Thursday, March 03, 2011

दास्तान मेरे सुल्तान की

बच्चों की जिद और कुछ आस पड़ोस की देखा-देखी,
माँ और पत्नी की लाख मनाही के बावजूद,
पाई, पाई जोड़ कर संकट के लिए रखे पैंसों से
खरीद लाया मै विदेशी नस्ल का एक कुत्ता.
मैथ्स, फिजिक्स के फार्मूलों से कहीं अधिक 
कुत्ते की प्रजातियाँ है याद मेरे होनहार बच्चों को, 
इसलिए पूँछ कटे इस कुत्ते को उन्होंने 'डोबरमैन' बताया.  

इस विदेशी पूँछ कटे कुत्ते की पीठ सहलाते जाने क्यों 
बाबा भारती सा आनन्दित हो जाता हूँ मै,
और भावनाओं के अतिरेक में बह मैंने भी 
नाम 'सुल्तान' रखा है इस पूंछ कटे कुत्ते का.
गाँव में कभी गाय, बैल, भैंसों के सींगों को बार-त्यौहार 
तेल लगा चमकाते जो खुशी होती थी मेरे बड़े- बूढों को
उससे कहीं अधिक पुलकित होता हूँ जब
नहलाता हूँ शैम्पू से सुल्तान को हर इतवार मल-मल कर.

गर्दन पर बंधी मोटी चमकीली सांखल पकड़े
तमगे लटकाए फौजी अफसर सा अकड़ कर मै
कुत्ता घुमाने (नहीं, नहीं , कुत्ता हगाने) के बहाने रोज 
सुबह-सवेरे निकलता हूँ मोहल्ले की सड़कों पर.
मेरी भी थोड़ी इज्ज़त बढ़ गयी है मोहल्ले में 
कल तक वर्मा जी ! वर्मा जी ! कहने वाले पडोसी 
वर्मा साहब कह कर अब पुकारने लगे हैं. 
सड़कों पर अक्सर फब्तियां कसते आवारा लड़के भी
अंकल जी !अंकल ! जी कह अब मान देने लगे हैं.

किताबों से दूर भागने वाला मै पढता हूँ गीता, रामायण की तरह 
अब  'फूडिंग एंड हैबिट्स ऑफ़ डॉग' जैसी किताबें.
वक्त बेवक्त धमक कर चाय सुड़कने वाले पडोसी,या
अख़बार के नाम पर सुबह वक्त ख़राब करने वाले पडोसी 
अब आते हैं सोच-समझ कर ही, क्योंकि अपने गेट के बाहर
मैंने भी लटका दी  है  'यहाँ कुत्ते रहते हैं ' की एक सुन्दर सी तख्ती. 

हर आगुन्तक को शक की नज़र से देखता या 
"  कुत्ता भय से भौंकता है "  की कहावत चरितार्थ करता 
जोर-जोर से भौंकता जब भी , तो न जाने क्यों 
मंत्रोच्चार कर स्वागत करता सा लगता मुझे कुत्ता .
ऊंचा कद, ऊंचे ओहदे वाला ही क्यों न हो आगुन्तक 
सोफे पर शान से उनके बराबर में जा बैठता है कुत्ता. 

पर हकीकत, साल भर बाद सुना रहा हूँ तुम्हे दोस्तों !
कुत्ते की सेहत मेंटेन रखने को हमारी वैष्णवी रसोई में पकने लगा मांस 
हंसी ख़ुशी गुजारा हो जाता था वेतन से, अब एडवांस, लोन लेकर भी 
नहीं बचता पैसा एक भी अपने पास. पहले 
तुलसी, गोमूत्र से गमकता था घर, अब टट्टी,पेशाब से गंधीयाता है घर. 
झूठी शान बखारता मै, मुटिया रहा खूब यह पूंछ कटा कुत्ता .
बीबी के ताने सुनता मै, खाली जेब भटकता, बन गया मै गली का कुत्ता. 
रोज हाथ जोड़ फरियाद करता हूँ खुदा से -कोई खडग सिंह आये और 
इस कलयुगी सुल्तान को धोखे से नहीं, खुशी खुशी लूट ले जाए. 



 

6 comments:

  1. इस विदेशी पूँछ कटे कुत्ते की पीठ सहलाते जाने क्यों
    बाबा भारती सा आनन्दित हो जाता हूँ मै,
    शायद विदेशी संस्कृ्ति हमारी रग रग मे बस गयी है। सुन्दर व्यंग। शुभकामनायें।

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  2. इस विदेशी पूँछ कटे कुत्ते की पीठ सहलाते जाने क्यों
    बाबा भारती सा आनन्दित हो जाता हूँ मै,
    और भावनाओं के अतिरेक में बह मैंने भी
    नाम 'सुल्तान' रखा है इस पूंछ कटे कुत्ते का.

    ..bahut hi vicharsheel prastuti..
    bade-bade dhanasethon aur afsaron ke yahan jab koi laachar, hairan pareshan, majboor aadmi ya karmchari in kutton ke saath rasa-kashi karte dikhte hain to man ko behad takleef hoti hai.. .. unke yahan insaan se jyada hatta-katta aur khane-peene wala kutta hi hota hai.. insaan ke value kuch nahi...
    ..padhkar man mein ek tees see uthi hai...aabhar

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  3. बहुत सुन्दर ब्यंगात्मक प्रस्तुति | धन्यवाद|

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  4. बहुत सुन्दर ब्यंगात्मक प्रस्तुति | धन्यवाद|

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  5. इस विदेशी पूँछ कटे कुत्ते की पीठ सहलाते जाने क्यों
    बाबा भारती सा आनन्दित हो जाता हूँ मै,
    और भावनाओं के अतिरेक में बह मैंने भी
    नाम 'सुल्तान' रखा है इस पूंछ कटे कुत्ते का.
    गाँव में कभी गाय, बैल, भैंसों के सींगों को बार-त्यौहार
    तेल लगा चमकाते जो खुशी होती थी मेरे बड़े- बूढों को
    उससे कहीं अधिक पुलकित होता हूँ जब
    नहलाता हूँ शैम्पू से सुल्तान को हर इतवार मल-मल कर.


    ye vakai main ek shandaar aur behad hi khoobsorat vyang hai. behetarin.
    you are tha best sir.

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  6. विदेशी संस्कृ्ति हमारी रग रग मे बस गयी है।
    सुन्दर ब्यंगात्मक प्रस्तुति | धन्यवाद|

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