्डर ऑफ़ मेरिट). गढ़वाली जवानों ने दुश्मन की खाईयों में हजारों जर्मन सिपाहियों को मौत की नींद सुला दिया और हजारों को बंदी बना दिया. 24 नवम्बर सुबह तक खाईयों पर पूरी तरह 39वीं गढ़वाल रायफल्स की फर्स्ट बटालियन के जवानों ने कब्ज़ा कर लिया.
न्यूवे चैपेल का संग्राम (फ़्रांस) - यह सबसे बड़ी एकल लड़ाई थी जिसमे 10 से 12 मार्च 1915 तक चले इस संग्राम में 39वीं गढ़वाल रायफल्स की सेकंड बटालियन ने अपना जौहर दिखाया और इंडियन ट्रूप्स के लिए गौरव की प्राप्ति की. जर्मनों ने यहाँ पर चार मील लम्बा अभेद्नीय मोर्चा कायम कर रखा था. 600 गज का एक फ्रंट अटैक 10 मार्च 1915 की सुबह आर्टिलरी बैराज से शुरू हुआ. उस सुबह कड़ाके की ठण्ड, नमी और घना कोहरा था. इसके अतिरिक्त दलदली खेतों, टूटी झाड़ियों और कांटेदार तारों के कारण परिस्थितियां अत्यंत विकट थी. आमने सामने की भिडंत और भयंकर गोलीबारी और बमवर्षा के बाद रात 10 बजे समाप्त हुआ. इस फ्रंट पर रायफलमैन गबर सिंह नेगी ने दुश्मनों पर बड़े साहस के साथ गोलियां बरसाई जब तक कि वे आत्मसमर्पण के लिए तैयार नहीं हो गए. एक सच्चे सिपाही की भांति वे युद्ध भूमि में अंतिम क्षण तक डटे रहे और फर्ज के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. इस अदम्य साहस और पराक्रम के लिए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें मरणोपरांत सर्वोच्च सैनिक सम्मान "विक्टोरिया क्रास" से सम्मानित किया. इस युद्ध में 20 अफसर और 350 सैनिकों ने अपने प्राणों का उत्सर्ग किया उनमे 39वीं गढ़वाल रायफल्स की सेकंड बटालियन के सूबेदार मेजर नैन सिंह (मिलिटरी क्रास), हवालदार बूथा सिंह नेगी (इंडियन आर्डर ऑफ़ मेरिट), नायक जमन सिंह बिष्ट (इंडियन आर्डर ऑफ़ मेरिट) तथा सूबेदार केदार सिंह( इंडियन डिसटीन्गुअश सर्विस मेडल) हैं.
 39वीं गढ़वाल रायफल्स की वीरता और साहस से प्रभावित होकर फील्ड मार्शल फ्रेंच ने वायसराय को यह रिपोर्ट भेजी; " इंडियन कोर की सारी यूनिटें जो न्युवे चैपल की लड़ाई में लगी है उन्होंने अच्छा कार्य किया. जिन्होंने विशेष तौर पर प्रसिद्धि पाई उनमे 39वीं गढ़वाल रायफल्स की फर्स्ट और सेकंड बटालियने प्रमुख है."
          प्रथम विश्वयुद्ध (1914 -18) में 39वीं गढ़वाल रायफल्स दोनों बटालियनों ने विक्टोरिया क्रास सहित 25 मेडल्स प्राप्त किये, जो उन्हें विशिष्ट सैनिक सेवाओं और शौर्य के लिए प्रदान किये गए तथा गढ़वाल रायफल्स को रायल (Royal) की पदवी से भी सम्मानित किया गया. जो युद्ध भूमि में अपने प्राण न्यौछावर कर गए उन सबकी स्मृति में लैंसडौन-जो कि गढ़वाल रायफल्स का मुख्यालय है (पौड़ी. उत्तराखंड) में 1923 में युद्ध स्मारक का निर्माण किया गया. यह स्मारक तीर्थस्थल की भांति पवित्र और पूज्य है.
                                                                                                     
                                                                                                     डॉ० उदयवीर सिंह जैवार
                                                                                    "प्रथम  विश्वयुद्ध  में  गढ़वाल  राइफल्स की भूमिका  (1914-18)" के सम्पादित अंश            

Saturday, April 16, 2011

शिक्षक ! मेरे बच्चे को इस योग्य बनाना कि ........


शिक्षक ! 
मेरे बच्चे को रट्टू तोता मत बनाना 
उसे अक्षर बताना.

शिक्षक !
मेरे बच्चे को लूट की तरकीब मत बताना 
चारों तरफ फैला है लूट का साम्राज्य
इस शिक्षा में भरे हैं उसके अवगुण 
एक पाठ कम पढ़ाना. 

शिक्षक !
हो सके तो मेरे बच्चे को भला आदमी बनाना 
स्कूल भेजते वक्त 
मेरा बच्चा बहुत चंचल था
हमने उसका नाम भी यही रखा
तुम्हारी कक्षा में जरूर हो जाता होगा दायें-बाएं 
बच्चे की शरारत माफ़ करना.

शिक्षक !
मेरे बच्चे को गऊ मत बनाना  
प्यार बहुत बड़ी चीज है, लेकिन 
नफरत बहुत बुरी चीज नहीं 
जुल्म के बनैले पशुओं के खिलाफ 
उसे गुस्सा आना ही चाहिए.

शिक्षक !
मेरे बच्चे को इतनी आग देना 
कि वह इस जंगल-तंत्र को जलाने का हौसला रखे
तुम्हारे ही हुनर से बनना है बालक मन को, भविष्य को 
पेशे की गरिमा बचाए रखना
शिक्षक ! मेरे बच्चे को इस योग्य बनाना 
कि वह तुम्हे इज्ज़त बख्शे.
                                                                                                                                   राजेश्वरी
                                                                                                                    ('दस्तक' अंक 41 जुलाई-अगस्त 2009 से साभार )  
 

Sunday, April 03, 2011

सामाजिक जागरूकता व व्यापक चिंतन की अभिव्यक्ति है नेगी जी के कोलाज


नेगी जी का विस्तृत परिचय आपने 28 मार्च 2011 की पोस्ट में पढ़ा;
प्रस्तुत है नेगी जी के शिल्प से परिचय का चौथा व आखिरी पड़ाव -
4- कोलाज - इस विधा के अंतर्गत नेगी जी ने अपने रेखाचित्रों के साथ लोकप्रिय गढ़वाली, कुमाउनी व हिंदी कवियों की उत्कृष्ट कविताओं को उकेरा है. कविता पोस्टर ही उन्हें  प्रसिदधी के उच्च शिखर पर ले गया है. कविता पोस्टर के माध्यम से ही उनके बहुआयामी व्यक्तित्व की झलक मिलती है.  

Saturday, April 02, 2011

अद्भुत व अप्रतिम सौन्दर्य झलकता है नेगी जी के कविता पोस्टरों में

नेगी जी का विस्तृत परिचय आपने 28 मार्च 2011 की पोस्ट में पढ़ा;

प्रस्तुत है नेगी जी के शिल्प से परिचय का तीसरा पड़ाव -
2- कविता पोस्टर - इस विधा के अंतर्गत नेगी जी ने अपने रेखाचित्रों के साथ लोकप्रिय गढ़वाली, कुमाउनी व हिंदी कवियों की उत्कृष्ट कविताओं को उकेरा है. कविता पोस्टर ही उन्हें  प्रसिदधी के उच्च शिखर पर ले गया है. कविता पोस्टर के माध्यम से ही उनके बहुआयामी व्यक्तित्व की झलक मिलती है. 






                                                                                              जारी है अगले अंक में .......